चिंताजनक है बढ़ रहा भीड़-तंत्र

देश भर में फैल रहा भीड़ तंत्र बड़ी चिंता का विषय है। किसी भी घटना से भड़के एकत्रित हुए लोग, किसी व्यक्ति को निशाना बनाकर उस पर टूट पड़ते हैं, उसको बुरी तरह मारते-पीटते हैं। इस तरह वह कानून को अपने हाथों में लेकर स्वयं ही जज, थानेदार और जल्लाद बन जाते हैं। चाहे इन बेहद दुखद घटनाओं को साम्प्रदायिक दंगे नहीं कहा जा सकता, परन्तु भीड़ की मानसिकता ऐसे दंगों से मेल अवश्य खाती है। उदाहरण के तौर पर गत कई वर्षों में गौ-रक्षा के नाम पर देश के अलग-अलग हिस्सों में एकत्रित हुई भीड़ ने कुछ लोगों को पीट-पीट कर जान से मार दिया। इस तरह की घटनाओं से राज्य की सरकारों और केन्द्र सरकार पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है। केन्द्र की मोदी सरकार की छवि इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं ने बेहद धुंधली की है। ऐसा कुछ अधिकतर राजस्थान, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में होता रहा है। अब इसमें महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गुजरात और आंध्र प्रदेश भी शामिल हो गए हैं। पहले स्वयं ही बने गौ-रक्षकों के इतने हौसले बुलंद थे कि अंतत: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी धारण की गई चुप्पी तोड़नी पड़ी थी और उन्होंने कहा था कि गौ-रक्षा के नाम पर किए जाते अपराधों को देश बर्दाश्त नहीं करेगा। इस संबंधी गत वर्ष केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को विशेष हिदायतें भी भेजी गई थीं, परन्तु अधिकतर राज्य इस तरह की घटती घटनाओं में अपने नागरिकों को बचाने में असफल रहे। कईयों की तो इन घटनाओं संबंधी अपनी एक विशेष नीति ही प्रगट होती थी। अब एक घटनाक्रम यह शुरू हुआ है कि अफवाहों और संदेह के आधार पर गत दिनों कम से कम 9 राज्यों में 27 लोगों को हिंसक भीड़ का शिकार होना पड़ा है। यदि ऐसा सिलसिला कम नहीं हुआ, यदि घातक प्रवृत्ति वाले लोगों के हौसले बढ़े हैं, तो इसमें हमारी राज्य सरकारों का भी बड़ा दोष है। केन्द्र सरकार भी स्वयं को इससे बरी नहीं कर सकती। अब एक बार फिर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कई राज्यों में हुई ऐसी घटनाओं के मद्देनज़र राज्य सरकारों को बड़ी फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने स्पष्ट किया है कि ऐसी हिंसा चाहे किसी भी कारण से भड़की हो, उसके लिए संबंधित लोग दोषी होंगे। इसलिए राज्यों को कड़े कदम उठाने होंगे। ऐसे कदमों में हर हाल में भीड़ का हिस्सा बन कर दूसरे लोगों पर हमले करने वाले दोषियों को रोकना, उनको सज़ाएं देना और प्रभावित लोगों को मुआवज़ा देना आदि शामिल हैं। गत दिनों हुईं हिंसक घटनाओं में व्हटसएप तथा फेसबुक आदि पर डाले गए गलत संदेश भी बड़ा कारण बने हैं। किसी भी घटना संबंधी बिना तथ्यों की पड़ताल किए कुछ लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर गलत जानकारी डाली जाती है, जिससे कि आम लोग भड़क उठते हैं। इसलिए सोशल मीडिया के किए जा रहे गलत प्रयोग संबंधी प्रशासनों को कोई प्रभावशाली योजनाबंदी करनी चाहिए, जहां कड़े कानून बनाकर उन पर पूरी तरह अमल करना चाहिए, वहीं राज्यों को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की ज़रूरत है। लगातार हो रहा ऐसा घटनाक्रम देश के लिए अनेक पक्षों से हानिकारक साबित हो सकता है। पहले ही देश के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। इस तरह की घटनाओं से बार-बार फैलती हिंसा देश के लिए बेहद ़खतरनाक साबित हो सकती है। इस पर सख्ती से हर हाल में काबू पाया जाना चाहिए।

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द