संजीव कुमार बनाम एक युग

भारतीय फिल्मों का इतिहास गवाह है कि भारत में ऐसे अनेक कलाकारों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का दर्शकों को लोहा मनवाया, साथ ही इन कलाकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपार ख्याति अर्जित की और लोकप्रियता के उस मुकाम पर पहुंचे जहां पहुंच पाना हर कलाकार के बस की बात नही।  ऐसे ही विरले कलाकारों में से एक थे संजीव कुमार यानी हरी भाई जरीवाला जो न ट्रेजडी किंग रहे, न कामेडियन, न एंगरीमैन थे और न ही रोमांटिक। वह सिर्फ एक कलाकार थे, एक सम्पूर्ण कलाकार। उनकी कोई विशेष पहचान नहीं थी और न ही कोई इमेज उन पर हावी हुई बल्कि उनके अंदर का कलाकार हर इमेज पर हावी रहा।
सन् 1964 के आस-पास हरी भाई जरीवाला नाम का एक युवक फिल्मों में काम की तलाश में आया। उसके पीछे उनका स्टेज का अच्छा-खासा अनुभव था लेकिन उसे किसी ने नहीं पूछा। संघर्ष जारी रहा। काफी लंबे अर्से के बाद उन्हें ‘आओ प्यार करें‘ व ‘हम हिन्दुस्तानी‘ जैसी फिल्में मिली जिनमें उसकी अहमियत एक एक्सट्रा कलाकार से ज्यादा न थी। ये फिल्में उसे स्थापित करना तो दूर, प्रकाश में भी न ला सकी लेकिन तब तक हरी भाई जरीवाला संजीव कुमार बन गये थे। उस समय तक किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि एक ऐसा अभिनेता जो फिल्मों के लिये संघर्ष कर रहा है, आगे चलकर अभिनय के नये-नये आयाम स्थापित करेगा और एक इतिहास रचेगा।
काफी लंबे समय के बाद बतौर नायक संजीव कुमार को फिल्म मिली ‘निशान’। उसमें वे डबल रोल में थे लेकिन फिल्म ज्यादा सफल नहीं हुई। उसके बाद आयी ‘सच्चाई’ और ’शिकार’ लेकिन इन फिल्मों का भी यही हाल हुआ। संजीव कुमार को सही ब्रेक मिला ’संघर्ष’ में जिसमें उन्होंने प्रभावशाली ढंग से अपने पात्र को निभाया। दर्शक भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और उसी फिल्म से दर्शकों ने भी संजीव कुमार नाम के कलाकार को पहचाना।
संजीव कुमार की कुछ यादगार फिल्मे हैं जिनके लिये वह हमेशा ही याद किये जाते रहेंगे जैसे-‘खिलौना‘ में पागल, ‘आंधी‘ में राजनीतिक पत्नी का पति, ‘
‘मौसम‘ में प्रायश्चित करता बाप, ‘शोले‘ का स्वाभिमानी ठाकुर, ‘स्वर्ग-नर्क’,  ‘नौकर’ का नौकर, ‘श्रीमान-श्रीमती’ में हास्य पैदा करने वाला, ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में नवाब, ‘सिलसिला’ का पति, ‘विधाता’ का नौकर, ‘अनहोनी’ में पागल इंस्पेक्टर’, पति पत्नी और वो‘ में पति की भूमिका निभाकर संजीव कुमार ने अभिनय के नये-नये आयाम स्थापित किये। 
‘अंगूर’ का डबल रोल, ‘जानी दुश्मन’ का ठाकुर जमींदार, ‘ईमान-धरम’ में स्मगलर का बेटा, ‘स्वयंवर’ में नौकर, ‘पापी‘ में पुलिस इंस्पेक्टर आदि न जाने ऐसी कितनी भूमिकायें संजीव कुमार ने अदा की। ‘विधाता’ में संजीव कुमार ने यह साबित कर दिया कि अभिनय के मामले में वह दिलीपकुमार से कहीं भी कम नहीं पड़े।
संजीव कुमार स्कैन्डलों से दूर ही रहे परन्तु उनको समय-समय पर कई अभिनेत्रियों के साथ जोड़ा गया। उन्होंने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया और स्कैन्डल समय के साथ स्वत: ही समाप्त हो गये। संजीव कुमार कुंवारे ही रहे। उन्हें खाने-पीने का शौक था जिसके कारण उन्हें दिल का दौरा भी पड़ा था। 
वह अपना इलाज करवाने अमरीका भी गये लेकिन सभी कोशिश बेकार साबित हुई और अन्तत: 6 नवम्बर 1985 को उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया। पूरे देश में शोक छा गया। लगभग 22 वर्ष फिल्मी दुनियां में अभिनय के नये-नये मानदंड स्थापित करने के बाद संजीवकुमार धीरे-धीरे धुंआ बनकर आसमान में विलीन हो गये। वह आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका अभिनय हमेशा ही जीवित रहेगा।
यह सच है कि कला की कोई सीमा नहीं होती, उसका कोई आयाम नहीं होता। ठीक उसी तरह संजीव कुमार भी थे जिन्होंने हर बार अपनी फिल्मों में नई अभिव्यक्ति देकर उन्हें प्रभावशाली बनाया। संजीव कुमार की पहचान का कोई निश्चित क्षेत्र नहीं है। उनका फिल्मी जीवन विभिन्न रंगों की भूमिकाओं से ओत-प्रोत था और हर रंग की एक अपनी ही निराली छटा है। 
निचित ही संजीव कुमार का स्थान कोई नहीं भर पायेगा क्योंकि संजीव कुमार जैसे असाधारण प्रतिभा के कलाकार वर्षों में विरले ही जन्म लेते हैं। नि:संदेह संजीव कुमार असाधारण प्रतिभा के अनोखे कलाकार थे। एक युग थे जो समाप्त हो गया। दर्शकों को उनकी यह कमी हमेशा ही खलती रहेगी। (अदिति)