पोषक तत्वों का भंडार है मोटा अनाज


हाल ही में सरकार ने 2018 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया है। सरकार का मानना है कि ज्वार तथा बाजरा जैसे मोटे अनाजों में भरपूर पोषक तत्व होते हैं और देश के नागरिकों के स्वस्थ पोषण के लिए इन अनाजों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सरकार स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में भी मोटे अनाज का इस्तेमाल करेगी ताकि बच्चों को अच्छा पोषण मिल सके। पहाड़ के गांवों में पहले मोटा अनाज मंडुआ, सांवा आदि की पर्याप्त खेती होती थी। कारण, इस मोटे अनाज के लिए सिंचित ज़मीन की ज़रूरत नहीं थी लेकिन खाने में यह ज्यादा स्वादिष्ट नहीं था तो मां से हमेशा मंडुआ की रोटी की जगह गेहूं की रोटी और सांवा की जगह चावल की मांग रहती थी। तब पिताजी कहते थे कि पहाड़ पर तेजी से चढ़ना है और हट्टा-कट्टा बना रहना है तो रोज मंडुवे की दो रोटी खाओ।
चना, गेहूं, मटर, मूंग, चावल, बाजरा, कोदो, जौ, मक्का, ज्वार, कुटकी, रागी, उड़द वगैरह तमाम तरह की फसलें पुराने समय में काफी बड़े रकबे में उगाई जाती थीं। इन लघु धान्यों को अनाज भी कहा जाता है। दानों के आकार के आधार पर मोटे अनाजों को दो भागों में बांटा गया है। पहले मोटा अनाज जिनमें ज्वार और बाजरा आते हैं। दूसरा है लघु धान्य अनाज जिनमें बहुत छोटे दाने वाले मोटे अनाज जैसे रागी, कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी वगैरह। 
लघु धान्य फसलों में ‘प्रोसो मिलेट’ सबसे ज्यादा पौष्टिक और स्वादिष्ट अनाज है। इसकी खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है। अन्य अनाजों की तुलना में यह एक लघु मौसमी फसल होती है जो बुआई के 60 से 75 दिनों में पक जाती हैं। ‘फिंगर मिलेट’ लाल रांग का दानेदार अनाज है। इसका फसल चक्र 3 से 6 महीनों में पूरा होता है। बता दें कि दक्षिण भारत में इसकी खेती बहुतायत की जाती है। पोषक तत्वों की उपलब्धता के कारण इसमें कैल्शियम और प्रोटीन बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसमें पाई जाने वाली खूबियां इसलिए भी और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि इसमें सभी ज़रूरी अमीनो अम्ल पाए जाते हैं, जिनकी भरपाई इन्सान द्वारा अपनी खुराक के द्वारा होती है। इसके अलावा विटामिन ए, विटामिन बी और फास्फोरस भी मौजूद हैं और रेशों की अधिकता के कारण शरीर में कब्ज़, मधुमेह और आंतों के कैंसर आदि रोगों से बचाव करने में भी सक्षम हैं।
यह कम पौष्टिक अनाज गरीब लोग खाते हैं पर यदि पोषक तत्वों की उपलब्धता की दृष्टि से देखा जाए तो यह साबित हो जाता है कि लघु धान्य अनाज गेहूं और चावल आदि की तुलना में इस मामले में काफी धनी होते हैं। लघु धान्य अनाज में प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, लोहा, विटामिन और अन्य खनिज पदार्थ चावल और गेहूं की अपेक्षा दोगुनी मात्रा में पाए जाते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने इन अनाजों की पौष्टिकता श्रेष्ठता को समझाया है। 
कोदो में 633 फीसदी अधिक खनिज तत्व पाए जाते हैं। रागी में 3340 फीसदी कैल्शियम और बाजरा में 85 फीसदी फास्फोरस पाया जाता है। इन सबके अलावा लघु धान्य अनाज विटामिनों का भी खजाना है। जैसे थायमिन, राइबोफ्लोविन और बफोलिक अम्ल (बाजा), नियासिन जैसे विटामिन इन लघु धान्यों में बहुतायत होते हैं।
आज पूरी दुनिया में लघु धान्य खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है। इनके विभिन्न प्रकार के पूरक पदार्थ भी विकसित किए जा रहे हैं, जिनको तकनीकी भाषा में फंक्शनल फूड या न्यूट्रासुटिकल कहा जाता है। इनके सेवन से तमाम तरह के रोगों से छुटकारा मिलता है।
मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक उपयोगी है और उसका इस्तेमाल बताया जाना चाहिए। यही स्थिति जौ जैसे अनाज की भी है। पूरे देश में इन अनाजों की बहुत कमी है। इसका बड़ा कारण यह है कि मोटे अनाज की मांग नहीं है। इसलिए इनकी खेती नहीं की जा रही है। 
देश में मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रोत्साहन योजना शुरू करेगी। इसके साथ ही इसे मध्यान्ह भोजन में शामिल किया जा रहा है। मोटा अनाज कम मेहनत से तैयार होने वाली फसल है। इसमें मेहनत कम है और यह आसानी से पैदा होता है। 
इसलिए इसका महत्व कम आंका जा रहा है। मोटे अनाज के बारे में कहा जाता है कि इसमें लौह तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं जो शरीर को मजबूत बनाते हैं और रोगों से लड़ने की जबरदस्त क्षमता शरीर में पैदा करते हैं। 
(स्वास्थ्य दर्पण)
                       —नरेन्द्र  देवांगन