बीकानेर के इस गांव में लें सफेद रात का जादुई आनंद


जब भी राजस्थान में पर्यटन की बात होती, तो बात उदयपुर, जयपुर, जोधपुर व जैसलमेर तक ही सिमटकर रह जाती। शायद इसलिए मैंने थार रेगिस्तान के सुदूर शहर बीकानेर के बारे में हॉलिडे डेस्टिनेशन के तौर पर कभी सोचा ही नहीं था। यूं भी कह सकते हैं कि पड़ौसी नीले, गुलाबी व सुनहरे रंगों में मैंने बीकानेर के लाल रंगों को देखने की कोशिश ही नहीं की। बीकानेर पहुंचने पर ही मुझे एहसास हुआ कि इस शहर का अपना अलग ही ‘ग्रामीण आकर्षण’ व विशिष्ट फ्लेवर है।
बीकानेर के इतिहास में गहराई तक उतरने के लिए मैंने अपने सफर की शुरुआत जूनागढ़ किले से की। 15वीं शताब्दी का यह किला रेड सैंडस्टोन से बना है, जिसके कोर्टयार्ड्स इटालियन मार्बल के हैं, इसमें फ्रेस्को पेंटिंग्स, ग्लास मोज़ेक, सोने की पत्तियों की सजावट और सफेद मोती की गचकारी है। किले के विभिन्न महलों को निहारते हुए मैंने लगभग दो घंटे गुज़ारे। बादल महल ने विशेषरूप से मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। बादलों व बिजली को प्रदर्शित करने के लिए इसे नीला व सफेद पोता गया है। एक छोटा सा टैंक भी बनाया गया बारिश की बूंदें ‘उत्पन्न’ करने के लिए। किले के म्यूजियम में पदकों, लिबासों, पगड़ियों व गुज़रे ज़माने की अन्य चीज़ों की भरमार है। हथियारों व तलवारों के विस्तृत संग्रह को अवश्य देखना चाहिए। यहां पहले विश्व युद्ध का डीएच-9 डीई हविललैंड फाइटर प्लेन भी है।
इसके बाद मैं रामपुरिया हवेलियों की तरफ  गया, जोकि जोशिवारा या पुराने बीकानेर में हवेलियों का समूह है। इन्हें रामपुरिया परिवार के रईस व्यापारियों के लिए लाल दुलमेरा सैंडस्टोन से निर्मित किया गया था। इन हवेलियों में जालीदार खिडकियां, जटिल झरोखे व लकड़ी पर शानदार नक्काशी हैं। मुझे बताया गया कि अगर आप बीकानेर में हैं तो नरेंद्र भवन अवश्य जाना चाहिए। यह बीकानेर के अंतिम महाराजा नरेंद्र सिंह का शहर का मकान है, जहां वह 2003 में अपने निधन तक रहे। भवन में आधुनिक भारतीय फर्नीचर का पुर्तुगाली टाइल्स व आदिवासी आर्टवर्क के साथ गजब का संगम है, जिससे सिंह के रंगीन जीवन व विदेशी यात्राओं के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है। लक्ष्मी निवास पैलेस के स्वर्ण महल में विस्तृत थाली मिलती है। साहित्य व फूड प्रेमियों के लिए सेविन-कोर्स लिटरेरी लंच है, जिसे नरेंद्र भवन ने कियुरेट किया है। हर कोर्स के साथ आप एक उपन्यास का अंश पढ़ते हैं और फिर उसकी प्रतिनिधित्व डिश परोसी जाती है। फिक्शन में बयान किये गये फूड से डिश प्रेरित होती है और उसे अच्छी तरह से गार्निश किया गया होता है।
बीकानेर के जीवंत बाज़ार मध्य युग के अजीब गलियों से कंट्रास्ट करते हैं। गर्मी से बचने के लिए मैं चुन्नीलाल तंवर शर्बतवाले के यहां रुका। यह 85-वर्ष पुरानी दुकान है, जिस पर ताज़े फूलों व मसालों से शर्बत तैयार किया जाता है। अलग-अलग किस्म के शर्बत हैं : चन्दन, सफेद गुलाब, पान, लौंग, सौंफ आदि जोकि कृत्रिम रंगों व फ्लेवरों में हैं। इन्हें कुल्हड़ में परोसा जाता है और ऊपर से बर्फ  पीस कर डाल दिया जाता है। मैंने सभी प्रकार के शर्बतों का स्वाद लिया, निश्चितरूप से ताजगी भरे निकले। ताज़ी फ्राई की गई भुजिया की सुगंध से अनजान रहना संभव ही न था। बीकानेर के बाज़ारों में हर कोने पर आपको भुजिया व मिठाई के ठेले मिल जायेंगे। मैंने बिशनलाल बाबूलाल व भीकाराम चांदमल के यहां भुजिया खायी। इसके बाद छोटू मोटू जोशी के यहां खस्ता कचौरी व लस्सी का आनंद लिया। खस्ता कचौरी में आलू व मूंग दाल भरी हुई थी और उसके ऊपर दही, चटनी, प्याज़, सेव, अनार व धनिया पड़ा हुआ था। डीप-फ्राई की हुई कचौरी वास्तव में स्वादिष्ट थी और इसके बाद घेवर ने तो मज़ा ही बांध दिया। यह नाश्ते के लिए अच्छा है।बीकानेर में अधिकतर शामें डूबते सूरज के साथ रंग बदलते आसमान को देखते हुए गुज़रती हैं। इसका सबसे आलौकिक अनुभव बीकानेर से 22 किमी दूर दरबारी गांव में होता है, जब सूरज डूब रहा हो। कोमल हरे चारागाह में दरबारी झील है जो कभी बीकानेर के महाराजाओं के लिए शिकारगाह भी थी। शिकार के बाद वह यहां डिनर भी करते थे। अब झील के पास सफेद शामियाने लगे हुए हैं,जो लैंटर्न व मोमबत्ती से जगमगाते हैं और ‘राजपूतों की सफेद रात’ का अनुभव प्रदान करने के लिए पर्यटकों को तारों भरे आसमान के नीचे कई व्यंजन परोसे जाते हैं।
बहरहाल, बीकानेर में कुछ अन्य चीज़ें भी अवश्य करनी चाहियें-मसलन एक दिन कैमल रिसर्च फार्म के लिए अवश्य निकालें जोकि बीकानेर से लगभग 8 किमी के फासले पर है। आप वहां दोपहर 3 बजे तक अवश्य पहुंच जायें जब सभी 400 ऊंट अपने बच्चों के साथ चारा खाकर अपने शरणस्थल पर लौटते हैं। बीकानेरी, जैसलमेरी, कच्छी व मारवाड़ी ऊंटों में अंतर करना ज़रूर जान लें। मिल्क पार्लर पर ऊंटनी के नमकीन दूध से बनी आइसक्रीम व कुल्फी का सेवन भी लाज़मी करें। अगर आप जनवरी में बीकानेर जा रहे हैं तो ऊंट उत्सव में हिस्सा लें। यह उत्सव अच्छे सजे हुए ऊंटों की परेड से आरंभ होता है और वह भी जूनागढ़ किले की पृष्ठभूमि में। परम्परागत चीज़ों से सजे ऊंटों के शानदार डिसप्ले का आनंद लें।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर