श्रमिकों की वापसी

एक बार फिर कोरोना ने देश में जिस प्रकार से हमला किया है, उससे विगत वर्ष की भांति सभी ओर कुछ उथल-पुथल होते दिखाई दे रही है। जीवन की गाड़ी एक बार फिर पटरी से उतरती जा रही है। देश के अधिकतर भागों में मरीज़ों की बढ़ती हुई संख्या के साथ-साथ मौतों की गणना भी बढ़ती जा रही है। पहले एक बार तो लगा था कि यह संकट दूर होता जा रहा है परन्तु इस बार इसके अधिक प्रसार एवं प्रभावी होने की आशंका बनती जा रही है। जितनी तेजी से यह बीमारी फैल रही है, उतनी तेज़ी से इससे बचाव के साधन नहीं बढ़ रहे।
स्थान-स्थान पर बिस्तरों एवं वैंटिलेटरों की कमी के समाचार आने शुरू हो गए हैं और आक्सीजन की कमी भी बहुत खटकने लगी है। केन्द्र एवं प्रांतीय सरकारें इसकी उपलब्धि के लिए हाथ-पैर अवश्य मार रही हैं परन्तु इस संबंध में स्थिति नियंत्रण में नहीं आ रही। इससे चिन्ता में और वृद्धि हुई है। जहां तक सावधानियों, अंकुशों एवं तालाबंदी का संबंध है, केन्द्र की ओर से इस बार ऐसे बहुत से फैसले राज्यों पर छोड़ दिये गए हैं ताकि राज्य सरकारें धरातल पर स्थिति का सर्वेक्षण करने के बाद फैसला ले सकें। महाराष्ट्र में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ने के दृष्टिगत वहां की सरकार ने तालाबंदी की घोषणा कर दी थी। राजस्थान ने भी प्रतिबंधों को और बढ़ा दिया था। दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने इस सोमवार से 26 अप्रैल तक तालाबंदी की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रवासी श्रमिकों एवं विद्यार्थियों को पलायन न करने की अपील की है परन्तु तालाबंदी के दौरान काम-काज ठप्प हो जाने के दृष्टिगत दिहाड़ी एवं छोटं मोटे कार्य करके दैनिक कमाई करने वाले लोगों के भीतर भय पैदा होना प्राकृतिक बात है क्योंकि लम्बे समय की तालाबंदी उन्हें भुखमरी की स्थिति में ला सकती है। पिछले वर्ष भी देश भर में मार्च मास से घोषित की गई तालाबंदी कई महीनों तक जारी रही थी। उस समय के दर्दनाक दृश्य अभी भी हृदय में ताज़ा हैं। प्रवासी श्रमिकों की ओर से दिल्ली, मुम्बई एवं देश के अन्य कई शहरों में एक स्थान पर बंद रहने की बजाय तथा कोई अन्य चारा न होने की स्थिति में पैदल और भूखे पेट बड़ी संख्या में अपने घरों को पैदल जाना शुरू कर दिया गया था। देश में दयनीय स्थिति पैदा हो गई थी जिसके समक्ष एक बार तो प्रबंध मशीनरी भी बेसहारा हो गई दिखाई दी थी। अन्तत: केन्द्र सरकार को इन श्रमिकों को अपने-अपने ठिकानों पर पहुंचाने के लिए विशेष रेलगाड़ियां चलाने की घोषणा करनी पड़ी थी। अब भी पिछले वर्ष जैसे हालात बनते हुए दिखाई दे रहे हैं। यदि व्यापार थम जाए, कारखाने नहीं चलेंगे तो जीवन की समूची गति धीमी पड़ जाएगी। प्रशासन लोगों को अपने स्थानों पर टिके रहने की अपील तो कर रहे हैं परन्तु रोटी-रोज़ी के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं जिसने लोगों के मन में अनिश्चितता एवं बेचैनी पैदा कर दी है। सरकारें अथवा निजी संस्थान उनकी जिम्मेदारी लेने से पिछले वर्ष की भांति ही असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं। पंजाब के भी कई बड़े औद्योगिक शहरों से पलायन शुरू हो गया है। नई उत्पन्न स्थिति ने सभी तरह का उत्पादन बहुत कम कर दिया है। आर्थिकता एक बार पुन: डोलने लगी है। ज़रूरतमंद एवं हाशिये पर जीने वाला मनुष्य बहुत परेशानी में से गुज़रने लगा है। 
स्थिति को उचित स्थान पर लाने के लिए स्थानीय प्रशासनों के पास प्रत्येक पक्ष से बड़े साधन मौजूद होना ज़रूरी है, जिनकी कमी बहुत खटकने लगी है। आम हालत में भी इन साधनों की कमी बनी रहती है। विशेष हालात में तो यह कमी बहुत खटकने लगती है। निरन्तर बढ़ती हुई बेरोज़कारी एवं भूख को कैसे रोका जा सकेगा, यह प्रश्न सरकारों के समक्ष आ खड़ा हुआ है। इसे सम्बोधित होना उनके बस की बात प्रतीत नहीं होती। नि:संदेह ठोस एवं लम्बी तालाबंदी इस भयावह समस्या का हल नहीं है। टीकाकरण में पूरी तेज़ी लाये जाने के साथ-साथ मौजूदा शासकों को इस स्थिति में से निकलने के लिए प्रत्येक पक्ष से और ढंग-तरीके अपनाने पड़ेंगे जो कि मौजूदा समय की बड़ी आवश्यकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द