आर्थिक नाकाबंदी समाप्त हो 

किसान आन्दोलन के लम्बा होते जाने के कारण अनेक चिन्ताजनक पक्ष सामने आ रहे हैं। इनमें एक महत्त्वपूर्ण पक्ष रेल गाड़ियों के बंद होने का है। विगत डेढ़ मास से भी अधिक समय से पंजाब में रेल गाड़ियों का आवागमन पूरी  तरह से ठप्प हो चुका है। पहले किसान रेल पटरियों पर बैठे रहे। उसके बाद बहुत-से रेलवे स्टेशनों पर उनकी ओर से धरने लगाये जाते रहे। इसके बाद वे अब रेलवे स्टेशनों के बाहर धरने पर बैठे हैं। हालात को देखते हुये उन्होंने माल गाड़ियों के आवागमन संबंधी तो सहमति दे दी, परन्तु यात्री गाड़ियां चलाने को लेकर उनका विरोध जारी है। इस संबंध में दिल्ली में किसान संगठनों की उच्च अधिकारियों एवं सम्बद्ध मंत्रियों के साथ दो बार बैठक भी हो चुकी है। केन्द्र सरकार माल गाड़ियों के साथ-साथ यात्री गाड़ियां चलाने के लिए भी बज़िद है परन्तु दूसरी ओर किसान संगठन भी अपनी बात पर डटे हुये दिखाई देते हैं। 
जहां तक रेल गाड़ियों का संबंध है, आज देश भर में इनके बिना जन-जीवन चलना अत्याधिक कठिन है। पंजाब के हालात भी ऐसे ही हैं। यहां से होकर ही रेल गाड़ियां जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख तक पहुंचती हैं। गाड़ियों के माध्यम से ही इन प्रदेशों में सामान की अधिकतर ढुलाई होती है। देश की सीमाओं पर तैनात सेनाओं के लिए भी सभी तरह का सामान इन गाड़ियों के माध्यम से ही जाता है। अब तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार रेलवे को लगभग 1670 करोड़ रुपये का घाटा पड़ चुका है। हज़ारों यात्री गाड़ियां एवं माल गाड़ियां रद्द हो चुकी हैं जिनसे पंजाब के व्यापारी वर्ग एवं उद्योगपतियों पर भी बड़ा संकट आ चुका है। लुधियाना की ही बात करें तो यहां लगभग 11 हज़ार हौजरी उद्योग हैं। अब तक इस एक शहर में ही व्यापारियों का 2000 करोड़ रुपये का हौजरी एवं अन्य सामान फंसा हुआ है। इसके साथ ही कोयले की कमी होने के कारण प्रदेश के 5 ताप बिजली घर बंद हो चुके हैं। स्टील के सैकड़ों रैक रास्ते में फंसे हुये हैं, जिनके कारण सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। इसके अतिरिक्त प्रदेश से बाहर भेजे जाने वाले अनाज के रैक एवं बाहर से पंजाब में आने वाली तेल एवं पैट्रोलियम से सम्बद्ध वस्तुएं, सीमेंट के सैकड़ों  रैक तथा अन्य आवश्यक वस्तुएं रास्ते में ही फंसी हुई हैं। रेलवे को भारी घाटा पड़ने के साथ-साथ उद्योगपतियों एवं व्यापारियों के लिए भी यह बड़े संकट का समय है। पहले कोरोना महामारी और फिर रेल गाड़ियां बंद होने के कारण उनका कामकाज प्राय: बंद ही हो गया है, जिससे लाखों मजदूर बेकार हो चुके हैं। पंजाब सरकार ने भी रेल गाड़ियों का आवागमन शुरू करवाने के लिए काफी यत्न किये परन्तु वह भी अब थक-हार कर बैठ गई प्रतीत होती है, तथापि, सभी ओर से अपने ऊपर पड़ रहे दबाव को भी वह दृष्टिविगत नहीं कर सकती। 
हम समझते हैं कि किसानों ने केन्द्र सरकार की ओर से पारित किये गये कृषि कानूनों के विरुद्ध एक भावना के साथ आन्दोलन शुरू किया हुआ है तथा उनका निश्चय है कि इस संघर्ष को पूरी शिद्दत के साथ जारी रखा जाएगा परन्तु इसके साथ-साथ उनके लिए भी यह सोचने का समय अवश्य है कि उद्योग-व्यापार के साथ-साथ कोयले एवं खादों की कमी के दृष्टिगत कृषि पर पड़ते प्रभाव को महसूस करते हुये उन्हें  गाड़ियों की आवाजाही शुरू करवाने के लिए समुचित दृष्टिकोण धारण करना पड़ेगा। उन्हें अपने आन्दोलन को ऐसी दिशा देनी होगी कि केन्द्र सरकार पर दबाव भी बना रहे, तथा प्रदेश के आम लोगों का जीवन भी अधिक प्रभावित न हो। हम इसके लिए केन्द्र सरकार की बड़ी ज़िम्मेदारी समझते हैं। उसे माल गाड़ियां हर स्थिति में शुरू करनी चाहिएं ताकि पंजाब को इस आर्थिक नाकाबंदी से निजात मिल सके। इस हेतु उसे अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए क्योंकि वह माल गाड़ियां शुरू न करके पंजाब के लोगों को एक और बड़े संकट की ओर धकेल रही है। हम सभी पक्षों से यह अपील करते हैं कि वे रेल गाड़ियों की आवाजाही शुरू करवाने में सहायक हों ताकि आर्थिक संकट की ज़द में आते जा रहे प्रदेश को इसमें से बाहर निकाला जा सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द