देवता के रूप में कुपात्र दुर्योधन

महाभारत में कौरवों की सेना में जो अत्यधिक क्रूर दुष्ट प्रकृति का खल आचरण का पात्र है, वह है दुर्योधन। महाभारत के दर्शकाें, श्रोताओं एवं उसके बारे में जानकारी रखने वालों में कोई भी ऐसा मानव न होगा जो दुर्योधन के दुष्ट आचरण के कारण उससे घृणा न करता हो लेकिन हमारे विशाल भारत में एक स्थान ऐसा भी है जहां पर भगवान की तरह दुर्योधन की पूजा की जाती है और उसका मंदिर भी विद्यमान है।
इस क्षेत्र में दुर्योधन को भगवान दुर्योधन के नाम से जानते हैं। यहां के लोगों की इसमें असीम आस्था है। अपनी तरह का यह विशेष मंदिर गुजरात प्रान्त के टुरगांव नामक गांव में बना हुआ है जो अहमद नगर जिले की करजह तहसील के अंतर्गत आता है। इस गांव का नाम भी दुर्योधन के नाम से पड़ा था। ॒ग्रामवासियों के अनुसार ऐसा मंदिर भारत में अन्यत्र कहीं नहीं है।
इसके संबंध में बताया जाता है कि जब दुर्योधन पांडवों से युद्ध में हार गया तो वह छिपता भागता यहां स्थित तालाब में जा छिपा लेकिन तालाब ने कपटी दुर्योधन का साथ नहीं दिया। पूर्णोक्तियों के अनुसार दुर्योधन को इस कृत्य पर अत्यंत क्रोध आया। उस क्रोध के कारण उसकी लाल आंखों को देखकर बादलों ने भी डर के मारे उस क्षेत्र में पानी बरसाना बंद कर दिया लेकिन जब दुर्योधन को दूसरी जगह छिपने का स्थान न मिला तो वह वहीं स्थित जंगल में बैठ कर शिवजी की तपस्या करने लगा। 
तपस्या से शिवजी प्रसन्न हुये और उन्होंने वरदान दिया कि युद्ध में उसे अर्जुन न हरा पायेगा, न ही उसे मार पायेगा। जब दुर्योधन लौटा तो उसे युद्ध में भीम के हाथों परास्त होना पड़ा। अन्तिम समय उसे भगवान की याद आयी तो भगवान ने उसे मंदिर में शरण दी और दुर्योधन वहीं पर स्वर्ग सिधार गया। तब उस स्थान पर भगवान शंकर के साथ दुर्योधन की मूर्ति की स्थापना मंदिर में की गयी।
इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि यह मंदिर चतुर्मास बरसात के महीनों में बंद कर दिया जाता है। इस संबंध में भी  दूसरी पूर्वाक्ति है कि दुर्योधन महाराज ने नाराज होकर  बादलों ने भी बरसना बंद कर दिया था। इसी भ्रांति के डर से ग्रामीण लोग मिल जुल कर मंदिर के द्वार को पूर्णत: बंद कर देते हैं जिससे दुर्योधन की निगाह बादलों पर न पड़ सके और वे उस क्षेत्र में बरसते रहें। बरसात के बाद यह कपाट आठ महीनों के लिये दर्शनार्थ खुले रहते हैं।
यह महाराज दुर्योधन का विशाल मंदिर एक विशाल प्लेटफार्म पर पत्थरों से बना हुआ है जो हेमाड़ पंथी शैली में निर्मित है। मंदिर प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है। यह मंदिर काफी ऊंचा है। मंदिर के अंदर दो शिवलिंग प्रतिमायें विराजमान हैं। इनमें से एक प्रतिमा चौकोर काले पत्थर की तथा दूसरी गोलाकार श्वेत प्रस्तर की निर्मित है।
शिवलिंग से हट कर दूसरी तरफ दुर्योधन महाराज की मूर्ति विराजमान है जो लगभग दो फुट ऊंची है। यह मूर्ति पूर्व दिशा तथा दक्षिण के बीच मुंह किये हुये है। यह प्रतिष्ठित मूर्ति प्रस्तर निर्मित है जिस पर चूना पुता हुआ है तथा एक विशेष रंग से भी रंगी हुयी है। दुर्योधन की काली पड़ी मूंछें भी इस मूर्ति में प्रदर्शित हैं। सिर पर मुकुट भी बना हुआ है। 
इस मंदिर का निर्माण आठ सौ साल पहले का बताया जाता है। यहां पर विशेष कर बंजारा तथा मराठा जाति के लोग रहते हैं जो उनके (दुर्योधन) अनन्य भक्त हैं। इन लोगों की भगवान दुर्योधन के प्रति अटूट॒ श्रद्धा है। उनका विश्वास है कि जरा सी विनय पूजा करने पर भगवान दुर्योधन मनोकामना पूर्ण करते हैं

 (उर्वशी)
-एच.एच. सोनकिया