देश में बढ़ता विदेशी निवेश

भारत में जिस प्रकार विश्व भर की बहुत-सी निजी क्षेत्र की कम्पनियों ने निवेश करना शुरू किया है, वह बेहद आश्चर्यजनक है। भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ की नीति के तहत देश में अलग-अलग क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय निजी कम्पनियों को निवेश के लिए उत्साहित किया जा रहा है, जिससे मूलभूत रूप में देश की आर्थिकता मज़बूत होगी। इसके साथ-साथ अनेक संबंधित लघु औद्योगिक इकाइयों को भी उत्साह मिलेगा और रोज़गार के अधिक से अधिक साधन पैदा होंगे। वर्ष 1990 तक भारत की नीति विदेशी कम्पनियों को यहां निवेश के लिए प्रेरित करने वाली नहीं थी। ज्यादातर बड़े क्षेत्रों में सरकारी संस्थान या कम्पनियां काम करती थीं। उस समय तक इसकी आर्थिकता को सम्बल नहीं मिला था। अनेक तरह की सीमाएं सामने थीं। देश की आर्थिकता डावांडोल ही चल रही थी। 
एक समय तो देश का वित्तीय संकट इस प्रकार बढ़ गया था कि देश के सोने के भंडार अंतर्राष्ट्रीय बैंकों के पास गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा था। देश चारों ओर गरीबी तथा स्रोतों की कमी का सामना कर रहा था। वर्ष 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार के समय विदेशी आयात के लिए द्वार खोलने का फैसला किया गया था। उस समय डा. मनमोहन सिंह केन्द्रीय वित्त मंत्री थे। नई नीतियां धारण करने से एकाएक बदलाव का दौर शुरू हो गया था। अलग-अलग देशों से बड़ी-छोटी कम्पनियों तथा उद्योगों की आमद शुरू हुई थी। देश की डावांडोल हुई आर्थिकता स्थिर होने लगी थी। एक अनुमान के अनुसार अब तक इस नीति के कारण लगभग एक करोड़ अतिरिक्त नौकरियां पैदा हुई हैं। भारत को निर्माण का केन्द्र बनाए जाने की नीति के कारण अब तक बहुत-सी विदेशी कम्पनियों ने यहां अपने यूनिट स्थापित करने को प्राथमिकता दी है। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में सिंगापुर, नीदरलैंड, जापान तथा अमरीका ने अब तक बड़ा योगदान दिया है। इस प्रकार देश के मूलभूत ढांचे का विस्तार हुआ है। विगत दिवस इस गतिविधि में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। देश के कई राज्य बड़े निर्माण का केन्द्र बने हैं। विगत दिवस अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कम्पनी माइक्रो सॉफ्ट ने 4 वर्षों में यहां 1.57 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की घोषणा की है। इस कम्पनी का यह निवेश एशिया में सबसे बड़ा निवेश होगा। इसी कम्पनी ने जनवरी माह में 27 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश करने की घोषणा की थी। यह नई घोषणा उसी का एक विस्तार है। इसके पहले ही भारत में लगभग 22 हज़ार कर्मचारी हैं।  
इसी प्रकार मेटा कम्पनी ने आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता की योजनाओं के विस्तार के लिए 900 करोड़ रुपये प्राथमिक रूप में खर्च करने की घोषणा की है। गूगल ने अक्तूबर में आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस केन्द्र तथा डेटा केन्द्र के लिए आगामी 5 वर्षों में 1.35 लाख करोड़ का निवेश करने की घोषणा की है। अंतर्राष्ट्रीय एमेज़ोन कम्पनी ने भारत में अपना निवेश बढ़ा कर 3.6 लाख करोड़ रुपये करने की घोषणा की है। इसी माह तेलंगाना तथा महाराष्ट्र प्रांतों में उसने 1.14 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की थी। देश में इससे 1.2 लाख लोगों को रोज़गार मिल सकेगा। यही कारण है कि देश के कुछ राज्यों में ऐसे निवेश से रोज़गार की अधिक सम्भावनाएं बढ़ी दिखाई देती हैं।
इससे इन राज्यों की आर्थिकता प्रत्येक पक्ष से और मज़बूत होगी। इन राज्यों में अब तक गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना तथा तमिलनाडु अग्रणी रहे हैं। इसी तज़र् पर विगत कुछ दशकों से अन्य अलग-अलग राज्यों ने भी ऐसी नीतियां अपनानी शुरू की हैं, जो विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकें। राजस्थान भी इस संबंध में विशेष रूप से सक्रियता बढ़ा रहा है, परन्तु इस विस्तार संबंधी भारत सरकार को इस पक्ष से और भी अधिक सचेत होकर चलने की ज़रूरत होगी, ताकि देश की समूची स्थिति को समझते हुए विदेशी निवेश को उत्साहित करने के साथ-साथ देश के नागरिकों के लिए अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर पैदा किए जा सकें और इस तरह देश के विकास की गति को भी तेज़ किया जा सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द 

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