सोच-समझ कर ही कोई फैसला लेंगे जत्थेदार श्री अकाल तख़्त साहिब
बात पंजाब के जिस्म पर भोगे गये 10 वर्षों के काले दौर की है। उन दिनों एक शे’अर का ज़िक्र बार-बार सुनाई देता था। इस तरह प्रतीत हो रहा है कि इतिहास फिर अपने-आप को दोहरा रहा है चाहे पूर्णतया नहीं दोहरा रहा। इसलिए आज पंजाब के सन्दर्भ में उस शे’अर का ज़िक्र ज़रूरी प्रतीत हो रहा है।
बहुत मुश्किल है हालात की गुत्थी सुलझे,
अहल-ए-दानिश ने बहुत सोच कर उलझाई है।
इतिहास साक्षी है और कुछ नई प्रकाशित किताबों में दिये गये हवालों ने भी यह साबित कर दिया है कि आप्रेशन ब्लू स्टार तथा सिख कत्लेआम से पहले तथा बाद में भी पंजाब तथा सिखों के जिस्म पर लगी चोटें कोई प्राकृतिक घटनाक्रम नहीं था, अपितु राजनीति की साज़िशों का ही परिणाम था।
अब भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि जैसे पंजाब तथा सिखों की कीमत पर कई राजनीतिक लक्ष्य ढूंढने की योजनाएं बनाई जा रही हैं। मुझे पता है कि इन साज़िशों का पूरा सच तो सही समय पर इन साज़िशों का हिस्सा रहे लोग ही सामने ला सकते हैं परन्तु फिर भी हालात के इशारे पर ‘सरगोशियां’ साज़िशों की शतरंज पर खेले जा रहे खेल का एहसास तो करवाती ही हैं। साज़िशें रचने वाले लोगों को इन साज़िशों की ओर किए जा रहे इशारे भी चुभते हैं परन्तु सच लिखना भी तो ज़रूरी है। मुझे यह देख कर आश्चर्य हो रहा है कि कैसे पहले से लिखी तथा प्रयुक्त की गई स्क्रिप्ट चाहे हू-ब-हू न सही, परन्तु निम्न स्तर पर दोहराई तो ज़रूर जा रही है। दूसरी तरफ व्यापक स्तर पर मीडिया तथा सोशल मीडिया के इस्तेमाल से इस छोटे-से आप्रेशन को ़खालिस्तान की लड़ाई के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। सिख बहुत भावुक हैं तथा ‘हक-सच के लिए कुर्बानी’ करने का दावा करने वाले उन्हें अपने पीछे लगाने में सफल हो जाते हैं जबकि सिखों को पहले इस पर विचार तो करना चाहिए कि जिस रास्ते पर उन्हें धकेला जा रहा है, वह किस ओर जाता है, उसका परिणाम क्या होगा?
शायद हिन्दू-सिखों सहित सभी पंजाबियों को स्मरण हो अथवा न हो परन्तु सच्चाई यही है कि पंजाब पर पहले ऋण का बोझ केन्द्रीय सुरक्षा बलों की पंजाब में उपस्थिति के खर्च के रूप में पड़ा था तथा यह गठरी भारी ही होती गई। पंजाब सरकार को याद रखना चाहिए कि अभी भी जो केन्द्रीय सुरक्षा बल हमने पंजाब में बुलाये हैं, उनका खर्च भी अंतत: हमें ही वहन करना पड़ेगा तथा उनसे चोट भी हमें ही पहुंचेगी।
अमृतपाल सिंह की नई वीडियो के प्रभाव
इस दौरान 18 मार्च के बाद अमृतपाल सिंह द्वारा जारी पहली लाइव वीडियो इस समय सबसे अधिक चर्चा का विषय है। इस वीडियो के संबंध में लोगों के भिन्न-भिन्न तरह के विचार हैं। कुछ लोग इसे अमृतपाल सिंह की चढ़दी कला के रूप में देख रहे हैं तथा कुछ इसे किसी दबाव के तहत जारी की गई वीडियो करार दे रहे हैं। सच्चाई कुछ भी हो, परन्तु इस वीडियों संबंधी कुछ आश्चर्यजनक सवालों के जवाब नहीं मिल रहे। अमृतपाल सिंह इस वीडियो में केन्द्र सरकार तथा भाजपा के संबंध में ज़िक्र तक नहीं करते। वह ़खालिस्तान संबंधी अपने स्टैंड या राय के बारे में भी कोई प्रगटावा नहीं करते। आश्चर्यजनक तौर पर वह जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह द्वारा उन्हें आत्म-समर्पण करने की सलाह संबंधी भी चुप ही रहते हैं, अपितु उन्हें वैसाखी पर सरबत खालसा बुलाने का ‘निवेदन’ करते हैं, जो एक निर्देश की तरह प्रभाव देती है। वैसे भी सरबत खालसा दो-अढ़ाई सप्ताह में सम्भव नहीं। आज अढ़ाई-तीन करोड़ सिखों जो विश्व के लगभग 100 देशों में फैले हुए हैं, को एक स्थान पर इकट्ठा करना तो सम्भव ही नहीं, परन्तु यदि प्रतिनिधि सिख नेताओं का सरबत खालसा भी बुलाना हो, तो भी इसकी तैयारी के लिए महीनों का समय चाहिए क्योंकि यह फैसला लेना होगा कि सरबत ़खालसा के लिए सिखों के प्रतिनिधि कैसे चुने जाएंगे। किस देश से कितने प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं तथा उन्हें चुनने के ढंग-तरीके तथा नियम भी बनाने पड़ेंगे। देश की सिंह सभाओं, गुरुद्वारा कमेटियों, सिख संस्थाओं, समुदायों, टकसालों, अन्य कई प्रकार के सिख संगठनों, सिख विद्वानों, बुद्धिजीवियों तथा इतिहासकारों के अलावा भी कई संस्थाओं के कितने-कितने प्रतिनिधि बुलाये जाने के संबंध में फैसला करना कोई दो-चार दिनों का काम नहीं।
कुछ भी हो आज हालात सिखों के लिए पहले से भी अधिक पेचीदा हैं। एक पक्ष इस स्थिति को ़खालिस्तान की लड़ाई के रूप में प्रचारित कर बहुसंख्या का ध्रुवीकरण करने की ओर चल पड़ा प्रतीत होता है। वहीं दूसरी तरफ विश्व भर के कई दर्जन देशों में ़खालिस्तान के पक्ष में हो रहे प्रदर्शन इस पक्ष का रास्ता और आसान कर रहे हैं। पंजाब तथा भारत में रहने वाले सिखों की अपनी समस्याएं हैं, उनका ़खालिस्तान के प्रति दृष्टिकोण विदेशों में रहते सिखों के साथ मेल नहीं करता। फिर सिखों ने आज तक प्रदेशों के लिए अधिक अधिकारों से आगे ़खालिस्तान के संबंध में कभी धार्मिक अथवा सामूहिक रूप में विचार भी नहीं किया कि यह सिखों के लिए कितना लाभदायक या कितना नुक्सानदायक हो सकता है। हमारे समक्ष ़खालिस्तान के लिए हथियारबंद लड़ाई के कई समर्थक आज रिहा होने या पैरोल पर आने के बाद यह कह रहे हैं कि यह युद्ध हथियारबंद लड़ाई का नहीं अपितु विचारधारा की लड़ाई का है। यदि हम पर अल्पसंख्यक होने के कारण कोई अन्याय होता है तो हमें उसका विरोध शांतमय ढंग से करने की कोई मज़बूत प्रणाली बनाने की ज़रूरत है। हमें अपनी धार्मिक संस्थाओं की विश्वसनीयता बहाल करने की भी ज़रूरत है। हमें वैचारिक तौर पर परिपक्व होने की ज़रूरत सबसे अधिक है।
होशियार कर रहा है गजर जागते रहो।
ऐ-साहिबान-ए-़िफक्र-ओ-नज़र जागते रहो।
सोये नहीं कि डूब गई नब्ज़-ए-कायनात,
बोझिल हो लाख आंख मगर जागते रहो।
(अ़ख्तर लखनवी)
जत्थेदार साहिब की कुछ ध्यानार्थ बातें
यह चर्चा भी जोरों पर है कि जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह, अमृतपाल सिंह के ताज़ा वीडियो में सरबत खालसा बुलाने की अपील पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। वह इसे दृष्टिविगत करने को ही प्राथमिकता देंगे, परन्तु इस बीच उनकी कुछ टिप्पणियों की चर्चा करना अवश्य प्रतीत होता है। उनका यह कहना बिल्कुल ठीक है कि पंजाब क्षेत्र ने सदियों अपने जिस्म पर अत्याचार सहन किया है। पंजाबियों को अनुभव बहुत है। जब भी कोई थोड़ा-सा भी अत्याचार करता है तो सिखों को उसका आभास हो जाता है। उनका बोलना अन्याय करने वालों को सहन नहीं होता।
जत्थेदार ने कहा कि सरकार को अपने मन में से यह धारणा निकाल देनी चाहिए कि सिख माहौल खराब करते हैं। सिख कभी माहौल खराब नहीं करते। सिख तभी रोष में आते हैं जब कोई पीड़ा देता है। ‘जबै बाण लागयो।। तबै रोस जागयो।।’ जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह की यह अपील तो प्रत्येक सिख को हर समय याद रखनी चाहिए कि हमें निशाना बनाने वाला शातिर है तो ऐसी स्थिति में जज़्बाती तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए। शांत रहें, शांत रह कर ही हम ‘जंग’ जीत सकते हैं, क्योंकि स्थिति इसी प्रकार की है। उन्होंने कहा कि जब शस्त्रों की बात आएगी, तब देखेंगे (अभिप्राय, अभी सशस्त्र लड़ाई का समय नहीं)।
शिरोमणि कमेटी के प्रस्ताव पर भाअ जी तथा अजीत
उन्हें ये फिक्र है हरदम नई तज़र्-ए-जफा क्या है,
हमें यह शौक है देखें सितम की इन्तहा क्या है।
‘अजीत’ पंजाब, पंजाबी तथा पंजाबियत का अलमबरदार समाचार पत्र है। इसके मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ‘अजीत’ की सम्पादकीय नीति पर किसी तरह का दबाव स्वीकार नहीं करते, अपितु सच और हक की बात जो उनके निजी विचारों से मेल न भी खाती हो, तब भी प्रकाशित करने से गुरेज़ नहीं करते। इसका एक सबूत तो गत दो दशकों से आधिक समय से प्रकाशित हो रहा यह कालम ‘सरगोशियां’ ही है। मुझे कभी भी भाअ जी डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने किसी विषय पर कुछ भी लिखने से नहीं रोका। वास्तविकता तो यही है कि पंजाब की सरकार या उसका प्रमुख, अ़खबार की सम्पादकीय नीति को विज्ञापानों के बल पर प्रभावित ही नहीं करना चाहता अपितु खरीदना ही चाहता था। जब डा. हमदर्द नहीं बिके तो उन्हें डरा कर झुकाने के प्रयास स्वरूप विजीलैंस का इस्तेमाल तथा केसों में फंसाने की धमकियां शुरू हो गईं। जब डा. हमदर्द नहीं झुके तो उनके नेतृत्व में बनी ‘जंग-ए-आज़ादी यादगार’ पर आए दिन पुलिस की पूछताछ शुरू हो गई, परन्तु यह भी उन्हें झुका नहीं सकी। जहां देश-विदेश में रहते पंजाबी ‘अजीत’ तथा डा. हमदर्द के साथ शाना-ब-शाना खड़े दिखाई दे रहे हैं, वहीं सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के बजट अधिवेशन में पंजाब सरकार द्वारा ‘अजीत’ तथा ‘जंग-ए-आज़ादी’ यादगार के खिलाफ की जा रही दमनकारी कार्रवाइयों के खिलाफ बड़े स्पष्ट तथा तीव्र नाराज़गी वाले प्रस्ताव पारित किये गये हैं। ये प्रस्ताव अपना उदाहरण स्वयं हैं। हम समझते हैं कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान इस प्रकार के टकराव से अपनी छवि का ही नुकसान कर रहे हैं।
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