मिटने न दें चिड़ियों का वजूद

प्राकृतिक प्रेमी जानते हैं कि चिड़िया वर्षों से हमारे परिवारों का अटूट हिस्सा रही है। छतों पर सूखते गेहूं के दाने, रोटी के टुकड़े चुन-चुन कर इकट्ठा करती रहती थी। घरों में लगे पेड़ों पर उसके घरौंदे होते और सारा दिन उसकी चहचहाहट में बीत जाता। फिर घरों ने महलों का रूप ले लिया, हर तरफ बिजली की तारों के जाल, टावरों ने इस पक्षी का घरौंदा छीन लिया और धीरे-धीरे हमारा इससे नाता टूटने लगा। बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ होंगे कि चिड़ियों के खत्म होते वजूद को बचाने हेतु पहली बार वर्ष 2008 में प्राकृतिक प्रेमी ‘मोहम्मद दिलावर’ ने नासिक में इसकी पहल की जिनको ‘पर्यावरण का हीरो’ के नाम से भी जाना जाता है और दुनिया का ध्यान इस नन्हे पक्षी के खतरे में पड़े वजूद की ओर दिलाया। यह इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि आज हमारी जीवनशैली में आए बदलाव, ज़हरीले पदार्थों का इस्तेमाल, मोबाइल का बढ़ रहा प्रयोग, किसानों द्वारा पैदावार में वृद्धि के लालचवश बेधड़क कीटनाशकों का प्रयोग, बिजली, फोन, केबल की जालनुमा तारें, टावर, घट रहे पेड़ व जंगल और कम होती घरौंदों व खुराक की तादाद ने चिड़िया के वजूद पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
ची-ची के स्वर के साथ फुदकती नन्ही चिड़िया के वजूद को बचाने हेतु पहला ‘विश्व चिड़िया दिवस’ 20 मार्च, 2010 को पूरे विश्व में मनाया गया। इस दिन स्कूलों, कालेजों में सैमीनार, पेंटिंग मुकाबले करवाकर इस पक्षी की घट रही संख्या को बचाने हेतु लोगों में जागरुकता पैदा की जाती है। जिसमें पेड़ लगाना, घरों की छतों पर पानी रखना, रोटी के टुकड़े डालना, अपनी बॉलकोनी में छोटी टोकरियां टांगना आदि शामिल है। इस काम के लिए गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग भी लिया जा रहा है। विश्व स्तर पर चिड़ियों की कुल 24 प्रजातियां पाई जाती हैं। यह (पांच-छह इंच) आकार का छोटा पक्षी है जिसमें चिड़िया हल्के भूरे रंग व चिड़ा गहरे भूरे रंग का होता है। यह दाने, बीज, कीड़े-मकौड़े आदि खा कर गुज़ारा करती है। नर चिड़िया का आकार मादा चिड़िया से बड़ा होता है। मादा चिड़िया पांच-सात अंडे देती है जिसमें से चौदह दिनों बाद बोट निकल आते हैं जो देखने में बहुत सुंदर लगते हैं। यह ज्यादातर पेड़ों, झाड़ियों में अपना बसेरा बनाती हैं। पर मौजूदा दौर में पेड़ों की जगह ऐसे सजावटी पेड़ों ने ले ली है जिस पर यह अपना घरौंदा नहीं बना सकती और साथ ही बिजली की तारों से करंट खाकर अक्सर मृत देखी जा सकती हैं। चिड़िया एक ऐसा पक्षी है जिसका पंजाबी सभ्चायार में खास स्थान है। लोक गीतों में भी चिड़िया का ज़िक्र आता है। चिड़िया चूंकि एक बहुत ही संवेदनशील पक्षी है, इसी कारण इसकी तुलना पंजाबी मुटियार से की गई है। शादी के मौके पर भी ऐसे ही गीत गाए जाते हैं। पंजाब की कोयल गायिका सुरिन्द्र कौर द्वारा गाए गीत में भी चिड़ियों का ज़िक्र आता है। ‘साडा चिड़ियां दा चंबा वे, बाबुल असां उड़ जाना...’ हम सब को इस मासूम पक्षी की विलुप्त होती प्रजाति को बचाने के लिए प्रयास करने चाहिए और ऐसे पेड़ लगाएं जिस पर यह मासूम पक्षी अपना घरौंदा बना सके। अगर हम यूं ही इस मासूम से मुख मोड़ लेंगे तो भविष्य में लुप्त होती इसकी प्रजाति सिर्फ तस्वीरें बनकर हमारी यादों में कैद हो जाएगी और हम कभी ची-ची की मधुर आवाज़ नहीं सुन पाएंगे।