राजनीति पर बड़ा प्रभाव डालेंगे जालन्धर के लोकसभा उप-चुनाव
जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इस चुनाव का परिणाम सिर्फ पंजाब पर ही नहीं, अपितु उत्तर भारत के भविष्य की राजनीति पर भी प्रभाव डालेगा तथा इसके साथ ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव का परिणाम भी देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाने का धारणी बन सकता है।
जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव का परिणाम चाहे लोकसभा में राजनीतिक पार्टियों की ताकत पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल सकता परन्तु फिर भी इस चुनाव का परिणाम कई बड़े-बड़े प्रभाव सृजित करने वाला होगा। यदि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार होती है तो यह उसकी पंजाब विधानसभा की शानदार जीत के बाद लगातार दूसरी बड़ी हार होगी। संगरूर लोकसभा के उप-चुनाव की हार चाहे जालन्धर से भी अधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए थी क्योंकि यह क्षेत्र आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान का गढ़ था परन्तु वह हार पंजाब तथा उत्तर भारत में इसलिए अधिक प्रभावपूर्ण नहीं थी क्योंकि उसके शीघ्र बाद लोकसभा चुनाव नहीं थे। वैसे उस हार का कुछ न कुछ प्रभाव आम आदमी पार्टी पर हिमाचल के चुनावों दौरान पड़ा दिखाई दिया था, परन्तु यदि ‘आप’ जालन्धर का लोकसभा चुनाव भी हार जाती है तो यह पार्टी को लगभग पूरे उत्तर भारत में नुकसान पहुंचाएगा। जबकि आम आदमी पार्टी की इस चुनाव में जीत 2024 के लोकसभा चुनावों में उसके लिए सफलता के कई नये मार्ग प्रशस्त कर सकती है। यदि इस चुनाव में कांग्रेस हार जाती है तो उसकी हालत में सुधार होने की सम्भावना और भी कम हो जाएगी, परन्तु यदि वह यह जीत जाती है तो उसके लिए यह सीट अपनी पहले जीती हुई सीट पुन: जीतने तक सीमित नहीं होगी, अपितु यह 2024 के लोकसभा चुनावों में पंजाब के अलावा दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर तथा राजस्थान आदि प्रदेशों में अच्छे चुनाव परिणामों हेतु उत्साह पैदा करेगी। यदि इस चुनाव में अकाली दल विधानसभा चुनावों से अच्छी कारगुज़ारी दिखाता है तो यह अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे अकाली दल के लिए एक बड़ा सहारा होगा। यह स्थिति अकाली दल को 2024 के लोकसभा चुनावों में एक बार पुन: प्रासंगिक बना देगी तथा यह बसपा का खो चुका आधार भी फिर से मज़बूत करने में सफल होगी।
वैसे हवा में ‘सरगोशियां’ हैं कि अकाली दल ने इस सीट पर विधायक डा. सुखविन्दर सुक्खी को उम्मीदवार ही बसपा नेताओं के ज़ोर देने पर बनाया है तथा उनमें एक गुप्त समझौता भी हुआ है कि यदि अकाली उम्मीदवार जीत गया तो बंगा विधानसभा की रिक्त हुई सीट बसपा उम्मीदवार को दी जाएगी परन्तु यदि अकाली दल इस चुनाव में बहुत पिछड़ गया और विधानसभा चुनावों की कारगुज़ारी के दृष्टिगत अच्छी कारगुज़ारी न दिखा सका तो फिर उसका 2024 के लोकसभा चुनावों में हाशिये पर चला जाना तय है। भाजपा ने भी इस बार जालन्धर लोकसभा उप-चुनाव में पूरा ज़ोर लगाया है तथा वह अपने कैडर के अलावा यह चुनाव अकाली दल तथा कांग्रेस से आये नेताओं की वैसाखियों के सहारे लड़ रही है। इसलिए भाजपा चाहे यह चुनाव जीते या न जीते परन्तु यदि वह दूसरे, तीसरे स्थान पर भी आ जाती है तो वह 2024 के लोकसभा चुनावों में पंजाब में एक बड़े दल के रूप में उभर सकेगी तथा 2027 के पंजाब विधानसभा चुनाव भी अपने दम पर ही लड़ने की तैयारी करेगी, परन्तु यदि इस चुनाव में भाजपा चौथे स्थान पर ही रह गई तो इस बात की सम्भावना बन सकती है कि भाजपा अकाली दल के प्रति अपनी मौजूदा नीति में बदलाव लाने हेतु सोचने के लिए विवश हो जाए।
जहां तक कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणामों का प्रभाव है तो वह प्रभाव देश-व्यापी होगा। क्योंकि इस समय भाजपा विरोधी दलों में गठबंधन की प्रक्रिया चल रही है। यदि कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस जीत जाती है तो जीत के बाद भाजपा की साम, दाम, दंड, भेद की नीति का मुकाबला करते हुए सरकार भी बना लेती है तो भाजपा विरोधी गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस को आसानी से मिल जाएगा। यहां तक कि यदि कांग्रेस जीत हासिल न भी कर पाई तो भी उसकी विपक्षी दलों को एकजुट करने की सामर्थ्य बढ़ेगी परन्तु यदि कर्नाटक में फिर से भाजपा जीत जाती है और कांग्रेस की कारगुज़ारी में कोई बड़ा सुधार नहीं आता तो ऐसी स्थिति में भाजपा विरोधी पार्टियों के गठबंधन की सम्भावनाएं कम हो जाएंगी।
अब हवाएं ही करेंगी रौशनी का ़फैसला,
जिस दीये में जान होगी वो दीया रह जाएगा।
विश्व भर में सिख प्रभाव बढ़ा
इस बार खालसा सृजना दिवस पर बैसाखी के अवसर पर कई दर्जन देशों में सिखों द्वारा निकाले गये नगर कीर्तनों ने विश्व भर में सिखों के प्रभाव तथा सामर्थ्य को और भी उभारा है। इससे सिख पहचान के प्रति भी विश्व सुचेत हुआ है। यह खुशी की बात है कि इस बार ज्यादातर स्थानों पर विदेशों में बसते सिख नेताओं ने इन नगर कीर्तनों के दौरान सिर्फ जोश से ही नहीं, अपितु होश से भी काम लिया है। एक तो इस बार ज्यादातर नगर कीर्तन सिखों में एकता का प्रतीक रहे तथा दूसरा इस बार सिखों ने ज्यादातर देशों में अपनी ताकत का प्रदर्शन करके चाहे अपनी अलग पहचान को उभारा परन्तु आश्चर्यजनक तौर पर इस बार ज्यादातर स्थानों पर खाड़कू नेता इन नगर कीर्तनों में प्रभाव नहीं डाल सके।
होश तो होश है ’़गर नहीं कुछ भी नहीं,
जोश ताकत है अ़गर होश के काबू में रहे।
(लाल फिरोज़पुरी)
प्रकाश सिंह बादल—एक युग का अंत
आसमां भर गया परिंदों से
पेड़ कोई बड़ा गिरा होगा।
कितना दुश्वार था स़फर उसका,
वो सर-ए-शाम सो गया होगा।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद आज जब उनके बारे इस कॉलम में लिखने लगा हूं तो प्रसिद्ध उर्दू शायर बशीर बदर का यह शे’अर अपने-आप ही मेरे ज़ेहन में आ गया था। स. बादल की मृतक देह के स्वागत में जिस तरह पंजाब की सड़कों पर लोग अपने-आप उमड़े हैं, वह यह सिद्ध करता है कि उनकी श़िख्सयत कितनी बड़ी थी। उनके जीवन का स़फर कितना दुश्वार (मुश्किलों भरा) रहा, वह भी इतिहास का हिस्सा बन गया है।
नि:संदेह उनकी बड़ी उपलब्धियों, गलतियों, सफलताओं असफलताओं और हार-जीत तथा पंजाब के लिए किये उनके कार्यों के अच्छे-बुरे प्रभावों का फैसला तो आने वाला वक्त और इतिहास ही करेगा, आज इस का मूल्यांकन करना ठीक नहीं। परन्तु इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि वह गत लगभग 60 वर्षों से पंजाब के इतिहास का भाग ही नहीं रहे अपितु वह ऐसे अहम पात्र रहे हैं जिनके बिना इन 60 वर्षों का पंजाब का इतिहास लिखा ही नहीं जा सकता। उन्होंने इतिहास का सृजन किया है। उनके किये कार्यों से सहमति या असहमति का ज़िक्र यहां करना न तो संभव है और न ही इस वक्त शोभनीय है परन्तु वह एक बड़े कद्द की शख्सियत थे और उनका अपने विरोधियों के प्रति व्यवहार उन्हें और भी बड़ा बना देता था। काश! वह अपने जीवित होते अपनी आत्मकथा स्वयं अपनी देख-रेख में लिखवा जाते तो पंजाब के गत 60 वर्षों के इतिहास, सिखों तथा पंजाब के संताप के कई अनसुलझे प्रश्नों के जवाब मिल जाते। हम समझते हैं कि अब भी उनके निकट रहे तथा राज़दार अकाली नेताओं को चाहिए कि उनके जीवन के संबंध में वे जो भी जानते हैं, उसे अपने जीवित रहते कलमबद्ध करवा कर एक पुस्तक का रूप दें। हम समझते हैं कि जहां यह उनकी स. बादल को एक श्रद्धांजलि होगी, वहीं ऐसी पुस्तक पंजाब में घटित अहम घटनाक्रमों संबंधी स. बादल की सोच का प्रकटावा भी होगी, जो इतिहासकारों तथा इतिहास के विद्यार्थियों की खोज के लिए एक अमूल्य जानकारी का स्रोत भी बनेगी।
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