आंखों का सुरक्षा कवच भी है चश्मा

हमारे शरीर का एक नाजुक व महत्त्वपूर्ण अंग हैं आंखें। यदि इनकी सही देखभाल न की जाये तो ये देखना भी बंद कर सकती हैं। तब तरह-तरह के सुंदर व सुखद नजारों से भरी यह दुनिया सिर्फ धुंधली या अदृश्य दिखाई देने लगेगी।
आंखों के इर्द-गिर्द की त्वचा भी अत्यंत कोमल होती है जो तेज धूप से सुरक्षा न होने पर अक्सर झुलस जाया करती है और आंखों के नीचे काले धब्बे पड़ जाते हैं। तेज धूप के अलावा गंदा पानी या धूल-मिट्टी के कण भी आंखों के लिए घातक साबित हो सकते हैं।
दिनों-दिन इसकी बढ़ती हुई मांग के कारण चश्मा उद्योग में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है किन्तु इस बढ़ोतरी का एक नुकसान यह हुआ है कि पैसा कमाने की लालसा में कुछ कंपनियों ने साधारण चश्मे बना दिये जो सस्ते और क्षणिक आनंद देकर आंखों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, अत: चश्मा पहनने अथवा खरीदने से पूर्व कुछ बातों की जानकारी अवश्य होनी चाहिए जैसे लैंस की क्वालिटी आदि। आंखों की पावर इत्यादि की जांच करवा लें। इसके लिए किसी अच्छे शोरूम से चश्मा लिया जाये तो बेहतर होगा क्योंकि वहां चश्मा थोड़ा महंगा तो मिलेगा किन्तु उसके अच्छा होने की गारंटी होती है।
चश्मे का जीवन उसके लैंस में होता है। आजकल प्लास्टिक और शीशे के लैंसों का चलन अधिक है किन्तु हल्के व मजबूत होने के कारण प्लास्टिक के लैंस शीशे के लैंसों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ होते हैं। लैंस खरीदने से पूर्व उसका रंग भी अवश्य जांच लेना चाहिए। यदि ये रंग तेज रोशनी से निजात दिलाने में सक्षम हों, तभी खरीदें क्योंकि आजकल प्रचलित हरा, भूरा व मिश्रित काला रंग आंखों को तो नुकसान पहुंचाता ही है, साथ में चेहरे की सुंदरता भी बिगड़ जाती है। 
यदि चश्मा पहनने के तुरंत बाद सिर व आंखों में दर्द होने लगे तो उसे उसी क्षण उतार देना चाहिए क्योंकि यह उसमें दोष होने का लक्षण है। चश्मे के संदर्भ में यह जानकारी भी आवश्यक है:-
चश्मे को कभी नाखून, कागज, गंदा कपड़ा या उंगली आदि से साफ न करें।

(स्वास्थ्य दर्पण)