आतंकवाद का चेहरा और काम बदल गये हैं

श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक हाल ही में जिस खौफनाक साजिश से पर्दा उठा है, उससे साफ-साफ समझ आने लगा है कि आज भारत में आतंकवाद जिस तरह का रूप अख्तियार कर चुका है वह नेटवर्क आधारित पेशेवर, सामाजिक विश्वास के साथ अपने तय किये अमानवीय लक्ष्य तक पहुंच रहा है। मजहबी जुनून द्वारा दिमागी स्तर पर भारी बदलाव देखने में आ रहे हैं।
जैश-ए-मोहम्मद के कुछ पोस्टरों से शुरू हुई यह वारदात दिल हिला देने वाली घटनाओं की शृंखला में बदल गई। जो घटना पहले हल्की और उकसाने वाली नज़र आ रही थी- वह एक मजबूत और व्यापक साजिश का सूत्र निकला- जिसका जाल विभिन्न क्षेत्रों, व्यवसाय और डिजिटल नेटवर्क तक फैला हुआ था। यहीं से और भी बड़े षड्यंत्र से पर्दा उतर गया। दिल्ली-फरीदाबाद के एक गैर मामूली सुधरे हुए षड्यंत्र का वास्तविक रूप भारत की जनता के सामने बेनकाब हो गया। इस षड्यंत्र की विशेषता यह सामने आई कि पहली बार पेशेवर डाक्टर और उच्च शिक्षित लोग साजिशकर्ता के रूप में पाये गये। दिल्ली लाल किले के निकट हुआ विस्फोट अशिक्षित हाथों से अचानक हो गया एक अमोनियम नाइट्रेट धमाके रूप में पहचाना गया। 
खुफिया जानकारी से पता चलता है कि 32 से ज्यादा इम्प्रूवाइज्ड एक्सपलोसिव डिवाइस (आई.डी.डी.) तैयार किए जा रहे थे। इनसे एक साथ विस्फोट को किये जाने पर अतिरिक्त रूप से भारी तबाह मच सकती थी। इसके बाद जो श्रीनगर में विस्फोट हुआ, उसको भी यथार्थवादी सोच के साथ समझने की ज़रूरत है। ज़ब्त किया गया अमोनियम नाइट्रेट एफ.आई.आर. प्रक्रिया के तहत वहां से लाया गया था और उसके भंडारण के दौरान भारी गलती हो गई, लेकिन और सावधान रहने की ज़रूरत के साथ हमारा ध्यान बड़ी साजिश से भटकना नहीं चाहिए। हालांकि दोनों घटनाएं मिलकर एक ऐसे नेटवर्क का खुलासा करती हैं जो पूरी तरह से खतरनाक कहा जा सकता है।
अविश्वसनीय फरीदाबाद वाली चेन से पता चला है कि पेशेवर डाक्टर की सक्रिय भागीदारी से यह सम्पन्न हुआ है। कश्मीर के आतंकी इकोसिस्टम में लंबे समय से एकेडिमिक्स के लोग शामिल रहे हैं, लेकिन वे शायद ही कभी हिंसा में शामिल रहे हों। साधारण लोगों के लिए विश्वास करना कठिन हो रहा है कि डाक्टर जिनका धर्म और काम जान बचाना होता है, जान लेने के कार्यक्रम में शामिल कैसे हो रहे हैं? आतंकवादी वारदात करने वाले आम तौर गरीब और कम पढ़े लिखे लोग होते हैं, लेकिन अब यह देखा गया है कि पढ़े-लिखे लोग जुनूनग्रस्त होकर कत्ल जैसे मामूली कार्य में इनवाल्ब (शामिल) हैं। यह इस योजनाबंदी का नमूना है कि शिक्षित वर्ग के लोग समाज में कुछ प्रभाव रखते हैं और समाज में आसानी से घुल-मिल जाते हैं। उन पर अवाम संदेह नहीं प्रकट करती। डिजिटल दुनिया में उनकी पैठ भी काफी रहती है। इस गिरोह के कुछ सदस्यों की विदेश यात्राओं की खबरें आ रही हैं। सम्भावित पलायन के राज भी मिल रहे हैं।
फरीदाबाद माड्यूल कश्मीरियों के बाकी भारत के साथ बन रहे मज़बूत रिश्तों और विश्वास को चोट पहुंचाने के लिए रचा गया बड़ा षड्यंत्र मालूम होता है। पहले पर्यटन उद्योग को चोट पहुंचाने की कोशिश अब यह कार्यक्रम एक ही मकसद से किए गये चुपचाप हमले का परिणाम है। लोग अब अल्पसंख्यकों को किराये पर घर देने से इनकार करने लगेंगे। नागरिक एक-दूसरे को संदेह और डर की नज़र से देखने लगेंगे। यही मकसद इस बार आतंकवादियों के हमले में नज़र आता है। आतंकवाद के छुपे हुए चेहरे यही मकसद बना कर बैठे नज़र आते हैं। उनको अपनी कामयाबी बम द्वारा आतंकित करने की कम, लोगों में आपसी संदेह और फिरकाप्रस्ती को जगाना है। 
शांति और मानवता के दुश्मन कुछ दिन पहले महिला विंग को भी आतंकवाद का सबक पढ़ाने आए थे। उनके साथ सेना के लोग भी थे। जो उनका ब्रेन वाश करना चाहते थे। कट्टरपंथ शिविरों में तो पनप ही रहा है। घरों में, शिविरों में, मोबाइल सेवा और नेटवर्क द्वारा लोगों में भड़काहट पैदा करना चाहता है। इस नेटवर्क को तोड़ने की ज़रूरत है।

#आतंकवाद का चेहरा और काम बदल गये हैं