कर्नाटक चुनावों का प्रभाव

दक्षिणी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस के पक्ष में आये चुनाव परिणाम का निश्चित रूप से इसी साल के अंत में होने वाले कुछ अन्य राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव और आगामी वर्ष में होने वाले लोकसभा के चुनाव पर असर पड़ने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसीलिए कांग्रेस और भाजपा द्वारा बड़ी दिलचस्पी और सक्रियता के साथ ये चुनाव लड़े गये थे। कांग्रेस ने जहां भाजपा की एकपक्षीय साम्प्रदायिक विचारधारा को लगातार निशाना बनाए रखा, वहीं उन्होंने इन चुनावों में अपनी सरकार आने पर बहुत सारी योजनाओं का ऐलान भी किया था, जिसके असर से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसके साथ-साथ भाजपा सरकार के स्थानीय नेताओं पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगते रहे हैं और समय-समय पर इनके संबंध में बहुत केस भी सामने आते रहे हैं। चाहे दक्षिण के इस राज्य में जातिवाद भारी है। वह भी चुनावों को प्रभावित करता है। वहीं इस राज्य के 13 प्रतिशत के लगभग मुस्लिम वोटर भी राजनीतिक तौर पर महत्व रखते हैं, जो इस समय बड़ी सीमा तक कांग्रेस के पक्ष में झुके दिखाई देते हैं।
अब इन विधानसभा चुनावों में 224 सीटों में से कांग्रेस को 136, भारतीय जनता पार्टी को 65 जबकि जनता दल (सैकुलर) को 19 सीटें मिली हैं। वर्ष 2018 के चुनावों में भाजपा को 104 और कांग्रेस को 80 और जनता दल को 37 सीटें मिली थीं, परन्तु उस समय भाजपा नेता येदीयुरप्पा अपना बहुमत साबित करने में सफल नहीं हो सके थे। जनता दल (सैकुलर)के कुमारास्वामी को बहुमत मिला और वह कांग्रेस की मदद के साथ मुख्यमंत्री बन गये लेकिन अंदरूनी ब़गावत के साथ येदीयुरप्पा ने जोड़-तोड़ करके कुर्सी संभाल ली थी। इसी प्रकार लगातार यह राजनीतिक खेल चलता रहा था। कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों, दलितों, कबीलों तथा पिछड़ी जातियों को इकट्ठा करने का प्रयास किया जबकि भारतीय जनता पार्टी वहां की दो बड़ी जातियों लिंगायत तथा वोकालिंगा में संतुलन बनाने के लिए प्रयासरत रही। इसके अतिरिक्त भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का भी लाभ लेने का यत्न किया। इस बार 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने, प्रत्येक परिवार की एक महिला को 2000 रुपये महीना देने, गरीबी रेखा में आने वाले लोगों को 10 किलो चावल तथा बेरोज़गार बी.ए. पास नौजवानों को 3000 रुपये प्रतिमाह तथा बेरोजगार डिप्लोमा होल्डरों को 1500 रुपये प्रति महीना देने की घोषणा की गई। अब जबकि कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया है, तो मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भी बड़ी गम्भीर चर्चा शुरू होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। इन चुनावों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया तथा प्रदेश इकाई के मौजूदा अध्यक्ष डी.के. शिव कुमार की भी अहम भूमिका रही है और बड़ी सीमा तक ये चुनाव उनके इर्द-गिर्द ही घूमते रहे हैं। चाहे जनता दल (सैकुलर) किसी भी पार्टी के बहुमत न ले जा सकने के कारण गत लम्बी अवधि से अपनी राजनीति अवश्य खेलता आया है, परन्तु इस बार कांग्रेस के बहुमत में आने से उसकी ऐसी राजनीति को बूर पड़ते नज़र नहीं आ रहा। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव इसलिए क्षति बने दिखाई दे सकते हैं क्योंकि इससे आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव को दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द