क्या आज की युवा पीढ़ी को नया खाका, नई सोच चाहिए ?

यह बात तो हम कई बार सुन चुके हैं कि भारत युवा वर्ग का देश है। आज देश की 65 करोड़ जनसंख्या 35 वर्ष की आयु से कम कही जाती है। प्रधानमंत्री जी ने दावोस में विश्व की अर्थव्यवस्था पर भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा था कि भारत विश्व के निवेशकर्ताओं को निमंत्रण देता है कि वे यहां आकर हमारे युवा वर्ग की ऊर्जा एवं समर्पण भावना से कार्य करने की क्षमता का लाभ उठाएं। एक बात तो सर्वमान्य है कि विकास की यात्रा कभी सम्पूर्ण नहीं होती, हमेशा चलती रहती है। इसी तरह बेरोज़गारी की समस्या का समाधान भी पूर्ण नहीं होता क्योंकि प्रति वर्ष लाखों शिक्षित युवक पुन: समाज में आ जाते हैं। सरकारें रोज़गार और स्वरोज़गार के लिए प्रयत्नशील नज़र आती ही रहती हैं और चिंतन भी करती ही रहती हैं। शब्दों की बारात वायदों के रथ के पीछे उम्मीदों की राहों पर चलती रहती है। फिर भी मंज़िल से दूर दिखाई देती हैं। शहरी और ग्रामीण भावनाओं में एकरूपता न पहले थी न अब है। वैश्वीकरण के युग में युवा वर्ग के लिए प्रतिस्पर्धात्मक सोच पर भी बहुत कुछ करना होगा। आज का युवा वैसा नहीं जो आज से 20-30 वर्ष पूर्व का हुआ करता था। इलैक्ट्रानिक एवं डिज़ीटल क्रान्ति ने सोच ही बदल कर रख दी है। आकाश में सितारों को छूने की आकांक्षा रखने वाली करनाल की कन्या कल्पना चावला ने 1997 में सूक्ष्म गुरुत्व के नासा के मध्य खोजी अभियान पर जाकर भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री होने का इतिहास बनाया। हमारे युवा वर्ग के लिए आदर्श तो हो ही सकती थी क्यों नहीं हुई? आज देश का युवा वर्ग रास्ता क्यों भटक गया? एक अनुमान के अनुसार हर दो घंटे में दुष्कर्म अथवा नारी शोषण की घटना हो रही है, ऐसा क्यों हो रहा है? कहां गए हमारी मर्यादाओं, परम्पराओं और संस्कृति के बंधन। क्या यह खोखले शब्द ही तो नहीं रह गए, हत्याएं और लूट-खसूट की वारदातें कौन कर रहा है? कई धनाढ्य घरानों के बच्चे भी ऐसी वारदातों में संलिप्त पाए गए। क्या हमनें युवा वर्ग को राम भरोसे छोड़ दिया है? राजनीति, अर्थव्यवस्था, धर्म, उद्यमशीलता और वैश्विक मुद्दों के बारे में चिंतन करना क्या आज के युवा वर्ग ने छोड़ दिया है? जाति-पाति के चक्रव्यूह में क्यों फंसता जा रहा है? कुछ माह पूर्व गुजरात में चुनाव हुए वहां एक युवक हार्दिक पटेल ने पाटीदारों की भावनाओं को उभारा तो जिग्नेश मेवानी ने दलित वर्ग में हलचल पैदा कर दी। कुछ ऐसे ही तौर-तरीके उत्तर प्रदेश और बिहार में भी देखने को मिले। वर्ग विभाजन केवल इसलिए कि चुनाव में विजय प्राप्त की जाए, क्या यह युवा वर्ग के हित में हुआ? जिस देश में बुजुर्गों को सम्मान देना सभ्यता मानी जाती है, उस देश और संस्कृति में भारतीय युवा काफी हद तक दरकिनार किए गए हैं।
क्या अनुभव ने नए विचार को आगे बढ़ने का अवसर दिया? युवा वर्ग में क्यों निराशा पनप रही है, इस पर क्या कभी गम्भीरता से सोचा गया? गत दिनों शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जनाब रिज़वी ने कहा था कि मदरसों से कुछ आतंकवादी भी निकलते हैं। दीनी शिक्षा के नाम से साम्प्रदायिक घृणा का पाठ भी पढ़ाया जाता है। हम इससे सहमत न भी हों तो भी उत्तर प्रदेश सरकार को जनाब रिज़वी के बयान को संजीदगी से लेना होगा। यदि ऐसा न हो तो गत दिनों तीन-चार ऐसे कश्मीरी युवकों का समाचारों में आना जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकने के बाद भी आतंकवाद की राह पर चल पड़े। इन युवकों का परिवार मां-बाप बहनें आदि ज़ारोजार रोते हुए टी.वी. चैनलों ने दिखाए भी थे। यह सब कट्टरवाद, जिहाद और नफरत के कारण ही हुआ अनुभव होता है। भ्रष्टाचार जो निचले स्तर से ऊपर की तरफ चाहता है उसमें भी युवा वर्ग में निराशा के साये गहरे बैठ चुके हैं। छोटी सी छोटी बात के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। ऐसा कहने वाले युवक देश के प्रति उदासीन से दिखाई देते हैं। गत दिनों एक पूर्व चेयरमैन को न्यायालय ने सात वर्ष की सज़ा सुनाई जो सिविल सर्विसिज़ के लिए धन बटोरता रहा। इसी तरह हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री को नौकरियां देने के लिए रिश्वत लेने पर दस वर्ष की सज़ा का समाचार भी सुनने को मिला। भ्रष्टाचार उन्मूलन के दावे तो बहुत किए जाते हैं, परन्तु कुछ बात है कि भ्रष्टाचार काबू में नहीं आ रहा। हम यह नहीं कहते कि बात पूरी तरह बिगड़ चुकी है, अभी भी सुधार के कई रास्ते हैं, जिन पर हम आज की युवा पीढ़ी को नया खाका और नई सोच दे सकते हैं। प्रधानमंत्री जी ने दावोस में यही बात तो कही कि भारत एक युवा देश है, जिसमें हुनरमंदी भी है और काम करने की लगन भी। श्रम और कार्यनिष्ठा की भी कमी नहीं। इसीलिए दस करोड़ भारतीयों को मुद्रा योजना के तहत चार लाख करोड़ से अधिक धन उपलब्ध कराया गया, जिससे रोज़गार के कई अवसर युवा वर्ग को मिले। दस करोड़ में से तीन करोड़ वे भारतीय हैं, जिन्होंने पहली बार किसी बैंक से कज़र्ा प्राप्त किया। रोज़गार के लिए एक खाका युवा पीढ़ी के आगे रख दिया गया है। वे स्वयं भी रोज़गार प्राप्त करें और अपने साथ कुछ और लोगों को भी सहभागी बनाएं। आज देश में युवा वर्ग किसी क्षेत्र में भी कार्यरत हो वह आगे बढ़ने के लिए महत्वाकांक्षी नज़र आता है। वह युवक जो छोटी से छोटी बात पर पत्थरबाज़ी और आगज़नी करना, तोड़-फोड़ जैसे कदम उठा लेना अपना जुनून बना लेते हैं, उनको नाकारात्मक सोच को सकारात्मक  सोच की तरफ लाना चाहिए। यह कार्य बढ़ती नेतागिरी तो कर नहीं सकती उसे युवा वर्ग को आगे लाना होगा जो अपने पीछे अन्य युवकों को चलने की प्रेरणा दे सके। आजकल जातपात के मामले में फिर अराजकता का वातावरण बनाने वाले नेता तो युवा वर्ग को गुमराह नहीं कर रहे? इस पर संजीदगी से सोचना होगा।