पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए


विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गत दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र को सम्बोधित करते हुए अपने 22 मिनट के भाषण में पाक को जमकर लताड़ लगाते हुए जिस प्रकार बेहद तीखे तेवर दिखाए, वह प्रशंसनीय है, लेकिन अब धरातल पर भी पाकिस्तान के खिलाफ  ऐसी ही तीखी कार्रवाई की सख्त जरूरत है। सुषमा स्वराज ने इस अंतर्राष्ट्रीय मंच के माध्यम से दुनिया के समक्ष एक बार फिर पाकिस्तान के झूठ का खुलासा करते हुए उसका कुत्सित चेहरा बेनकाब किया है और समूचे विश्व को अपने तीखे अंदाज में बताया कि हत्यारे आतंकियों के रक्तपात की प्रशंसा करने वाले पाकिस्तान के साथ वार्ताएं क्यों अटक जाती हैं। विदेश मंत्री ने भारतीय जवानों के शहीद होने, जवानों को अगवा कर उनकी हत्याएं करने जैसे मुद्दे उठाते हुए स्पष्ट किया कि पाकिस्तान ने न सिर्फ  आतंकवाद फैलाने में बल्कि उसे नकारने में भी महारत हासिल कर ली है और भारत के खिलाफ  गलत तस्वीरें दिखाकर दुष्प्रचार करना और झूठे आरोप लगाना पाकिस्तान की आदत हो गई है।
जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुषमा स्वराज ने भी कहा कि भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए कई प्रयास किए किन्तु पाकिस्तान के व्यवहार के चलते यह संभव नहीं हुआ। बता दें कि हर बार हुआ यही है कि जब भी पाकिस्तान के साथ बातचीत के प्रयास शुरू हुए, वहां की सेना ने हमेशा इसमें अड़ंगा लगाया और सदैव कुछ न कुछ ऐसा किया, जिससे पिछले काफी समय से पाकिस्तान के साथ वार्ताओं का दौर शुरू नहीं हो सका। सुषमा स्वयं दिसम्बर 2016 में इस्लामाबाद गई थीं और द्विपक्षीय वार्ता की पेशकश की थी किन्तु बदले में भारत को मिला पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकी हमला। भारत हर बार ऐसी वार्ताओं या बैठकों की आड़ में पाकिस्तान से धोखा और मात खाता रहा है और यह विडम्बना ही है कि हम अब तक दुष्ट पाकिस्तान को ऐसा सबक नहीं सिखा पाए हैं, जिससे वह भारत के प्रति बदनीयती से आंख उठाकर देखने की जुर्रत भी न कर सके। हमें अब भली-भांति यह समझ लेना चाहिए कि आर्थिक रूप से बर्बादी के मुहाने पर खड़ा पाकिस्तान आतंकवाद का दामन छोड़ने को हरगिज तैयार नहीं होगा, इसलिए अब उसे उसी की भाषा में सबक सिखाने का वक्त आ गया है। नवाज़ शऱीफ  हों या इमरान खान, हकीकत यही है कि वहां का लोकतंत्र पूरी तरह खोखला है और वहां हर चुनाव के बाद मुखौटा भले ही बदलता है लेकिन उस मुखौटे के पीछे छिपा हर चेहरा उतना ही क्रूर, धोखेबाज, अमानवीय और बर्बर होता है। सच तो यह है कि वहां प्रधानमंत्री पद पर भले ही कोई भी आसीन रहे किन्तु वह फौजी हुक्मरानों के समक्ष पूरी तरह विवश होता है। इमरान ने 18 अगस्त को जब प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब उन्होंने नया पाकिस्तान बनाने और देश की शासन प्रणाली में सुधार जैसी बातें कही थीं लेकिन पिछले दिनों बार-बार इस बात के प्रमाण मिले हैं कि इमरान कट्टरपंथियों के समक्ष कितने विवश और बेबस हैं और उन्हें अब खुलकर सेना की कठपुतली कहा जाने लगा है।
हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने भी खुलासा किया है कि पाकिस्तान में सेना का ही कानून है, जो देश की राजनीति और सरकार द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया में दखलंदाजी करती है तथा सरकार पर पूरी तरह हावी है और वही देश के राजनीतिक पटल पर मुख्य भूमिका निभा रही है। पाकिस्तानी राजनीति की हकीकत यही है कि वहां भले ही सरकार किसी की भी हो पर होगा वही, जो वहां की सेना चाहेगी। दरअसल वहां सत्ता के कई केन्द्र हैं और सभी पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सेना का ही नियंत्रण है, जो हर कदम पर यह स्पष्ट अहसास भी कराती रही है कि प्रधानमंत्री इमरान खान रहें या कोई अन्य, उसे अपनी मर्जी से शासन करने की छूट नहीं है और यही कारण है कि भारत-पाक के बीच शांति वार्ता का कोई रास्ता शुरू होने से पहले ही सेना द्वारा कोई न कोई ऐसा षड्यंत्र रच दिया जाता है, जिससे बातचीत के तमाम रास्ते लंबे अरसे के लिए बंद हो जाते हैं। एक तरफ  पाक प्रधानमंत्री दोनों देशों के संबंध सुधारने के लिए बातचीत का न्यौता देते हैं और दूसरी ओर उन्हीं के लोग हमारे सैनिकों के साथ बर्बरता की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं। ऐसे में यह भली-भांति समझा जा सकता है कि पाकिस्तान इमरान के नेतृत्व में नए संबंधों का युग रचने के प्रति कितना गंभीर है! बहरहाल, जब तक पाकिस्तानी सत्ता पर सेना का नियंत्रण बरकरार रहेगा, दोनों देशों के संबंधों में सुधार की उम्मीद बेमानी ही है। (संवाद)