मणिकरण जहां सतत् बहता है गर्म पानी का चश्मा

गर्म पानी के चश्मे भारत में कई स्थानों पर हैं। इन में अधिक प्रसिद्ध यमनोत्री, बदरीनाथ, बिहार में राजगीर के पास व हिमाचल में कुल्लू और कांगड़ा में झीर बल्ला गांव के पास वाले चश्मे बहुत ही प्रसिद्ध रहे हैं। कुल्लू से नीचे भून्तर से एक मार्ग मनाली व वशिष्ट को जाता है। दूसरा ब्यास व पार्वती लांघने के बाद पार्वती के किनारे किनारे मणिकरण चश्मे को जाता है। यहां का दृश्य बहुत मनोरम व सुंदर है। कुल्लू से यह स्थान लगभग 40 किमी है। बसें व अपनी गाड़ियां आ-जा सकती हैं। मणिकरण पहुंचने पर यहां के दृश्य का वर्णन करना अत्यंत कठिन होता है। दोनों ओर बड़े बड़े शिखर हैं व बीच में कलकल करती हुई पार्वती हिम तुल्य जल को ले कर तीव्र गति से नीचे की ओेर भाग रही है। ब्यास की अपेक्षा इस में बहुत जल राशि हिम जैसी है। फिर इसी स्थान पर गर्म पानी का अथाह जल मणिकरण में है। भगवान के चमत्कारों का भी कोई अंत नहीं। जो भी यात्री यहां पर आता है, वह आश्चर्य में पड़ जाता है। यहां जितने भी सरोवर हैं, उन सब का जल खौलता हुआ है। शरीर के किसी भी भाग पर पड़ जाये तो वह भाग जल जाता है। यहां पर सेब, खुमानी, अलूचे आदि के बाग भी मन को मोह लेते हैं।यहां आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु भगवान की महिमा के आगे नतमस्तक हो जाता है। यहां आकर मंदिरों के दर्शन व गुरुद्वारे में जा कर के मन को मानसिक शांति प्राप्त होती है। सागर तट से घाटी की ऊंचाई लगभग 5500 फुट से अधिक ही है। ऊपर की चोटियां तो दस बारह हजार फुट की होंगी । उन पर अधिकतर समय हिम पड़ा रहता है। यहां पर जो पर्वत शिखर हैं, उन को हरेन्द्र गिरि कहा जाता है। कुल्लू के अन्य स्थानों से यह स्थान अपेक्षाकृत ठंडा अनुभव हुआ। वैसे इस स्थान की अनुपम सुन्दरता और प्रकृति की अनोखी शोभा को देख कर हैरानी होती है। मणिकरण के विषय में पुराणों में वर्णन आया है। ऐसा कहा जाता कि यहां पर पार्वती के कानों की मणि गिरने से इस का नाम मणिकरण हुआ था। यहां के पुजारी ने यह भी बताया कि सन 1905 ई0 से पहले यहां पर राम मंदिर के पास जो चश्मा है, उस का गर्म जल दस से पन्द्रह फुट तक ऊंचा फुहारे की भांति अपने आप बिना किसी मानवीय शक्ति से उठता था। साथ कई प्रकार की मणियां व रंग बिरंगे छोटे छोटे मूल्यवान पत्थर भी निकलते थे। यहां के अधिकतर गर्म चश्मों का जल 65 से 90 अंश सैंटीग्रेड तक तापमान का होता है। आज तक यहां की उष्णता का वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा सके। अन्य कई स्थानों पर गंधक का प्रभाव बताते हैं पर यहां पर ऐसा नहीं देखा गया।  यह पानी बाद में पार्वती नदी में मिल जाता है व वहां पर धुआं ही धुआं लगता है।  प्रकृति की विविधता व विचित्रता देखने वाली है। यहां का वर्णन करना बहुत ही कठिन है। यहां पर पके हुये अन्न में किसी प्रकार सुगन्धि आदि नहीं होती। यहां पर दाल व भात आदि इन गर्म स्रोतों में ही पकाया जाता है। खाने में भी स्वादिष्ट होता है। जितना समय आग पर पकने में लगता है, उतना ही समय चश्मे के पानी में लगता है। बड़ी-बड़ी चरोटियों में चावल व दाल डाल कर इस पानी में छोड़ दी जाती हैं। लकड़़ी व गैस की बहुत बचत रहती है। जहां पुजारी लंगर लगाते हैं, वहां पर राम चन्द्र का मंदिर भी है। इसका इतिहास भी पुराना बताया जाता है। कुल्लू तथा कौलांत पीठ में प्राचीन काल में पाल राजाओं का राज्य रहा। पहले राजा सच्चिदा पाल हुए। इस के बाद कैलाश पाल हुए। इनके बाद उषापाल जगत सुख ने शासन किया। उस समय छोटी छोटी रियासतें थीं। ये राजा नगर में रहते थे। पालवंश में अंतिम राजा कैलाश पाल हुए।  इस संबंध में पुराणों से सम्बंधित एक कथा भी सुनाई जाती है। कहते हैं कि एक बार यहां पर शिव व पार्वती भ्रमण के लिये आये। जब वे हिमालय के इस भाग में पहुंचे तो यह स्थान उन को बहुत  सुंदर लगा। दोनों ने लगभग 11000 वर्ष तक यहां निवास किया। एक बार जलक्रीड़ा करते हुये पार्वती मां के कानों में पहनने वाली एक मणि जल में गिर गई। उस को ढूंढने के लिये शिव भगवान ने अपने अनेक गणों को बुलाया व आदेश दिया कि मणि को ढूंढ कर के लाओ। बहुत खोजने पर भी मणि नहीं मिली।  शिव शंकर को बहुत क्रोध आया जिस कारण उनका तीसरा नेत्र खुल गया। इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। सभी देवता शंकर भगवान के क्रोध से भयभीत हो गये। यहां तक कि शेषनाग भी प्रकम्पित हो उठे। शेषनाग ने महादेव के क्रोध को शांत करने के लिये जोर का फुंकारा छोड़ा जिस से वहां उबलते हुए पानी का एक फव्वारा लगभग 11 फुट ऊंचा जा गिरा। कहते हैं, इस पानी की धारा में अनेक मणियां पार्वती के कान की गुम हुई मणि के साथ बाहर निकल आईं।  पार्वती जी ने अपनी मणि को प्राप्त करके अन्यों को अमूल्य पत्थरों में बदल दिया। उस के बाद शंकर का क्रोध समाप्त हुआ। उस समय से इस स्थान का नाम मणिकरण हुआ। इस स्थान को शिव की आराधना के कारण अर्ध नारी क्षेत्र भी कहा जाता है। जब शिव काशी गये तो वहां पर भी गंगा के एक घाट का नाम मणिकर्णिका घाट रखा। यहां पर यात्रियों को काफी सुविधायें मिलती हैं। लंगर की व्यवस्था भी राम मंदिर व गुरुद्वारे में रहती है। इसके अतिरिक्त होटल व लॉज आदि भी हैं। जब भी समय मिले, एक बार यहां जीवन में जरूर जायें। इसका जल पी कर के मनुष्य स्वर्ग की तृप्ति को प्राप्त करता है। सब तीर्थों से मणिकरण श्रेष्ठ है। यहां का विष्णु कुण्ड अत्यंत पवित्र है। इसी कारण शंकर भगवान हजारों वर्षों तक यहां रहे थे।  यहां से आगे 24 किमी पर खीर गंगा तीर्थ आता है।

-सुदर्शन अवस्थी इन्दु