इस बार भी गेहूं की रिकार्ड पैदावार होने की संभावना

 

कृषि विभाग द्वारा ज़िलों के मुख्य कृषि अधिकारियों द्वारा करवाये गये सर्वेक्षण के आधार पर पंजाब की रबी की मुख्य फसल गेहूं की काश्त 34.90 लाख हैक्टेयर क्षेत्र के लगभग की गई है। पिछले साल यह फसल 35.26 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर बीजी गई थी। साधारण आलूओं तथा मटरों का क्षेत्र रहता है जिस पर गेहूं की काश्त नहीं की गई। क्योंकि आलू अभी निकाले जा रहे हैं। इस क्षेत्र पर अब देरी हो जाने के कारण गेहूं नहीं बीजी जा सकेगी। मक्की जैसी कोई और फसल ही किसान लगाएंगे। इस साल बिजाई पूरे उत्साह से की गई है।
कुछ किसानों ने तो 20 अक्तूबर से ही अगली बिजाई करनी शुरू कर दी थी। उस समय तापमान ज्यादा होने के कारण बीज़ों की उगने की शक्ति प्रभावित हुई। जो कमी अब ठंड पड़ने और गेहूं के लिए मौसम अनुकूल होने के कारण पूरी हो गई। कुछ स्थानों पर बिजाई से समय देर से चलने के कारण धान की दरारों में नमी खुश्क हो गई। परन्तु किसानों ने बिना रौणी किए ही खेत बीज दिये। परिणाम के तौर पर बीज कम पैदा हुआ। चाहे ऐसे खेत बहुत कम हैं। किसानों ने बिजाई अलग-अलग ढंग से की। सबज़-इंकलाब से पहले किसान लहराई के साथ ही बिजाई किया करते थे। बाद में खाद बीज ड्रील द्वारा बिजाई करने की रिवायत बन गई। कुछ किसानों ने ज़ीरो टिलेज के साथ बिना जुताई मामूली नाम मात्र जुताई करके ही गेहूं बीज दिया। बिजाई के लिए बहुत स्थानों पर हैप्पी सीडर मशीनरी का प्रयोग किया गया। जिसके साथ पराली जलाने की समस्या का हल हो गया। कुछ किसानों ने सुपरसीडर तथा रोटावेटर के साथ बिजाई कर ली। कहीं-कहीं बिजाई बैड प्लांटर के साथ बैडां पर कर ली गई। आम किसानों ने बिजाई के समय डाइयामोनियम फास्फेट (डी.ए.पी.) का प्रयोग किया। कृषि विशेषज्ञों द्वारा बिजाई से पहले नाइट्रोजन की एक तिहाई खुराक (यूरिया) डालने की जो सिफारिश है, उसको ज्यादातर किसानों ने अनदेखा कर दिया। जिन खेतों में बहुत विसम्बित बिजाई की गई है, उनको छोड़कर बाकी स्थानों पर पहली सिंचाई के साथ किसानों ने यूरिया डाल दिया। कुछ किसानों ने सिंचाई से पहले और कुछ ने सिंचाई के बाद खेत में वत्तर आने पर। मंडी में यूरिया की कमी भी हो गई। चाहे कृषि व किसान भलाई विभाग द्वारा कहा जा रहा था कि यूरिया की कोई कमी नहीं। यह कमी कुछ इस कारण भी हो गई थी कि किसान यूरिया की अगली खुराक डालने के लिए भी यूरिया खरीदकर स्टोर करने लग पड़े थे।  रबी में यूरिया की जरूरत तकरीबन 13.25 लाख टन की है। कृषि विभाग हर सप्ताह केन्द्र के साथ इसकी सप्लाई और जरूरत संबंधी विचार विमर्श करके योग्य कार्रवाई करता है।
इस साल जो ठंड पड़ी है, यह फसल के लिए बहुत ही लाभदायक है। फिर फसल को कोई बीमारी भी नहीं आई। पीली कुंगी की आम शिकायत होती है। लेकिन इस साल वह भी लगभग शून्य है। कई स्थानों पर बादल रहने के कारण फसलें पीली चाहे हो गईं। कृषि व किसान भलाई विभाग के डायरैक्टर डा. गुरविंदर सिंह ने किसानों को सलाह दी है कि वह बिना बात के महंगे-महंगे स्प्रे न करें। इस संबंधी वह विशेषज्ञों की सलाह ज़रूर लें। धूप पड़ने से गेहूं का पीलापन ठीक हो जाने की सम्भावना है। गेहूं अब पूरी तरह से हरी भरी है। कुछ दिनों के बाद दाना पड़ेगा तथा उसके बाद गेहूं पकने को ओर बढ़ेगी। किसानों ने अधिक उत्पादन देने वाली डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-222, डी.बी.डब्ल्यू.-187, पी.बी.डब्ल्यू.-826 तथा एच.डी.-3086 किस्मों की काश्त की है। किसान इन किस्मों से अच्छा उत्पादन लेने की उम्मीद कर रहे हैं। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि गेहूं व जौ के करनाल स्थित अनुसंधान संस्थान के डायरैक्टर ज्ञानइन्द्र सिंह भारत में उत्पादन 112 मिलियन टन होने का अनुमान लगा रहे हैं। गत वर्ष मार्च में अधिक गर्मी पड़ने के कारण गेहूं को काफी नुकसान पहुंचा था। जिसके बाद भारत का उत्पादन वर्ष 2020-21 के 109.50 मिलियन से कम होकर 106.84 मिलियन टन पर आ गया तथा पंजाब के उत्पादन व उत्पादकता में भी जबरदस्त कमी आई। कृषि विभाग के विशेषज्ञों, किसान संस्थाओं तथा प्रगतिशील किसानों के अनुसार इस वर्ष पंजाब का उत्पादन वर्ष 2018-19 के 182.62 लाख टन तक पहुंच जाने की सम्भावना है, यदि मौसम अब से लेकर गेहूं की कटाई तक अनुकूल रहता है तो गेहूं का अच्छा उत्पादन हो सकता है। कई किसान तो अधिक उत्पादन की प्राप्ति के लिए 225 किलोग्राम प्रति एकड़ तक भी फसल को यूरिया डाल रहे हैं जबकि पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी द्वारा 110 किलोग्राम की सिफारिश की गई है।
कृषि डायरैक्टर गुरविन्दर सिंह ने कहा कि गेहूं को यूरिया की दूसरी तथा तीसरी खुराक डालने के लिए किसानों को यूरिया उपलब्ध करने का पूरा प्रबंध किया गया है। इस वर्ष गेहूं की गुल्ली डंडे की भी बहुत कम समस्या है जबकि गुल्ली डंडा 40 प्रतिशत तक उत्पादन कम करने के लिए ज़िम्मेदार बनता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं की जो पिछेती किस्मों की लेट बिजाई की गई है, उनका उत्पादन भी 15 से 18 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक आने की सम्भावना है। किसानों को पहले पानी कम दिये जाने की आवश्यकता है। अक्तूबर में बीजी गई गेहूं को वे पानी दे ही चुके हैं। नवम्बर तथा दिसम्बर के शुरू में बीजी गई गेहूं को चार सप्ताह बाद पहला पानी देना ज़रूरी है। बारिश को ध्यान में रखते हुए मार्च के अंत तक गेहूं को पानी लगाते रहना चाहिए। पानी उस समय लगाया जाए जब हवा न चलती हो ताकि फसल गिर न जाए। एक अनुमान के अनुसार यदि मौसम अनुकूल रहा तो उत्पादन 51 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक पहुंच जाने की सम्भावना है।