निर्भया कांड को दोहरा कर देश को चिढ़ा रहे हैं नृशंस दुष्कर्मी

गुजरात के राजकोट ज़िले के अंतर्गत अटकोट थाना क्षेत्र के एक गांव में निर्भया कांड जैसी घटना सामने आयी है। हाल के कुछ महीनों में इस तरह की आधा दर्जन से ज्यादा घटनाएं घट चुकी हैं। अटकोट की यह घटना इतनी वीभत्स है कि इसने देश को सिहरा कर रख दिया है। यहां भी मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करने में असफल रहे नृशंस बलात्कारी ने उसके साथ अमानवीय व्यवहार कर उसे जीने-मरने की सांसों के बीच छोड़ दिया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक लड़की की स्थिति स्थिर थी, लेकिन कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा? सवाल है बार-बार ये नृशंस बलात्कारी निर्भया कांड जैसी दरिंदगी को दोहराकर क्या पूरे देश को चिढ़ा नहीं रहे हैं? हो सकता है, यह सवाल बहुत कड़वा लगे, मगर यह जितना कड़वा है, उतना ही सच है।  
दरअसल निर्भया जैसा कांड दोहराने वाले अपराधियों में दो बातें प्रमुख होती हैं। एक तो दुष्कर्म इनके लिए अपनी ताकत का प्रदर्शन होता है। ये सोचते हैं, वे जो चाहें, वो कर सकते हैं। उन्हें कोई नहीं रोक सकता। यह भावना समाज के प्रति एक नृशंस घोषणा जैसी है कि तुम्हारे कानून, तुम्हारी नैतिकता, तुम्हारी सभ्यता, तुम्हारे मूल्य, सबको मैं अपनी ताकत से रौंद रहा हूं। यह चिढ़ाना नहीं तो और क्या है? साथ ही इन नृशंस बलात्कारियों के मस्तिष्क में दूसरी जो प्रमुख बात होती है, वह यह है कि इन्हें किसी तरह की सज़ा से कोई डर नहीं लगता। निर्भया कांड के बाद कानून तो कठोर हुए, लेकिन क्या अपराधियों को तुरंत और निश्चित तथा स्पष्ट रूप से सज़ा मिली? जवाब है नहीं। भारत में दुष्कर्म और महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दण्ड की धारा 28 से 32 प्रतिशत के आसपास है। मतलब यह कि 10 में से 7 बलात्कारी या नृशंस अपराधी हर हाल में कानून के शिकंजे से बच निकलते हैं। इसलिए अपराधियों की यह मानसिकता बनती जा रही है कि पकड़ भी लिए गए तो क्या हो जायेगा, जमानत मिल जायेगी। पीड़िता बदनाम होने के डर से पीछे हट जायेगी और समाज अपमान का घूंट पीकर चुपचाप रह जायेगा।
वास्तव में यही वह मानसिकता है, जिसके चलते तमाम कानूनों के बावजूद औरतों के खिलाफ अपराध की दर लगातार बढ़ती जा रही है, कम होने का नाम नहीं ले रही। अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया (एनसीआरबी) के आंकड़ों को देखें तो 2021 में जहां देशभर में दुष्कर्म की कुल 31,677 घटनाएं घटीं यानी हर दिन औसतन 86 दुष्कर्म की घटनाएं, वहीं 2022 में 2021 के मुकाबले ऐसी घटनाएं 4 प्रतिशत बढ़ गईं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2012 में देश को हिला देने वाले राजधानी दिल्ली के निर्भया कांड के बाद चाहे बलात्कारियों के विरुद्ध कितने ही कठोर कानून क्यों न बनाये गये हों, दुष्कर्म और महिलाओं से संबंधित दूसरे अपराधों में किसी तरह की जरा भी कमी नहीं आयी बल्कि साल दर साल ये आंकड़े दिखा रहे हैं कि कानून चाहे जितना मज़बूत हुआ हो, मीडिया चाहे जितनी हायतौबा मचाले, समाज में भी चाहे जितना आक्रोश हो, महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के सिलसिले में जरा भी रोक या गिरावट नहीं आ रही। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? आखिर बार बार निर्भया कांड जैसी घटनाओं को अंजाम देने वाले ये अपराधी कौन हैं? 
यकीन मानिये, ये कहीं बाहर से नहीं आये, न ही आसमान से टपके हैं। ये दुर्लभ और विकृत मानसिकता के नृशंस अपराधी इसी समाज की उपज हैं। वैसे भी बलात्कारी कभी भी किसी दूसरे समाज में जाकर दुष्कर्म की कोशिश नहीं करते। अपने ही समाज में ये यह कृत्य बार-बार दोहराते हैं, क्योंकि ये उसी समाज से पनपनते हैं। फिर वह आपराधिक जड़ कहां है, जिसकी वजह से बार-बार देश का दिल दुखाकर पूरे समाज को आक्रोशित करने के बाद भी यह सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता? इसकी जड़ कहीं और नहीं, अपने समाज में ही है। आखिर हम बार-बार दुहाई इस बात की देते हैं कि निर्भया कांड के बाद भी महिलाओं के विरुद्ध इतने अमानवीय अपराधों का सिलसिला कम क्यों नहीं हो रहा? मगर क्या कभी हम इस सवाल से भी टकराते हैं कि निर्भया कांड के बाद हमारे समाज की सोच में क्या बदलाव हुआ? जी नहीं, आज भी समाज दबी जुबान से दुष्कर्म की शिकार किसी लड़की या महिला को ही 90 प्रतिशत दोषी ठहराता है। क्या निर्भया कांड के बाद हमारे समाज में हिंसा को मर्दानगी से जोड़कर देखने का सिलसिला खत्म हो गया? जी नहीं, आज भी हमारे समाज में हिंसा को मर्दानगी से जोड़कर ही देखा जाता है। जो समाज इस तरह की घटनाओं के बाद हायतौबा मचाता है, क्या वही समाज सोशल मीडिया में बढ़ते पोर्न कंटेंट को लेकर भी कभी आक्रोशित होता है? क्या ऐसी वेबसाइटों और इंटरनेट में ऐसे अमानवीय कंटेंट डालने के वालों के विरुद्ध कभी लोग एकत्र होकर आंदोलन करते हैं? जी नहीं बल्कि सॉफ्ट पोर्न को समाज का एक बड़ा तबका सही ठहराता है। 
इस तरह की लगातार घट रही घटनाएं समाज की विस्फोटक होती स्थिति की चेतावनी हैं। ये दुष्कर्मी सिर्फ किसी असहाय को अपनी ताकत का शिकार नहीं बनाते बल्कि समूची सभ्यता और संस्कृति को मटियामेट करते हैं। जब-जब ऐसा कांड होता है, तो पूरा समाज खुद को निर्बल और लाचार महसूस करता है। वास्तव में ऐसे अपराध किसी व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरी सामाजिक व्यवस्था की अवमानना है। जब बार-बार इस तरह की घटनाएं क्यों दोहरायी जाती हैं? यह सिर्फ किसी महिला का अपमान नहीं बल्कि पूरे समाज का अपमान है। जितना जल्दी हो, कानून के साथ समाज को भी जागना होगा और मिलकर इन दरिंदों के विरुद्ध खड़ा होना होगा, नहीं तो ये हमेशा इसी तरह रह-रहकर समाज को मुंह चिढ़ाते रहेंगे।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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