ज़िला परिषद् व पंचायत समिति चुनाव: उम्मीदवारों की कमी के कारण राजनीतिक दलों में हलचल

गढ़शंकर, 5 सितम्बर (धालीवाल): प्रदेश में 22 ज़िला परिषद व 150 पंचायत समितियों के सदस्यों के चुनाव के लिए राज्य चुनाव आयोग पंजाब द्वारा 19 सितम्बर को करवाए जा रहे चुनावों के प्रबंधों के लिए जहां प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां जोरों से चल रही हैं वहीं चुनाव मैदान में उतारे जाने वाले उम्मीदवारों की तलाश में लगी राजनीतिक दलों में हलचल मची हुई है। ज़िला परिषद व पंचायत समितियों के चुनाव लड़ने के लिए राजनीतक दलों के नेताओं व वर्करों द्वारा ज्यादा रुचि न दिखाए जाने के कारण प्रमुख राजनीतिक पाटियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उम्मीदवार बनाने के लिए नेताओं व वर्करों के आगे राजनीतिक दलों की हालत मिन्नतें करने वाली बनी हुई है। ज़िला परिषद व पंचायत समिति के लिए पहले दो दिनों में नाममात्र नामांकनों से यह स्पष्ट संकेत मिले हैं कि राजनीतिक दल अभी उम्मीदवारों की तलाश में लगे हुए हैं। हालांकि नेता व वर्करा ज़िला परिषद के चुनाव लड़ने के लिए भी ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे परंतु बड़ी समस्या पंचायत समिति चुनावों के लिए उम्मीदवार ढूंढने की बनी हुई है। कई स्थानों पर तो चुनाव लड़ने के लिए समर्थन करने के बाद भी सम्भावित उम्मीदवार चुनाव लड़ने से इन्कार कर छुपते घूम रहे हैं। कईयों द्वारा तो चुनाव लड़ने से पीछा छुड़ाने के लिए मोबाइल फोन बंद करने या घर से बाहर जाने को प्राथमिकता दी गई है। ऐसे हालातों में राजनीतिक दलों के उच्च नेताओं द्वारा खर्च आदि के लिए सहयोग देने के साथ-साथ अग्रणी नेताओं को भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा है। राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों की कमी के चलते हुए दूसरे दलों के साथ गठबंधन कर, संयुक्त मोर्चे बनाकर चुनाव लड़ने की योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है और नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए अब केवल 6 व 7 सितम्बर के दो दिन ही शेष हैं जिस कारण संबंधित ब्लाकों की कचहरियों व नामांकन दाखिल करने वाले कार्यालयों में रौणक लगने के आसार हैं।
सफेद हाथी जैसे हैं ज़िला परिषद् व पंचायत समिति सदस्यों के पद 
ज़िला परिषद व पंचायत समिति के सदस्य कहलाने के सिवाए यह पद सफेद हाथी जैसे माने जा रहे हैं। ज़िला परिषद का सदस्य तो सरपंच की पावर से कहीं कम माना जा रहा है। हालांकि पंचायती राज कानून के अनुसार ज़िला परिषद सदस्य के काफी अधिकार हैं परंतु इन्हें लागू न किए जा पाने के कारण ज़िला परिषद सदस्य का पद झूठी शान जैसा माना जा रहा है। जहां तक पंचायत समिति के सदस्य के अधिकारों का मामला है, उसके पास पंच जितनी भी पावर नहीं। जैसे पंच/सरपंच किसी व्यक्ति की तस्दीक कर सकते हैं वैसे पंचायत समिति सदस्य के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है। पिछले अर्से दौरान सदस्य रह चुके कई नेताओं को तो पंचायत समिति के सदस्य की बनवाई मोहरें भी नसीब नहीं हुईं। एक पंचायत समिति सदस्य ने बताया कि वह सरकार से अपने चुनाव क्षेत्र में पड़ते गांवों के लिए ग्रांट लाने के लिए तो जद्दोजहद कर सकते हैं परंतु किसी गांव में ग्रांट का उपयोग के लिए उनकी कोई पहुंच नहीं। यहां तक कि सरपंचों द्वारा कोई भी प्रस्ताव डालते समय पंचायत समिति सदस्य को नहीं पूछा जाता। ज़िला परिषद व पंचायत समिति के सदस्यों को सरकार द्वारा कोई भत्ता आदि भी नहीं दिया जाता।
महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षित सीटें होने के कारण हालात बदले 
इस बार ज़िला परिषद व पंचायत समिति चुनावाें में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित कर दिए जाने से चुनावों संबंधी दिलचस्पी भी प्रभावित हुई है। विभिन्न राजनीतिक दलों में रह रहे नेता पार्टी के आदेश पर खुद तो ज़िला परिषद व पंचायत समिति चुनाव के लिए तैयार हो जाते, परंतु कोई भी नेता व वर्कर अपनी पत्नी या अन्य महिला रिश्तेदार को चुनाव लड़ाने से गुरेज़ कर रहा है जिस कारण महिलाओं के लिए आरक्षित क्षेत्रों में उम्मीदवार ढूंढने में राजनीतिक दलों को अधिक मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।
चुनाव केवल वोट बैंक तक सीमित
ज़िला परिषद व पंचायत समिति चुनावों को केवल राजनीतिक दलों द्वारा अपने वोट तक सीमित हुआ रखा जा रहा है। सरकार द्वारा बड़े स्तर पर खर्च कर यह चुनाव करवाने का पंजाब के लोगों को कोई लाभ नहीं होता प्रतीत हो रहा। इन चुनावों के ज़रिये राजनीतिक दलों द्वारा अपने वोट बैंक को मजबूत करने के सिवाए कोई और फायदा नहीं नज़र आ रहा। ज़िला परिषद व पंचायत समिति के सदस्य रह चुके नेता भी चाहते हैं कि यह करोड़ों रुपए खर्च कर यह चुनाव करवाने की बजाय मौके की सरकार को चाहिए कि वह सरपंचों के ज़रिये या किसी अन्य ज़रिये ज़िला परिषद् व पंचायत समिति सदस्यों को नामज़द कर चुनावों के व्यर्थ के झंझट को खत्म करे।