सरकारी बैंकों का घाटा जून तिमाही में पिछले साल से 50 गुणा अधिक

 मुंबई, 17 अगस्त (एजेंसी): कर्ज की रकम वापस नहीं होने के कारण होने वाली प्रविजनिंग लगातार बढ़ते रहने से जून तिमाही में सरकारी बैंकों का लॉस पिछले साल के मुकाबले पचास गुना से ज्यादा बढ़ गया। इस बीच फंसे कर्जों के ताजा संचयन (फ्रेश बैड लोन एक्युमुलेशन) की रफ्तार सुस्त पड़ी है क्योंकि लोन डिफॉल्ट के बड़े मामले पहले की तिमाहियों में ही बैंकरप्ट्सी कोर्ट के हवाले किए जा चुके थे। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 21 पब्लिक सेक्टर बैंकों का कुल घाटा बढ़कर 16,600 करोड़ हो गया, जो सालभर पहले सिर्फ  307 करोड़ था। इसका पता रेग्युलेटरी फाइलिंग के डेटा से चला है। जून तिमाही में सिर्फ सात बैंकों ने लाभ दिया है जबकि साल भर पहले ऐसे 12 बैंक थे। बॉन्ड प्राइस में उथल-पुथल के चलते हुए ट्रेडिंग लॉस से बैंकों की मुसीबत बढ़ी है, लेकिन आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी के साथ ही प्रमोटरों के रीपेमेंट के बेहतर तौर तरीके अपनाने के चलते बैंकों का डिफॉल्ट्स लेवल बढ़ने के आसार खत्म हो गए हैं। इकरा के ग्रुप हेड फाइनैंशल सेक्टर रेटिंग्स कार्तिक श्रीनिवासन ने कहा, ‘हमारा मानना है कि एनपीए पीक पर पहुंचने वाला है और इस साल के अंत तक एनपीए का लेवल घटता नजर आ सकता है। आरबीआई ने एनसीएलटी भेजे जानेवाले लोन अकाउंट्स के रेजॉलुशन की टाइमलाइन 6 से 9 महीने के बीच तय की है। अगर देरी भी होती है तो फाइनैंशल इयर के अंत तक रेजॉलुशन हो ही जाएंगे।’ एसएमसी इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के बैंकिंग एनालिस्ट सिद्धार्थ पुरोहित ने कहाए श्प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन झेल रहे बैंकों के ऑपरेटिंग परफॉर्मेंस में खासतौर पर ऐसेट क्वॉलिटी के मोर्चे पर कोई सुधार नहीं दिख रहा है। बैंकों के परफॉर्मेंस में तिमाही आधार पर खासा सुधार आया है, लेकिन ऐनालिस्टों का कहना है कि क्राइसिस अभी खत्म नहीं हुआ है। मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशल सर्विसेज के डेप्युटी रिसर्च हेड अल्पेश मेहता कहते हैं, ‘जहां तक स्लिपेज की बात है तो तिमाही आधार पर हालात में सुधार आया है।