बनाएं पर्यावरण इंजीनियरिंग में कॅरियर

 

अस्त व्यस्त होते मौसम चक्र, लगातार चिंतित रहने के बावजूद बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और हर तरफ गहराती प्रदूषण की समस्या के कारण देश ही नहीं पूरी दुनिया में पर्यावरण इंजीनियरों की मांग बड़ी तेज़ी से बढ़ी है। क्योंकि दिन पर दिन बीमार होती धरती को स्वस्थ बनाने का नुस्खा इन्हीं पर्यावरण इंजीनियरों के पास होता है। यही कारण है कि आज की तारीख में पर्यावरण इंजीनियरिंग एक हॉट कॅरियर बनकर उभरा है।
पर्यावरण इंजीनियरिंग डिग्री या डिप्लोमा हासिल करने के लिए आपको 102 में विज्ञान के स्ट्रीम का छात्र होने के साथ-साथ कम से कम 50 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना जरूरी है। आज देश के कई संस्थान पर्यावरण इंजीनियरिंग में डिग्री देते हैं और ज्यादातर कॉलेज में एंट्रेंस एग्जाम होते हैं। आईआईटी में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम होते हैं। चूंकि पर्यावरण इंजीनियरिंग का कोर्स आज की तारीख में बहुत डिमांड में है, इसलिए मैरिट के आधार पर ही दाखिला मिलता है। पर्यावरण इंजीनियरिंग वास्तव में सिविल और कैमिकल इंजीनियरिंग का मिश्रण होती है। पर्यावरण इंजीनियरिंग की चार साल की अकादमिक पढ़ाई के बाद डिग्री मिलती है, जो बी.ई. यानी बैचलर आफ इंजीनियरिंग की डिग्री होती है। पर्यावरण इंजीनियरिंग एक इंटर-डिसिप्लिनरी प्रोग्राम है जिसमें कई विषयों का अध्ययन एक साथ किया जाता है। हवा की गुणवत्ता को जानना, प्रदूषित वायु को बेहतर बनाना, वायु प्रदूषण में नियंत्रण करना, वाटर सप्लाई, वेस्ट वाटर डिस्पोजल, रेन वाटर मैनेजमेंट, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट तथा हजार्ड्स वेस्ट मैनेजमेंट शामिल हैं। ये विभिन्न तरह के विषय दरअसल पर्यावरण प्रदूषण के हिस्से हैं।
पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री और उच्च अध्ययन में विशेषज्ञता के स्तर पर चीजें अलग-अलग हो जाती हैं। मास्टर डिग्री के लिए तीन तरह के मास्टर प्रोग्राम उपलब्ध हैं- एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग, एनवायरनमेंटल मैनेजमेंट और एम.एससी. इन एनवायरनमेंटल साइंस। हालांकि एम.एस.सी. के स्तर पर यह पाठ्यक्रम काफी पहले से मौजूद है लेकिन शुरू में यह पाठ्यक्रम सिर्फ ठोस और द्रव कचरे के प्रबंधन तक ही सीमित था। लेकिन अब चूंकि वायु की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है, इस वजह से इस पाठ्यक्रम का विस्तार कर दिया गया है और उसमें टॉक्सिक वेस्ट को भी शामिल कर लिया गया है ताकि वायु और जमीन के प्रदूषण को बेहतर ढंग से समझा जा सके और इस चुनौती से निपटा जा सके। 
पहले इंजीनियरिंग संस्थान सिर्फ इंजीनियरिंग कुशलता तक ही पाठ्यक्रम को सीमित रखते थे, लेकिन अब एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में प्रबंधकीय पहलुओं को भी तेज़ी से शामिल किया जा रहा है ताकि इंजीनियर न सिर्फ प्रदूषण निवारण की तकनीक में ही दक्ष हो बल्कि उसका प्रबंधन करने में भी कुशल हो। एनवायरनमेंटल इंजीनियरों की मांग इतनी तेजी से बढ़ रही है कि ज्यादातर इंजीनियरों का कैंपस प्लेसमेंट ही हो जाता है। ज्यादातर छात्र जब अभी अपने डिग्री पाठ्यक्रम के अंतिम साल में ही होते हैं कि विभिन्न कंपनियां उन्हें अपने यहां रख लेती हैं।
पर्यावरण इंजीनियर के लिए सरकारी, अर्धसरकारी और गैर-सरकारी यानी सभी क्षेत्रों में नौकरी के लिए जबरदस्त स्कोप है। इस क्षेत्र में अच्छा वेतन मिलता है। शुरुआत से ही सरकारी क्षेत्र में 35 से 40 हजार रुपये प्रतिमाह और प्राइवेट सेक्टर में 45 से 50 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी मिल जाती है। 
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