‘लाहौर’ और ‘अमृतसर’ जो कभी अलग हो गए !


पंजाब की बात दुनिया के किसी भी कोने में हो तो उस पंजाब के बिना हमेशा अधूरी रहेगी जो कि 1947 के बटवारे से पहले वाला ‘सांझा पंजाब’ होता था। उसके आगे यदि बात सांझे पंजाब की करें तो इसके 2 प्रमुख शहर ‘लाहौर’ और ‘अमृतसर’ के बिना अधूरी लगती है जोकि किसी समय एक दूसरे की जान हुआ करते थे। किसी समय यहां के वह लोग इन शहरों की नबज़ होते थे जो बटवारे के समय मजबूरन इन शहरों को हमेशा के लिए छोड़कर नई बनी सीमापार करके चले गए सदियों से पंजाब का दिल और जान रहा शहर ‘लाहौर’ 1947 के बटवारे के समय हमारे से सदा के लिए अलग हो गया और नए बने देश पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। हमारे हिस्से में आया इसका जुड़वा शहर ‘अमृतसर’ जो कि उस समय लाहौर के बाद पंजाब का दूसरा बड़ा शहर था। इन दोनों जिंदा दिल शहरों की कहानी संताली के बटवारे से भी कहीं पहले की है। दोनों शहरों में बहुत समानताएं होने के कारण यह जुड़वा शहरों के तौर पर जाने जाते हैं। लाहौर शहर रावी दरिया के किनारे पर स्थित है औप अमृतसर इसके पूर्व दिशा से लगभग पचास किलोमीटर पर स्थित है। दोनों शहरों के बीच में हिन्द-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा है, जिसने संताली के बटवारे के समय दोनों शहरों को अलग-अलग कर दिया। बटवारे से पहले वाले संयुक्त पंजाब के नक्शे को यदि देखें तो यह दोनों शहर पंजाब के बिल्कुल केन्द्र में आते हैं और इस क्षेत्र को ‘बारी दुआब’ कहा जाता है। परन्तु इस इलाके का नाम ‘माझा’ ज्यादा प्रचलित है। इस प्रकार पंजाब के यह दोनों बड़े शहर ‘माझे’ के हिस्से में आते हैं। इसके बिना दोनों शहरों के अंदरूनी इलाके भी है जो किसी समय शहर की सुरक्षा के लिए बनाई हुई दीवारों के अंदर बसे थे। अब दोनों शहरों में इन दीवारों के मात्र दरवाजे ही बचे हुए है। शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल के समय जहां लाहौर उनके विशाल ‘सिख राज’ की राजधानी थी, वहीं अमृतसर व्यापारिक केन्द्र के तौर पर विकसित हो रहा था।
मार्च, 1849 ई. में पंजाब पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया और 1857 ई. में अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों का विद्रोह बुरी तरह से कुचल दिया। इसके साथ ही पूरे भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का राज्य स्थापित हो गया और हुकूमत ब्रिटेन के अधिकारियों के हाथों में चली गई। 20वीं शताब्दी की शुरूआत तक पंजाब में वह समय था जब अंग्रेजों ने यहां कई तरह की तबदीलीयां की। सिंचाई के लिए नई नहरें बनाई गई। रेल लाईनें बिछाईं और पंजाब के प्रत्येक ज़िले को राजधानी लाहौर के साथ जोड़ा गया। अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1881 में की गई जनगणना में लाहौर शहर की जनसंख्या उन्होंने लगभग 1.49 लाख दर्ज की और अमृतसर की 1.52 लाख थी जोकि लाहौर की जनसंख्या से ज्यादा थी। परन्तु वर्ष 1941 में लाहौर और अमृतसर की जनसंख्या क्रमवार 6.71 लाख और 3.91 लाख दर्ज की गई थी। इस प्रकार लाहौर, अमृतसर से जनसंख्या और आकार में बहुत आगे निकल गया था, इसके पीछे भी कुछ कारण थे।
अंग्रेजों ने लाहौर को ही पंजाब की राजधानी के तौर पर मान्यता दी और इसको आधुनिक शिक्षा, कला, मीडिया और फैशन के बड़े केन्द्र के तौर पर विकसित किया। गवर्नमैंट कालेज (1864), फोरमन क्रिचियन कालेज (1866), लॉ कालेज (1870), पंजाब यूनिवर्सिटी (1882) और एैचीसन कालेज (1886) जैसे उच्चस्तरीय कालेज यहां स्थापित किए। वर्ष 1882 में लाहौर हाईकोट शुरू हुई। लाहौर में किंग एडवर्ड मैडीकल कालेज (1860) और मेओ अस्पताल (1871) उत्तरी ब्रिटेन भारत के बड़े मैडीकल शिक्षा और सुविधाओं के कार्यालयों के तौर पर अस्तित्व में आए। परिणामस्वरूप पंजाब के कौने-कौने से कामयाब व्यापारी और कारोबारी अपनी अगली पीढ़ियों की अच्छी शिक्षा के लिए लाहौर आ गए। उन्होंने अपनी रिहाईशों और कारोबार भी यहीं पर पक्के कर लिये। इनके अलावा अन्य उच्च व मध्यवर्गी परिवारों और कई सरकारी अधिकारियों ने अपने बच्चे लाहौर के इन उच्च शिक्षण संस्थानों में भेजे। जिनमें से कई कामयाब डाक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रोफेसर और अधिकारी बने और पक्के तौर पर यहीं बस गए। 13 दरवाजों वाली दीवार के अंदर का लाहौर बाहर की तरफ तेज़ी से बढना शुरू हो गया। ‘आधुनिक लाहौर के पितामाह’ के तौर पर जाने जाते ‘सर गंगा राम’ का इस शहर के नवीनीकरण में बहुत ज्यादा योगदान था जोकि उस समय के उच्चकोटि के सिविल इंजीनियर थे। शहर की बहुत सी इमारतें और नए रिहाइशी नगर उनकी ही देन है। जैसे कि लाहौर जनरल डाकखाना, लाहौर म्यूजियम, मेओ स्कूल आफ आर्ट्स, एैचीसन कालेज, मेओ अस्पताल, सर गंगाराम अस्पताल, लाहौर हाईकोट, सर गंगाराम हाई स्कूल, हैले कामर्स कालेज, माल रोड़ लाहौर और माडल टाऊन। इनमें से कुछ इमारतों पर सर गंगा राम ने भाई राम सिंह (आर्कीटैक्ट) के साथ मिलकर काम किया था। सिविल लाईनज़ और माडल टाऊन आधुनिक और शानदार रिहाइशी मोहल्ले थे, जहां ज्यादातर वकील, डाक्टर, सरकारी अधिकारी, यूनिवर्सिटी और कालेजों के प्रोफेसर, स्कूलों के अध्यापक, बैंकों के कर्मचारी व अन्य अमीर व्यक्तियों की रिहाइश होती थी। 
इस प्रकार लाहौर ब्रिटेन राज्य के शहरी विकास और योजनाबंदी की सबसे शानदार मिसाल बना। इस दौर में ही लाहौर छपाई उद्योग के केन्द्र के तौर पर भी विकसित हुआ। यह भी कहा जाता है कि उस समय यहां छपने वाले कई समाचार पत्र (रोज़ाना और सप्ताहिक) और मैगज़िनों (मासिक, तिमाही और छमाही) की गिणती 200 से भी ज्यादा थी। अंग्रेजी अखबार ‘द ट्रिब्यून’ सबसे पहले लाहौर से ही प्रकाशित हुआ था। पंजाबी समाचार पत्र ‘अजीत’ भी दैनिक समाचार पत्र के तौर पर लाहौर से ही आरम्भ हुआ था जो उस समय उर्दू में प्रकाशित होता था। इनके अलावा ‘प्रताप’, ‘मिलाप’ और ‘प्रभात’ समाचार पत्र (तीनों उर्दू में) अखबार भी लाहौर से ही प्रकाशित होते थे।
शुरूआती दौर में बनने वाली खामोश फिल्में (साईलैंट मूवीज़) के बाद साल 1931 में भारत में बोलने वाली फिल्में (टाकीज़) की शुरूआत हो गई थी और उससे अगले ही साल 1932 में लाहौर में पहली बोलने वाली फिल्म ‘हीर रांझा’ उर्फ ‘हूर ए पंजाब’ हिन्दोस्तानी भाषा में रिलीज़ हुई। पंजाबी की पहली बोलती फिल्म ‘मिर्जा साहिबां’ उर्फ ‘इश्क ए पंजाब’ वर्ष 1935 में और दूसरी फिल्म ‘शीला’ उर्फ ‘पिंड दी कुड़ी’ वर्ष 1936 में लाहौर में रिलीज़ हुई। इन दोनों फिल्मों की अपार सफलता से प्रभावित कई निर्माता और निर्देशकों का ध्यान पंजाबी फिल्में तैयार करने की तरफ खिंचा गया, जिनमें से के.डी. महिरा, आर. एल. शोरी, दलसुख एम पंचोली, रूप के. शोरी, बी.एस. राजहंस आदि नाम प्रमुख है। इन्होंने पंजाबी फिल्मों के निर्माण के लिए अपने दफ्तर और स्टूडियो लाहौर में खोले। निरंजन टाकीज़, प्रभात टाकीज़, क्राऊन टाकीज़, रीजैंट सिनेमा और प्रभात सिनेमा जैसे सिनेमाघर लाहौर में बने। इस प्रकार लाहौर पंजाबी और कुछ हिन्दी/उर्दू फिल्में बनाने और रिलीज़ करके मुम्बई और कलकत्ता के फिल्म निर्माण केन्द्रों के मुकाबले में तीसरे उभरते केन्द्र के तौर पर अस्तित्व में आया, जिसके कारण अभिनय और गीत संगीत जगत से जुड़ी प्रसिद्ध हस्तियों ने लाहौर में रैनबसेरा बनाया। फनकारों व अन्य कलाकारों के यहां रहने का एक और कारण यहां नए रेड़ियो स्टेशन की शुरूआत होना भी था। वर्ष 1937 में यहां ‘आल इंडिया रेडियो’ का लाहौर स्टेशन शुरू हुआ। इस रोडियो स्टेशन पर लाहौर के कलाकारों के अलावा दूर-दराज से भी कोई गायक, रागी, कीर्तनीए और संगीत घरानों की प्रसिद्ध शख्सियतें अपने प्रोग्राम पेश करती थी। (क्रमश:)
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