न्यायपालिका पर प्रश्न चिन्ह

एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय पर उंगली उठाई गई है। इस संबंध में छिड़ी चर्चा आज शिखर पर है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के घर के कार्यालय में कार्य करती एक महिला ने एक हल्फनामे में मुख्य न्यायाधीश गोगोई पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। इस हल्फनामे की प्रति उसने 22 जजों को भेजी है। जिसको आधार बना कर कुछ वैबसाइटों ने महिला द्वारा दिया यह विस्तार प्रकाशित कर दिया। इससे एक बार तो बड़ा तूफान उठ खड़ा हुआ। मुख्य न्यायाधीश ने इस आरोप को गम्भीरता से लिया, परन्तु आरोपों को पूरी तरह खारिज़ कर दिया। उन्होंने अपने वरिष्ठ साथियों को इस मामले की जांच करने के लिए तीन सदस्यीय पीठ बनाने के लिए कहा और यह भी कहा कि इसके पीछे कोई ऐसी बड़ी शक्ति होगी, जो मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को प्रभावहीन करना चाहती है। अपनी सफाई पेश करते हुए उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति न्यायाधीश बनने का फैसला सम्मान प्राप्त करने के लिए ही करता है। यदि उस पर ही हमला हो जाए तो उसके पास क्या बचता है। इस मामले के और तूल पकड़ने से इसकी जांच-पड़ताल के लिए बनाई गई तीन न्यायाधीशों की पीठ में से न्यायाधीश सी.वी. रमन ने अब स्वयं को अलग कर लिया है, क्योंकि प्रभावित महिला द्वारा यह कहा जा रहा था कि न्यायाधीश रमन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के बहुत निकटतम साथी हैं। उनके स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश इन्दू मल्होत्रा को नई सदस्य के तौर पर शामिल किया गया। छिड़ी इस चर्चा ने एक बार तो देश की न्यायिक प्रणाली पर प्रश्न-चिन्ह लगा दिए हैं। कुछ समय पूर्व सर्वोच्च न्यायालय उस समय भी बड़ी चर्चा में आया था, जब कुछ वरिष्ठ न्यायाधीशों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पर पक्षपाती होने के सरेआम आरोप लगाए थे। देश की न्यायिक प्रणाली में यह ऐसा शायद पहली बार हुआ था कि मुख्य न्यायाधीश पर भी उनके साथियों ने प्रैस कांफ्रैंस करके आरोप लगाए हों। जहां तक निचली अदालतों का संबंध है समय-समय पर इनकी कार्यशैली के बारे में किन्तु-परन्तु अवश्य उठते रहे हैं। आज भी ऐसा होता दिखाई दे रहा है, परन्तु देश की उच्च अदालतों पर लोगों का विश्वास आज तक भी बना हुआ है। उनको इन अदालतों से न्याय की उम्मीद बनी रही है, क्योंकि आज देश की बड़ी प्रशासनिक संस्थाओं पर लोगों का विश्वास डगमगाता नज़र आ रहा है। देश की राजनीति पर भी अनेक तरह के प्रश्न-चिन्ह लगने के साथ-साथ उसकी विश्वसनीयता भी बड़ी सीमा तक कम हुई प्रतीत होती है। यदि न्यायपालिका से भी लोगों का विश्वास उठ गया तो देश के लिए यह बहुत बड़े घाटे वाली बात होगी। जहां तक इस संबंध में बनी पीठ का सवाल है उसके बारे में उच्च न्यायालय बेहद गम्भीर प्रतीत होता है। पीठ ने लगे इन आरोपों और सनसनीखेज़ दावों की पूरी जांच करने का फैसला किया है ताकि इसकी गहराई तक पहुंचा जा सके। इसलिए पीठ ने ज़रूरत पड़ने पर खूफिया ब्यूरो और केन्द्रीय जांच ब्यूरो से भी सहयोग लेने की बात कही है और बार-बार यह आश्वासन दिलाया है कि इस मामले की सच्चाई को हर हाल में सामने लाया जाएगा। नि:संदेह न्यायपालिका की विश्वसनीयता के लिए ऐसा किया जाना बेहद ज़रूरी है, ताकि इस महान संस्था की साख जन-मानस में बनी रहे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द