फिल्में जिन्होंने बताया प्यार झुकता नहीं....!

प्रेम एक ऐसा जज़्बा है, जिसे समय, भाषा व जगह की कैद में नहीं रखा जा सकता। यही वजह है कि लैला-मजनू, शीरीं-फ रहाद व रोमियो-जूलियट के अमर प्रेम की कथाएं अपनी विदेशी पृष्ठभूमि के बावजूद हमें अपनी देशज कथाओं जैसे हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, मिर्जा-साहिबां आदि की तरह ही प्रभावित व प्रेरित करती हैं जैसा कि इन जोड़ियों पर बनी फिल्मों की सफ लता से स्पष्ट है। बॉलीवुड का तो वैसे भी प्रेम बहुत पसंदीदा विषय है। क्योंकि बाकी विषयों के दौर तो आये गए हैं, लेकिन प्रेम हमेशा से एक ऐसा शाश्वत विषय रहा है कि उसका कभी दौर गया ही नहीं। वास्तविक जीवन का ऐसा कोई कोण नहीं है जिससे प्रेम न टकराया हो और जिस पर कोई फिल्म न बनी हो। फिर वह चाहे  अलग-अलग पृष्ठभूमियों-अमीर-गरीब, जातिगत ऊंच-नीच, अलग-अलग धर्म, दो खानदानों के बीच चली आ रही दुश्मनी हो, दो प्रेमियों के बीच किसी तीसरे का आ जाना हो, विधवा से प्रेम, शादीशुदा से प्रेम, दुष्कर्म पीड़ित से प्रेम, कम आयु या अधिक आयु के व्यक्ति से प्रेम आदि कुछ भी हो। बड़े परदे पर जिए या किये गए कुछ प्रेम तो वास्तविक जीवन के लिए आदर्श तय करते हैं। ‘मुगल-ए-आजम’ बड़े परदे पर किया गया ऐसा ही प्रेम है। यह फिल्म जब रंगीन हुई तो विख्यात लेखिका शोभा डे अपनी बेटियों के साथ इसे देखने के लिए गईं और फिल्म खत्म होने पर उनकी बेटियों ने कहा कि दिलीप कुमार की तरह आंखों से प्रेम की अभिव्यक्ति तो आज भी कोई हीरो नहीं कर पाता और सुंदरता के मामले में मधुबाला अल्टीमेट हैं। शायद यही कारण था कि राज कपूर जब फिल्म ‘बॉबी’ का निर्देशन कर रहे थे तो एक सीन के अनेक रीटेक होने के बाद उन्होंने गुस्से में शूटिंग पैक-अप करते हुए अपने बेटे ऋषि कपूर से कहा, ‘मुझे दिलीप चाहिए... पहले दिलीप की आठ दस फिल्में देखकर आओ, तब तुम्हें मालूम होगा कि प्यार का इजहार किस तरह किया जाता है।’ बहरहाल, ‘मुगल-ए-आजम’ में प्रेम के दो सीन विशेषरूप से यादगार हैं- एक, जब सलीम व अनारकली रात में बाग में मिलते हैं और बैकग्राऊंड में तानसेन (बड़े गुलाम अली खान) संगीत का रियाज कर रहे होते हैं। दूसरा जब अकबर (पृथ्वीराज कपूर) के आने की खबर सुनकर अनारकली सलीम के पास से भागती है,लेकिन रास्ते में अकबर को देखकर वापस दौड़ते हुए सलीम से लिपट कर बेहोश हो जाती है और इस प्रक्रिया में सलीम के गले की मोतियों की माला टूटकर बिखर जाती है। इन दोनों ही सीनों में कोई डायलॉग नहीं है, लेकिन ‘प्यार किया तो डरना क्या’ (जो इस फिल्म का यादगार गाना भी है) का नारा पूरी तरह से बुलंद है। शकील बदायूंनी  को इस गाने का ड्राफ्ट 105 बार तैयार करना पड़ा था,तब जाकर के आसिफ  ने इसे फाइनल किया। इससे भी दिलचस्प यह है कि इस फिल्म के निर्माण के दौरान व्यक्तिगत कारणों से दिलीप कुमार व मधुबाला की बोलचाल बंद थी। शाहरुख खान को किंग ऑफ  रोमांस अकारण ही नहीं कहते हैं। हमारे काऊंट डाऊन में उनकी तीन फिल्में- ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे’, ‘कल हो न हो’ व ‘दिल तो पागल है’- क्रमश: दूसरे, तीसरे व चौथे स्थान पर हैं। मुंबई के एक हॉल में लगातार 20 वर्षों तक चलने वाली ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ आज के आधुनिक युग में भी परम्परागत संस्कारी प्रेम को जीवित रखने का प्रयास है। लेकिन युवाओं के दिलों को स्पर्श करती है, जिससे राज (शाहरुख) व सिमरन (काजोल) प्रेम का पर्याय बन गये हैं। सिमरन के पिता (अमरीश पुरी) की जिद व विरोध के बावजूद इंग्लैंड में परवरिश व शिक्षा प्राप्त करने वाला राज अपनी प्रेमिका को भगाकर नहीं ले जाता है बल्कि अपने प्रेम की शक्ति व उस पर विश्वास से सिमरन के पिता का दिल व सहमति जीतने का प्रयास करता है और सफ ल भी हो जाता है, जब अंत में अमरीश पुरी जाती ट्रेन में सवार राज की ओर इशारा करते हुए सिमरन से कहते हैं कि ‘जा, अपनी ज़िन्दगी जी ले’। ‘कल हो न हो’ में शाहरुख एक कैंसर पीड़ित की भूमिका में हैं जो प्रीटी जिंटा से बेहद प्रेम करने के बावजूद यह नहीं चाहते कि वह उनके वियोग में जीवन बसर करे, इसलिए स्वयं ही उसके लिए सैफ  अली खान का चयन करते हैं, इस आशा में कि अगले जन्म में प्रीटी उन्हें मिल सकेगी। यह आज के परिवेश में प्रेम के लिए बलिदान देने की कथा है और यह भी कि प्रेम स्वार्थी नहीं होता। ‘दिल तो पागल है’ एक ऐसी फिल्म है जो दोस्ती, यौन आकर्षण व सच्चे प्रेम के अंतर को अति सुंदरता से स्पष्ट करती है और साथ ही यह भी बताती है कि प्रेम ईर्ष्या व बदले की भावना से बहुत ऊपर की बात है और इसलिए पवित्र है । आज का आधुनिक युग लिव-इन रिलेशनशिप का है और इसमें ब्रेक-अप का भी जश्न मनाया जाता है यानी ‘तू नहीं तो और सही, और नहीं तो और सही’। इम्तियाज अली ने ‘लव आज कल’ में यही दिखाने का प्रयास किया है और बताया है कि केवल शारीरिक सुख व यौन आकर्षण के इस दौर में भी सच्चा प्रेम संभव है। इसी प्रकार ‘सलाम नमस्ते में सैफ  अली खान व प्रीटी जिंटा लिव इन रिलेशनशिप में हैं और प्रीटी के गर्भवती होने पर वह अपनी ज़िम्मेदारी से भागने का प्रयास करते हैं, जैसा आजकल हर व्यक्तिवादी शख्स सिर्फ  अपने ही बारे में सोचने के कारण करता है। लेकिन प्रीटी से दूर भागने पर दोराहे पर खड़े सैफ  को दोनों प्रेम व जिम्मेदारी का एहसास हो जाता है। यही आधुनिक युवा है। हमारे काऊंट डाऊन के अंत में है फिल्म ‘हम दोनों’। यह फिल्म वेलेंटाइन डे के लिए दो कारणों से विशेष है। एक, यह कि अगर आज के आधुनिक लेकिन लापरवाह युवा को अगर सच्चा प्रेम हो जाये तो वह कोशिशों के बावजूद उससे दूर नहीं भाग सकता बल्कि जीवन के सुपथ पर भी आ जाता है। दूसरा यह कि वास्तविक प्रेम के लिए कोई सीमा ऐसी नहीं है जिसे पार न किया जा सके भले ही वह विधवा से दूर रहने की परम्परागत सीमा हो। कहने का अर्थ यह है कि स्थितियां चाहे जो हों, प्रेम बस प्रेम रहता है क्योंकि प्यार कभी झुकता नहीं, विरोध को झुका देता है। बॉलीवुड में प्रेम पर सैकड़ों सुपरहिट फिल्में बनी हैं। युवा प्रेम की कुछ बहुचर्चित फिल्में हैं- देवदास, बॉबी, प्रेम रोग, लव स्टोरी, एक दूजे के लिए और प्यार झुकता नहीं।