गुणों का भंडार है लहसुन


लहसुन दैनिक प्रयोग में आने वाला एक मसाला है। यह अपनी औषधीय क्षमता के लिए विख्यात है।
लहसुन का बोटेनिकल नाम ‘एलियन सेटाइवा गलिक’ है। कहीं-कहीं बोलचाल की भाषा में लोग इसे रसोन भी कहते हैं।
आइए इसके उपयोग के बारे में कुछ हम भी जानें।
स्नलहसुन का तेल लगाने से कड़ी से कड़ी गांठ गल जाती है। वात रोग व लकवे में तो इसका प्रयोग रामबाण के समान लाभदायक है। इस बीमारी में लहसुन के तेल की मालिश से जहां मांसपेशियों को पुनजीर्वित होने का मौका मिलता है।
स्नलहसुन पीसकर पुलटिस बांधने से दमा, गठिया, सायटिका तथा अनेक प्रकार के चर्मरोग दूर हो जाते हैं। इसकी पुल्टिस जहां चोट लगे या सूजे भाग की सुजन व दर्द भगाती है, वहीं उसमें कुष्ठ रोग तक को दूर कर देने की क्षमता होती है। 
स्न लहसुन में ‘एलीन‘ नामक जैव-सक्रि य पदार्थ पाया जाता है, जो प्रचण्ड जीवाणुनाशक होता है। इसकी जीवाणुनाशक क्षमता कार्बोलिक एसिड से भी दुगुनी होती है।
स्न लहसुन के लेप से जहां फोड़े-फुंसी शीघ्र पककर ठीक हो जाते हैं, वहां दाद-खुजली भी मिटती है।
स्न प्रतिदिन प्रात: एक या दो  लहसुन की फली खाने वाले को कभी भी कब्ज नहीं होती।
स्न जाड़े के मौसम में तो लहसुन का प्रयोग आंतरिक और बाह्य दोनों (खाने तथा तेल में पका कर मालिश करने) दृष्टि से अतीव उपयोगी है।
लहसुन  में अनेक औषधीय गुण भरे पड़े हैं किन्तु इसका अत्यधिक प्रयोग फिर भी वर्जित है। अधिक प्रयोग से आंत्रशोध तथा अन्य बीमारियां हो सकती हैं। तामसी प्रवृत्ति के होने के कारण साधनादि करने वालों के लिए भी इसका प्रयोग वर्जित है। (स्वास्थ्य दर्पण)
-विपिन कुमार