राजस्थान में भस्मासुरों से गरमाई राजनीति
इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव के रंगीन नज़ारे अभी से देखने को मिलने लगे है। प्रदेश में राजनीतिक भस्मासुरों की कमी नहीं है, जो अपनी ही सरकार और पार्टी को नष्ट करने पर तुले है। ऐसे भस्मासुर सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा दोनों ही पार्टियों में मौजूद है। चूंकि वर्तमान में कांग्रेस सत्ता पर काबिज़ है तो भस्मासुरों से ज्यादा खतरा उनको ही है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक ही झटके में प्रदेश में 19 ज़िलों की बारिश कर भाजपा के साथ-साथ अपनी पार्टी के विरोधियों को दिन में तारे दिखा दिए। यह किसी ने भी नहीं सोचा था कि गहलोत डेढ़ दर्जन से अधिक नए ज़िलों की घोषणा कर प्रदेश की राजनीति को अचानक ही गरमा देंगे। गहलोत के समर्थक इस राजनीतिक दांव के जरिये अपने नेता के महिमामंडन में लगे है तो उनके विरोधी पूर्व डिप्टी सी.एम. सचिन पायलेट और उनके समर्थक सरकार रपीट करने का अपना पुराना राग अलापने लगे है। कांग्रेस के दोनों गुटों के बीच प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा जैसे-तैसे तालमेल बैठाने के अपने पुरजोर प्रयासों में दिनरात एक किये हुए है तो उनके इन प्रयासों को पलीता लगाने वालों की भी कमी नहीं है। नये ज़िलों की घोषणा से कहीं खुशी और कहीं गम का माहौल देखने को मिल रहा है। जिन विधायकों के क्षेत्र में नये ज़िले खुले है वे जश्न मनाने में लगे है, जहां नहीं खुले है वे धरना प्रदर्शन में जुटे है। दूसरी तरफ असंतुष्ट खेमे के नेता गहलोत खेमे पर वार प्रतिवार करने से नहीं चूक रहे है। खुद सचिन पायलेट कह रहे है जिन लोगों ने आलाकमान की अवज्ञा कर अनुशासनहीनता की है उनके खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए। सचिन समर्थक एक विधायक मुकेश भाकर ने खुले आम कहा है कि हमने बगावत कर बहुत कुछ खोया है तो अब आलाकमान की अवज्ञा करने वालों पर भी गाज गिरनी लाज़मी है। गहलोत खेमे के एक कथित समर्थक मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने बातों-बातों में गहलोत के प्रति अपनी नाराज़गी को नहीं छुपाया। इसी बीच मुख्यमंत्री गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात कर अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश कर आगामी चुनाव में सरकार रिपीट होने की रणनीति का खुलासा किया बताया। बहरहाल कांग्रेस की आपसी गुटबंदी इस समय अपने चरम पर है, जिसे देखते हुए गहलोत सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और घोषणाओं की वाट लगने की संभावनाएं परिलक्षित होने लगी है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है गहलोत और सचिन में चल रहे राजनीतिक खींचतान को अभी तक कांग्रेस आलाकमान नहीं निपटा सका है, जिससे लोगों में कांग्रेस की साख घटती जा रही है। मुख्यमंत्री गहलोत को विश्वास है कि राज्य सरकार की विकास योजनाओं के बूते पर सरकार को रिपीट करवाने में सफल होंगे। सचिन और उनके समर्थकों का मानना है जब तक सरकार में नेतृत्व परिवर्तन नहीं होगा तब तक सरकार रिपीट का दावा बेमानी है।
जैसे-जैसे विधानसभा चुनावों की तिथि नज़दीक आती जा रही है वैसे-वैसे विपक्षी दल भाजपा में अंदरूनी कलह बढ़ती जा रही है। उसके नेता भी तीन तेरह हो रहे है। विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया के असम के राज्यपाल बनने के बाद भाजपा अब तक अपना विधानसभाई नेता नहीं चुन पायी है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जन्मदिन के बहाने अपना शक्ति प्रदर्शन दिखा चुकी है। राजे इसे शक्ति की जगह भक्ति प्रदर्शन बता रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद सतीश पूनिया ने भाजपा संगठन को मज़बूत बनाने के लिए कठोर परिश्रम कर कार्यकर्ताओं में जान फूंकने का प्रयास किया है। पूनिया ने समूचे राजस्थान का भ्रमण कर अनेक जन आंदोलनों की अलख जगाकर कार्यकर्ताओं की हौंसला अफजाई की। मगर यह कहने वालों की भाजपा में कमी नहीं है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे वर्तमान में प्रदेश में सबसे अधिक जनाधार वाली करिश्माई नेता है। भाजपा में इस समय विधानसभा में उप नेता राजेंद्र राठौड, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल, किरोड़ी मीणा, सतीश पूनिया और ओम माथुर सहित एक दर्जन नेता मुख्यमंत्री पद की कतार में है। इनमें सबसे प्रभावी और लोकप्रिय नेता के रूप में 7वीं बार विधायक बने राजेंद्र राठौड़ अग्रिम पंक्ति में है। भाजपा सांसद किरोड़ी मीणा अपने लड़ाकू अंदाज़ के लिए जाने जाते है। वे विभिन्न जन समस्याओं को लेकर निरंतर संघर्षशील है। वे भी सीएम के दावेदार बताये जाते है।
राजस्थान में कांग्रेस अपना राज खोना नहीं चाहती तो वहीं भाजपा भी हर हाल में इस राज्य में अपनी सत्ता कायम करना चाहती है। भाजपा को विश्वास है कि प्रदेश में पांच साल में सत्ता परिवर्तन की परिपाटी इस बार भी कायम रहेगी। यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है कि जनता किसे सत्ता का ताज पहनाएगी।