अफगानिस्तान से अल्पसंख्यकों का पलायन


यह बात बेहद हैरान करने वाली है कि अफगानिस्तान, जहां कभी लाखों की संख्या में सिख तथा हिन्दू रहते थे, आज वहां सिर्फ 10 सिख और 4 हिन्दू ही रह गए हैं। वे भी भारत सरकार से मांग कर रहे हैं कि किसी तरह उन्हें भी वहां से निकालने में सहायता की जाए। अफगानिस्तान में पिछले लम्बे समय से चल रहे खराब हालात के कारण तथा भिन्न-भिन्न इस्लामिक संगठनों की अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों के कारण वहां अल्पसंख्यकों की आबादी बेहद कम हो गई है। इसका बड़ा कारण उनका वहां असुरक्षित होना और कामकाज करने के लिए उचित माहौल न होना है। तालिबान ने पुन: इस देश में कमान संभाल ली है और उन्होंने कड़े इस्लामिक कानून लागू कर दिए हैं, जिनमें मुख्य रूप में महिलाओं पर बहुत-सी पाबंदियां लगाई गई हैं। 
अब तक के समाचारों के अनुसार जहां इस देश में आम लोग बेहद बुरे हालात में से गुज़र रहे हैं, वहां कई इस्लामिक संगठनों की आपसी लड़ाई भी अभी तक चल रही है। इनमें से मुख्य रूप में इस्लामिक स्टेट खुरासान नामक संगठन है जो स्वयं ताकत प्राप्त करने के लिए मौजूदा तालिबान सरकार से टक्कर ले रहा है। ऐसे हालात में वहां अल्पसंख्यकों का रहना मुश्किल नहीं, असंभव हो गया है। इसी वर्ष जून माह में देश की राजधानी काबुल की आबादी करता-ए-परवान क्षेत्र में यदि सिखों व हिन्दुओं के कुछ परिवार बचे रह गये थे तो वे भी गुरु गोबिंद सिंह जी से संबंधित गुरुद्वारे पर इस्लामिक स्टेट संगठन द्वारा किये गए हमले के बाद किसी तरह इस देश को शीघ्र ही छोड़ना चाहते थे। गुरुद्वारा साहिब पर तीन हमलावरों द्वारा बमों से हमला किया गया और भारी गोलीबारी भी की गई, जिससे इमारत का काफी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था और कुछ मौतें भी हुई थीं। इस हमले के पीछे तो जैसे अफगानिस्तान अल्पसंख्यक के तौर पर पूरी तरह से खाली ही हो गया। इनमें से गुरुद्वारा साहिब में रह रहे बहुत से परिवारों ने भारत सरकार को उन्हें निकालने के लिए अपील की। सरकार के यत्नों से उनको वीज़े दिये गये ताकि वे देश छोड़ सकें। इस प्रकार सभी अल्पसंख्यक परिवार वहां से निकल आये। चाहे तालिबान सरकार द्वारा गुरुद्वारा साहिब की मुरम्मत और पुनर्निर्माण का काम करवाया गया परन्तु इस देश में हिन्दू और सिख घबरा भी गये थे और हताश भी हो गये थे। बहुत से ऐसे परिवारों को ‘मेरा परिवार मेरी ज़िम्मेदारी’ प्रोग्राम के अधीन दिल्ली के कुछ इलाकों में बसाया गया। यहां पहुंचे कुछ सिखों ने बताया कि उनको बिना किसी आरोप के जेलों में रखा जाता रहा और अफगानिस्तान में उनके केश तक काट दिये जाते थे। आज वहां हालात ये हो गये हैं कि अफगानिस्तान के बड़े शहरों में से जलालाबाद में दो सिख, गज़नी शहर में 4 और काबुल में 4 सिख ही बचे रह गये हैं जबकि 4 हिन्दू आनामाणी क्षेत्र के बीच मंदिर में रह रहे हैं। अल्पसंख्यकों का तो लगभग इस देश में पूरी तरह से पलायन ही हो गया है। तालिबान सरकार के शासन में वहां रहते बाकी लोग भी बहुत बुरी परिस्थितियों में रहने के लिए मज़बूर हैं। देश का बुनियादी ढांचा खोखला हो चुका है। खाद्य पदार्थ और दवाइयों की भारी कमी है और आम लोग शरीयत कानून के अधीन पिस कर रह गये हैं। आज भी भारत सहित विश्व के बहुत से देशों ने इस सरकार को मान्यता नहीं दी है। पाकिस्तानियों ने इन तालिबानियों को पाला था। उसके साथ भी इनके संबंध खराब हो चुके हैं। दोनों देशों की सीमाओं पर अक्सर सैनिकों में झड़प होती रहती है। 
तालिबान सरकार बनने के बाद भारत ने यहां शुरू की योजनाओं को पूरी तरह से बंद कर दिया था परन्तु अब वहां पैदा हुए हालात को देखते हुए तालिबान सरकार ने भारत को अपील की है कि वह पुन: इन मूलभूत योजनाओं को शुरू करे। भारत अभी तक इस अपील के संबंध में दुविधा में फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसे हालात के होते हुए पहले की भांति ही अभी भी इस देश का भविष्य अंधकारमय ही नज़र आ रहा है, जिस कारण वहां के करोड़ों लोगों की मुसीबत निकट भविष्य में समाप्त होते नज़र नहीं आ रही।  
         

  —बरजिन्दर सिंह हमदर्द