आलीशान हवेलियां जो कभी रईसों की शान थीं

हवेली भारत, पाकिस्तान, नेपाल व बांग्लादेश में परम्परागत टाउनहाउस या मेंशन को कहा जाता है, जिसका आमतौर से ऐतिहासिक व आर्किटेक्चरल महत्व होता है। ‘हवेली’ शब्द अरबी शब्द ‘हवाली’ से बना है, जिसके अर्थ हैं ‘पार्टीशन’ या ‘प्राइवेट स्पेस’। हवेली भारतीय उपमहाद्वीप में मुगलकाल के दौरान विख्यात हुई और यह किसी विशेष आर्किटेक्चरल शैली से जुड़ी हुई नहीं है। इसलिए बाद में ‘हवेली’ शब्द विभिन्न शैलियों के क्षेत्रीय मेंशन, टाउनहाउस व मंदिरों के लिए देशज शब्द बन गया।  मध्य युग में हवेली शब्द का इस्तेमाल वैष्णव सम्प्रदाय द्वारा सबसे पहले अपने गुजरात के मंदिरों के लिए किया जाता था, जो मुगल व राजपूताना राज्यों के अधीन आते थे। बाद में व्यापारी वर्ग (मारवाड़ी) के टाउनहाउस व मेंशन के लिए ‘हवेली’ शब्द बोला जाने लगा।  भारत व पाकिस्तान की अधिकतर हवेलियां राजस्थानी आर्किटेक्चर से प्रभावित हैं। इनमें आमतौर से चौक के साथ हवेली के केंद्र में फव्वारा होता है। भारत में आगरा, लखनऊ व दिल्ली की और पाकिस्तान में लाहौर, मुल्तान, पेशावर व  हैदराबाद की हवेलियां राजस्थानी-शैली हवेलियों की शानदार मिसालें हैं। नेपाल में काठमांडू, कृतिपुर, भक्तपुर व पाटन के पुराने बाजारों में बनी जो हवेलियां हैं, वह नेवारी शैली पर आधारित हैं। हवेलियों की दीवारों पर अक्सर देवी-देवताओं की तस्वीरों को तराशा जाता है और इनके संगीत को हवेली संगीत कहा जाता है। मारवाड़ी हवेलियां मुगल आर्किटेक्चर से प्रभावित होती हैं। जैसलमेर किले के पास तीन हवेलियां आज भी अति प्रभावी हैं- पटवों की हवेली (जो वास्तव में पांच हवेलियों को मिलाकर एक हवेली है), सलीम सिंह की हवेली और नाथमल की हवेली। यह जैसलमेर के रईस व्यापारियों के घर थे। यह सैंडस्टोन से बनी हैं, जिन पर शानदार नक्काशी की गई है। इनमें वाल पेंटिंग्स, फ्रेस्को, झरोखे व मेहराब हैं। इसी तरह लाहौर में सबसे महत्वपूर्ण हवेली नौ निहाल सिंह की है, जो 19वीं शताब्दी के सिख युग की है। यह सिख आर्किटेक्चर की शानदार मिसाल है और अब तक अपने मूल वैभव में सुरक्षित है। मारवाड़ियों के लिए उनकी हवेलियां स्टेट्स सिंबल भी थीं और उनके विस्तृत परिवारों के लिए घर भी जो उन्हें बाहरी दुनिया से एकांत में सुरक्षा व आराम उपलब्ध कराती थीं। यह हवेलियां चारों तरफ  से बंद होती थीं और एक ही बड़ा मुख्य द्वार होता था। जबकि शेखावटी की हवेलियों में दो चौक होते हैं- बाहर का चौक पुरुषों के लिए और अंदर का चौक महिलाओं के लिए होता था। बड़ी हवेलियों में तीन से चार चौक भी होते थे और दो या तीन मंजिलें भी। आजकल अधिकतर हवेलियां खाली पड़ी हैं या उनके बाहर एक बूढ़ा चौकीदार मिलता है। कुछ हवेलियों को होटल और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना दिया गया है।