राष्ट्रीय स्वैच्छिक खून दान दिवस पर विशेष :मानवता के लिए खून दान करें 

खून जीवन का आधार है। खूनदान किसी व्यक्ति द्वारा अपने शरीर में मौजूद खून को दान देने को कहा जाता है, इसे सबसे श्रेष्ठ दान माना जाता है, क्योंकि खून किसी प्रयोगशाला में बनाया नहीं जा सकता। यह दिवस पहली बार 1 अक्तूबर, 1975 को इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन और इम्युनोहीमेटेलॉजी द्वारा मनाया गया था। इस सोसायटी की स्थापना 22 अक्तूबर, 1971 में डा. जे.जी. बाओएंट तथा के. स्वरूप करिसेन द्वारा की गई थी।  हर मनुष्य के खून का एक ग्रुप होता है, जिसके बारे में प्रत्येक को जानकारी होना बहुत ज़रूरी है। खून ग्रुप का सबसे पहले पता अमरीका के जीव-वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टेनर ने लगाया, जोकि ऑस्ट्रिया के प्रसिद्ध डाक्टर थे।  उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में कार्य करते हुए 1901 में खून के तीन ग्रुपों ए, बी तथा ओ को ढूंढने में सफलता प्राप्त की। पहली बार 1907 में न्यूयॉर्क के अस्पताल माऊंट सिनाटे में खून के अदान-प्रदान का मिशन डा. रियूबस ओटनबर्ग ने सफलतापूर्वक पूरा किया। कार्ललैंड स्टेनर को 1930 में शरीर विज्ञान में शानदार सेवाओं के बदले में नॉबल पुरस्कार से नवाज़ा गया। खून का प्लाज़मा अक्सर 24 घंटों में पूरा हो जाता है। खून के साथ लाल सैल (रैड ब्लड सैल्ज़) तीन-पांच सप्ताहों में पुन: बन जाते हैं और खून का आयरन 6-8 सप्ताहों में अपने पहले वाले स्तर पर आ जाता है।  एक बार खूनदान करने के बाद खूनदानी दूसरा खूनदान 9-12 सप्ताहों के बाद कर सकता है। यह समय अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। खूनदान पुरुषों में दिल की बीमारियों के खतरों को कम करता है और खून के लाल सैल्ज़ बनाने को बढ़ाता है। अधिक आयु वाले इन्सान जोकि लगातार खूनदान करते हैं, अक्सर खूनदान के बाद ताज़गी महसूस करते हैं। खूनदान 3 जानें बचा सकता है। ज़रूरतमंदों और मरीज़ों के लिए खून की बड़ी कमी होने के कारण अलग-अलग संस्थाएं खूनदान को बहुत उत्साहित करती हैं। अपनी इच्छा से खूनदान मुहिम के प्रति आम जनता की अज्ञानता, डर और भ्रम को दूर करने के लिए इस दिन को बड़े स्तर पर मनाना बहुत ही ज़रूरी है। आओ, हम सभी प्रण करें कि हम भी खूनदान करके मानवता की  सेवा करें।