कब और कैसे लगता है चंद्रग्रहण

नई दिल्ली, 27 जुलाई (अ.स.) : सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी चांद और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाती है कि चांद धरती की छाया से छिप जाता है। यह तभी संभव है जब सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा अपनी कक्षा में एक दूसरे के बिल्कुल सीध में हों। पूर्णिमा के दिन जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इससे चंद्रमा के छाया वाला भाग अंधकारमय रहता है और इस स्थिति में जब हम धरती से चांद को देखते हैं तो वह भाग हमें काला दिखाई पड़ता है। इसी वजह से इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है चंद्र ग्रहण के दौरान पृथ्वी की छाया की वजह से धरती से चांद काला दिखाई देता है, लेकिन कुछ सेकेंड के लिए चांद पूरी तरह से लाल भी दिखाई पड़ता है। इसी वजह से इसे ब्लड मून कहते हैं। चंद्र ग्रहण के दौरान चांद पृथ्वी से अपनी सर्वाधिक दूरी पर होता है। इस घटना को अपोगी कहते हैं जिसमें पृथ्वी से चांद की अधिकतम दूरी 406700 किलोमीटर होती है। चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण हमेशा साथ-साथ होते हैं और सूर्यग्रहण से दो सप्ताह पहले चंद्रग्रहण होता है।