खूनी खेलों के मजबूर योद्धा थे  

इस ब़गावत ने एक बार रोमन साम्राज्य की जड़ें हिला कर रख दी। स्पारटैक्स भी गुलामों की तरह बिका हुआ रोम से करीब 120 मील दक्षिण में कैपुया नामक प्रशिक्षण केन्द्र में लाया गया था। यह शुरू से ही विरोधी स्वभाव का था। इस केन्द्र में एक दिन सिपाहियों और गुलामों के बीच रसोई में कुछ धक्का मुक्की हो गई। झगड़ा बढ़ गया और सत्तर के करीब ग्लैडीएटज़र् योद्धाओं ने स्पारटैक्स की अगुवाई में तैनात सिपाहियों को मार कर केन्द्र पर कब्ज़ा कर लिया। स्पारटैक्स की पली सूरा भी इस ब़गावत में शामिलथी। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि उसका असली नाम इतिहास की गहरी परतों में कहीं घुम गया है। रसोई में से चाकू, किरचे और अपने पारम्परिक हथियार पकड़ कर यह छोटा-सा ब़गावती दल रोम को चल पड़ा। रास्ते में जहां कहीं भी इन को जागीरों में कैद होने की खबर मिली, यह हमला करते गए और उनको छुड़ा कर आगे बढ़ते गए। हर नए दिन इस दल की संख्या बढ़ती गई। लड़ने-मारने में माहिर इन योद्धाओं को जहां कहीं भी रोमन सेना मिलती, मौत के घाट उतारते गए। इस ब़गावत की खबरें जब रोम पहुंची तो रोमन साम्राज्य की ओर कई सेना टुकड़ियां इस दल का रास्ता रोकने के लिए भेजी गई। यह ग्लैडीएटर एक-एक से हाथों से लड़ाई में तो माहिर थे लेकिन पूरी तरह प्रशिक्षित और जंगी राजनीति से निपुण सेना से लड़ने की समर्था इनमें नहीं थी। इसके बावजूद स्पारटैक्स की अगुवाई में इस दल के छ: बार रोमन सेनाओं को बड़ी बेदर्द तरीके से हराया। स्पारटैक्स के अलावा कर्किसुस और ऊनेमाउस इस दल के उप-मुखिया थे। कुछ वर्षों में स्पारटैक्स के दल की संख्या 40 हज़ार तक पहुंच गई। रोम साम्राज्य इस ब़गावत से पूरी तरह हिल गया। आखिर प्रसिद्ध रोमन जरनल करासुस ने इस ब़गावत के खिलाफ कमान सम्भाली। करासुस को सेना के सबसे बढ़िया तीर अंदाज़ और हथियार उपलब्ध करवाए गए। इस ब़गावत को दबाने के लिए बहुत किस्म के दांव-पेच और राजनीति का प्रयोग किया गया जिसकी चर्चा इस छोटे से लेख में करनी मुश्किल है। स्पारटैक्स को कई किस्म के धोखों का भी शिकार होना पड़ा। आखिर करीब एक वर्ष की ब़गावत के बाद अप्रैल 71 ई. पूर्व में रोमन सेनाओं के साथ हुए एक भयंकर मुकाबले में स्पारटैक्स की मौत हो गई। कहा जाता है कि मरे समय स्पारटैक्स अपने साथियों को यह कहकर घोड़े से उतरकर लड़ने लग पड़ा कि अगर हम जीत गए तो दुश्मन के घोड़े भी हमारी मलकियत होंगे और अगर मैं मर गया तो मुझे किसी घोड़े की ज़रूरत नहीं पड़नी। इस युद्ध में स्पारटैक्स के शव की पहचान नहीं हो सकी। अनुमान है कि उसका शरीर इस लड़ाई में मरे हुए बहुत-से गुलामों के साथ साझी कब्र में ही कहीं दफन हो गया। उसकी मृत्यु के बाद पकड़े गए हज़ारों गुलामों को रोम के शाह राहों के ऊपर स्लीबों पर लटका दिया गया। उस समय से लेकर अब तक स्पारटैक्स की बहादुरी के सैकड़ों साहित्य लिखे गए। हॉलीवुड की दर्जनों फिल्मों में उसकी वीरगाथा को फिल्माया गया। स्पारटैक्स को यूरोपियन संस्कृति में आज़ादी के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है। वर्तमान समय में ग्लैडीएटरों की यह कहानी हद से अधिक गैर-मानवीय और दर्दनाक महसूस होती है और हम सोचते हैं कि वह किस तरह के लोग थे जो आपस में लड़ते-मरते मनुष्यों को देखकर मन बहलाते थे। ़खैर, मानव का इर्द-गिर्द कितना भी बदल जाए लेकिन उसकी मानसिकता कभी नहीं बदलती। आज का आधुनिक इन्सान भी खून-खराबों से भरी हिंसक फिल्मों और डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. के पहलवानों को रिंग में एक-दूसरे की हड्डियां तोड़ते और कुर्सियों के द्वारा सिर में से खून बहाते हुए देखकर ग्लैडीएटरों के दर्शकों की तरह ही खुशी से चीखें मारता है। यह अलग बात है कि आज के पहलवान ज्यादा चालाक पेशेवर हैं और किसी के गुलाम नहीं हैं, सो वह अखाड़े में लड़ते कम और अदाकारी ज्यादा करते हैं। समय बदला है, पदार्थवादी सुख-सुविधाएं के रूप बदले हैं, लेकिन हिंसा और खून-खराबे में मनोरंजन ढूंढने वाली दर्शक कक्षा अभी भी मौजूद हैं।