हवाई इजारेदारी भ्रष्टाचार का एक बड़ा मॉडल
इंडिगो की सैकड़ों उड़ानें रद्द हो जाने के कारण सारे देश के हवाई अड्डों पर मचे कोहराम के पीछे की अंतरकथा जानना ज़रूरी है। इंडिगो की गलतियां थीं, और जानबूझ कर की गई गलतियां थीं, इसमें कोई शक नहीं। पर इससे पता चलेगा कि इस संकट की बुनियाद किसके कारण पड़ी और वह कौन सी ताकत थी जिसे फायदा पहुंचाने के चक्कर में सरकार और इंडिगो के बीच भिड़ंत हो गई। यानी एक मोनोपोली को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरी मोनोपोली का हाथ मरोड़ने की कोशिश की गई, जिसके कारण लाखों हवाई यात्री संकट में फंस गये। साथ ही मैं यह भी बताऊंगा कि देश के किस नेता ने साल भर पहले ही यह चेतावनी दे दी थी कि अगर सरकार इसी तरह से बड़ी-बड़ी इजारेदारियां पनपने देती रही तो किसी भी समय संकट की घड़ी आ सकती है। तीसरी बात जो मैं आज कहने जा रहा हूँ वह है मोदी सरकार के गवर्नेंस के मॉडल की। आमतौर पर हर सरकार में गवर्नेंस के मॉडल के पहले लाभार्थी अमीर और खुशहाल लोग होते हैं। पहले वे फायदा उठाते हैं, और फिर फायदा उनके नीचे वाली पायदानों पर बैठे लोगों के पास जाता है। लेकिन भारत में मोदी के गवर्नेंस मॉडल में देश के अमीरों और खुशहालों को भी राहत नहीं है। ज़रा सोचिए कि हवाई जहाज़ में चलने वाले कौन होते हैं? वे ही जो सबसे ऊपर हैं और जो आबादी के 10-11 प्रतिशत हैं। अगर ये सरकार उन्हें ही संतुष्ट नहीं कर पा रही तो गरीबों, वंचितों और साधनहीनों की इसके निज़ाम में क्या हालत है, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।
अब आइए पहली बात पर। पिछले महीने यानी केवल दस दिन पहले 27 नवम्बर को खबर मिली थी कि अडानी ग्रुप की कम्पनी अडानी डिफेंस ने भारत में पायलेट ट्रेनिंग की सबसे बड़ी कंपनी एफएसटीसी को खरीद लिया है। इस खबर को सामने आए केवल तीन दिन ही हुए थे कि फ्लाइटों में देरी होने और उनके रद्द होने की खबरें आने लगीं। सरकार की ताल पर नाचने वाले गोदी चैनलों में चलने लगा था कि भारत में पायलटों की भयंकर कमी हो गई है। इन खबरों के ज़रिये सारे देश में माहौल बनाया जाने लगा कि कि भारत में पायलटों की भर्ती और ट्रेनिंग पर खास ध्यान देना होगा। जब ये खबरें आनी शुरू हुई थीं तभी सवाल उठा था कि क्या यह सब जानबूझ कर अडानी को फायदा पहुंचाने की साजिश तो नहीं हो रही है। क्योंकि उड्डयन के बाज़ार में पायलटों की जितनी कमी होगी, उतनी ही अडानी की नयी कम्पनी को पायलट तैयार करने का काम मिलने वाला था। अडानी के लिए नियोजित ढंग से बाज़ार बनाने का यह हथकंडा पहली बार इस्तेमाल नहीं किया गया था। इस तरह की खबरें पहली बार नहीं उड़ाई जा रही थीं। इससे पहले भी जब एक बार अडानी को निचली क्वालिटी का कोयला महंगे दाम पर बेचना था तो देश भर में कोयले की कमी की खबरें फैला दी गई थीं। यह अफवाह फैलाई गई थी कि देश में 1-2 दिन का कोयला बचा है। इसका सीधा फायदा अडानी को हुआ। क्या इससे नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी, गोदी मीडिया और अडानी इस बार भी यही फॉर्मूला अपना रहे थे।
इंडिगो उड्डयन क्षेत्र में बहुत बड़ी मोनोपोली है। उड्डयन का करीब 65 प्रतिशत हिस्सा इसी एयरलाइन के पास है। देश में सबसे ज्यादा 434 नागरिक विमान इंडिगो के पास हैं। 5456 पायलट और 10,212 कैबिन क्रू मेंबर हैं। 41,000 से ज्यादा स्थायी कर्मचारी हैं। इंडिगो का बिज़नेस मॉडल हाई यूटिलाइज़ेशन के उसूल पर आधारित है। मुनाफे को अधिकतम करने के लिए इस एयरलाइन के पायलटों को अधिकतम ड्यूटी यानी 13 घंटे तक काम करना पड़ता है। (डीजीसीए) 2024 में डीजीसीए यानी डायरेक्टरेट ऑ़फ सिविल एविएशन ने सभी एयरलाइनों पर थकान विरोधी नियम लागू किये थे। इन्हें एफडीटीएल नियम कहा जाता है। यानी फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन नियम। इनके मुताबिक एक जुलाई 2025 से पायलटों के साप्ताहिक आराम की अवधि 36 घंटे से बढ़ा कर 48 घंटे कर दी जानी थी। इसके बात एक नवम्बर से आधी रात से सुबह छह बजे तक की उड़ानों पर अधिकतम दो रातों की लैंडिंग और लगातार दो रातों से ज्यादा की ड्यूटी न होने का कड़ा नियम लागू होना था। जैसे ही ये नियम लागू हुए इंडिगो के पास क्रू की कमी हो गई। नवम्बर में 1232 उड़ानें रद्द हुईं जिनमें 755 यानी 61 प्रतिशत एफडीटीएल के कारण ही हुई थीं। ज़ाहिर है कि इंडिगो ने इन नये नियमों को मनमाने ढंग से मानने से इन्कार कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद महानिदेशालय ने उसे फरवरी, 2026 तक की छूट दे दी। यह छूट क्यों दी गई, इस पर मैं बाद में आऊंगा। पहले अडाणी डिफेंस द्वारा पायलटों को ट्रेंड करने वाली कम्पनी की खरीद से इसके रिश्ते पर बात करना ज़रूरी है। यहां प्रश्न यह है कि क्या अडानी की कम्पनी को पायलट ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल करने के लिए सभी एयर लाइनों पर दबाव नहीं डाला गया। ऐसा प्रतीत होता है कि एयर इंडिया, आकाश और स्पाइस जेट का घरेलू उड्डयन बाज़ार में हिस्सा छोटा है। उन्हें तैयारी करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। क्या इंडिगो और पायलट ट्रेनिंग देने वाली कम्पनी के बीच नहीं पटी। क्या इंडिगो पर डीजीसीए द्वारा दबाव डाला गया। क्या इंडिगो द्वारा समय पर तैयारी न कर पाने के पीछे इस तनाव की भूमिका नहीं थी। ये सारे सवाल अनुत्तरित हैं। इनका जवाब मिलना चाहिए।
दूसरे, अगर डीजीसीए को अपने नियमों को लागू कराना ही था तो उसने इंडिगो पर सख्ती क्यों नहीं की। मोदी सरकार ने उसे इतनी लम्बी छूट क्यों दीए जबकि और एयरलाइनों पर यह मेहरबानी नहीं की गई। इसके दो ही कारण हो सकते हैं। पहला है अडानी फेक्टर और दूसरा है भाजपा के कोष में इंडिगो के मालिकों द्वारा किया या करोड़ों का भुगतान। क्या इसके मालिक राहुल भाटिया ने ‘इंटरग्लोब रीयल इस्टेट वेंचर्स’ के नाम से 20 करोड़ और ‘इंटरग्लोब एयर ट्रांसपोर्ट के नाम से 11 करोड़ पार्टी फंड में नहीं दिए। क्या यही कारण है कि मार्च 2024 में बनाए गए नियमों को इंडिगो ने 20 महीने में भी लागू नहीं किया? क्योंकि उसे पता था कि पार्टी तो फंड लेकर चुप रहेगी और साथ में महानिदेशालय के अफसरों का मुंह भी भर दिया जाएगा। क्या यही कारण नहीं है कि आज भी यात्री सुविधा के नाम पर यात्री सुरक्षा को ताक पर रख कर निदेशालय ने कदम पीछे खींच लिए। कहना न होगा कि इंडिगो का संचालन करने वाली मुख्य कंपनी ‘इंटरग्लोब एविएशन’ ने कांग्रेस को भी 5 करोड़ दिए हैं। राहुल भाटिया ने व्यक्तिगत रूप में टीएमसी और एनसीपी क्रमश: 16.2 करोड़ एवं 3.8 करोड़ दिए। इस तरह की कम्पनियां सभी पार्टियों को अपनी जेब मे रखना चाहती हैं। ताकि वे जो करना चाहें, करते रहें, पर उन पर उंगली न उठ सके। ज़ाहिर है कि इंडिगो और उसके मालिक पुन: बच निकलेंगे। पैसों से पूरा तंत्र खरीदा जा सकता है।
इस तरह का संकट आ सकता है, यह चेतावनी राहुल गांधी ने एक साल पहले ही दे दी थी। इस समय गोदी मीडिया भी संकोच के साथ ही सही, पर मान रहा है कि अगर राहुल गांधी की बात मानी गई होती तो इस तरह के हालात को टाला जा सकता था। राहुल गांधी ने लगभग 1 साल पहले देश को आगाह भी किया था। लेकिन किसी ने भी राहुल गांधी की बात को गंभीरता से नहीं लिया। राहुल गांधी ने एक साल पहले नवंबर 2024 में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था.. अ न्यू डील फॉर इंडियन बिजनेस। लगातार तीसरे दिन सैकड़ों फ्लाइट्स रद्द होने के बाद राहुल गांधी ने अपने उस आर्टिकल को दोबारा शेयर किया और मौजूदा स्थिति के लिए केंद्र सरकार के मोनोपोली मॉडल को जिम्मेदार बताया। अपने आर्टिकल में राहुल गांधी ने तर्क दिया था कि भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां उसे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा यानी कि फेयर कंपटीशन या एकाधिकार यानी कि मोनोपोली में से किसी एक को चुनना होगा। राहुल ने आगाह किया था कि आधुनिक मोनोपोलिस्ट उसी तरह का डर पैदा कर रहे हैं जैसा कभी ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था और इसकी कीमत आम भारतीयों को चुकानी पड़ रही है। इंडिगो संकट पर राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा है कि इंडिगो की विफलता इस सरकार के एकाधिकार मॉडल की कीमत है। एक बार फिर आम भारतीय ही देरी, रद्दीकरण और असहायता की कीमत चुका रहा है। भारत हर क्षेत्र में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा का हकदार है। मैच फिक्सिंग और एकाधिकार का नहीं।
अब बात खत्म करने से पहले मैं उस पहलू पर कुछ कहूंगा जिसकी चर्चा करने से आमतौर से लोग परहेज़ कर रहे हैं। वह है कि आखिरकार मोनोपोली बनती कैसे है। मोनोपोली बन ही नहीं सकती जब तक कि राजनीतिक आका उसे न बनाना चाहें। डीजीसीए जैसी संस्थाएं मोनोपोली नहीं बना सकतीं। इंडिगो की मोनोपोली मोदी सरकार की देन है। इतनी बड़ी उड्डयन की मोनोपोली दुनिया के किसी देश में नहीं दिखेगी। दरअसल पहली नज़र में ही स्पष्ट हो जाता है कि इंडिगो के मालिकों के मुनाफे का एक अच्छा खासा हिस्सा सत्तारूढ़ों की जेब में जाता है। यह कह कर मैं करोड़ों की उस अपेक्षाकृत छोटी रकम का जिक्र नहीं कर रहा हूं जो भाजपा के खाते में दी गई है। वह तो कुछ नहीं है। मैं तो यह समझता हूँ कि हर साल एक बड़ी रकम इधर से उधर होती है। अगर ऐसा नही है तो फिर यह मोनोपोली चल कैसे रही है। सरकार के बात मोनोपोली तोड़ने के कानून हैं, अगर इच्छाशक्ति हो तो एक पल में यह मोनोपोली भंग की जा सकती है। सरकार चाहे तो किसी भी प्राइवेट प्लेयर को इशारा कर दे और इंडिगो को कम्पटीशन देने वाली एयरलाइन शुरू हो जाए लेकिन ऐसा नहीं किया जा गया। इसी का नतीजा आज सारा देश भुगत रहा है।
लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और
भारतीय भाषाओं के अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक हैं।



