लोकतंत्र का स्तम्भ लोग होते हैं, इमारतें नहीं 

राष्ट्रपति तथा 20 विपक्षी पार्टियों की अनुपस्थिति में जल्दबाज़ी से किया गया नए संसद भवन का उद्घाटन भाजपा सरकार के लोकतांत्रिक नैतिक मूल्यों को दागदार कर गया। उद्घाटन समारोह को ‘सेंगोल’ की स्थापना से राजशाही रंगत देने पर भी विशेष तौर पर ज़ोर लगाया गया। इस उद्देश्य के लिए तमिलनाडु से विशेष तौर पर मठाधीश बुलाए गए थे। तमिल परम्पराओं की खुल कर प्रशंसा हो रही है, जिसके पीछे असल उद्देश्य राजनीतिक है। कर्नाटक में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी दक्षिण जीतने के लिए सक्रिय हो गई है। विशेषकर नए संसद भवन का उद्घाटन वैदिक रीतियों से किया गया है। देश के राष्ट्रपति, जिनके भाषण से ही संसद की कार्यवाही शुरू होती है, उद्घाटन के लिए निमत्रंण न मिलने के कारण समारोह में शामिल नहीं हो सके। उनका संदेश पढ़ कर सुना दिया गया। नए संसद भवन के उद्घाटन की समूची कार्यवाही यह प्रभाव देने में असफल रही है कि यह किसी धर्म-निरपेक्ष संविधान रखने वाले देश में हुआ है। बहरहाल, नया संसद भवन अस्तित्व में आ गया है, हालांकि उसका कुछ कार्य शेष रहता है, जिसमें कई माह लग सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि नया संसद भवन विकसित भारत का साक्षी बनेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले कुछ दिनों से अचानक भारत को विकसित देश बनाने की बातें करने लगे हैं। कहा जा रहा है कि 2047 तक भारत विकसित देश बन जाएगा यानि भारत एक गरीब विकासशील देश से सीधा विकसित देश बनेगा।  नि:संदेह 60 हज़ार मज़दूरों की दिन-रात की अढ़ाई वर्ष की मेहनत से देश के लिए नया संसद भवन तैयार हो गया है जो पुराने संसद भवन के मुकाबले  अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है, परन्तु लोकतंत्र सिर्फ इमारतों से मज़बूत नहीं होता। 
 धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्र में बोधियों, जैनियों, सिख पंथियों, मुस्लिम मौलानाओं तथा ईसाई मिशनरियों को दरकिनार करके तमिलनाडु के आधिनामियों का सेंगोल लेकर चलना बताता है कि भाजपा को लोकतंत्र पर पहरा देने के बजाय आगामी तमिलनाडु चुनावों की चिंता है, समूचे भारत के विकास की नहीं। यदि नये भवन का उद्घाटन देश के प्रथम नागरिक, हमारे राष्ट्रपति द्वारा होता तो भी इसके निर्माण का श्रेय प्रधानमंत्री को ही जाना था, परन्तु कौन साहिब को कहे, ऐसे नहीं, ऐसे करें। 
इश्तिहाक अहमद का पंजाब 
गत सप्ताह का एक ओर अहम घटनाक्रम प्रगतिशील लेखक संघ के आह्वान पर पीप्लस कन्वैंशन सैंटर चंडीगढ़ में प्रो. इश्तिहाक अहमद द्वारा अपने भाषण में सन् सैंतालीस के विभाजन के कईर् अनसुलझे सवालों का जवाब था। प्रसिद्ध लेखकों व चिंतकों को सम्बोधित करते हुए प्रो. अहमद ने कहा कि उन्होंने 1947 के पंजाब विभाजन के खोज कार्य पर 11 वर्ष लगाए हैं। इस सिलसिले में उनकी मां की आंखों देखी यादों, सैंतालीस बारे लिखा गया समूचा साहित्य, हज़ारों लोगों से मिल कर की गई मुलाकातें तथा ब्रिटिश सरकार के रिकार्ड में से दस्तवेज़ों पर 670 पृष्ठों की पुस्तक में अंतर-दृष्टियों वाला पंजाब पेश किया है। मूल रूप में अंग्रेज़ी में लिखी पुस्तक ‘लहु लुहाण, वंडिया, वडिया-टुक्किया पंजाब’ 1947’ का पंजाबी अनुवाद सुखवंत हुंदल (वैंकूवर) तथा कंवल धालीवाल (लंदन) ने किया है। 
उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी खोज को तीन भागों में बांटा है। पहला भाग सैंतालीस के दंगों के आगाज़ के समय का है, जिसे उन्होंने ‘खूनी टकराव वल्ल वधदे कदम’ का नाम दिया है। यह भाग जनवरी 1945 से मार्च 1947 कर का है। दूसरा भाग अप्रैल 1947 से 14 अगस्त, 1947 जिसे उन्होंने ‘वंड दी आखिरी खेड’ का नाम दिया है। तीसरा भाग 15 अगस्त, 1947 से दिसम्बर के आखिरी समय तक का है, जिसे ‘फिरकू सफाये’ का नाम दिया गया है। श्रोताओं द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में उन्होंने विभाजन के दौरान मुस्लिम स्टेट के साथ सिख स्टेट के संदर्भ बारे भी जानकारी दी और कैबिनेट मिशन के असफल होने के कारणों पर भी प्रकाश डाला। डा. सुखदेव सिंह सिरसा ने आए मेहमानों का स्वागत किया और प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव कुलदीप सिंह दीप ने मंच संचालन किया। प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष सुरजीत जज तथा डा. सर्बजीत सिंह ने प्रो. इश्तिहाक अहमद का सम्मान किया। यह समारोह तो एडवोकेट राजिन्द्र सिंह चीमा के धन्यवादी शब्दों से समाप्त हो गया परन्तु समारोह का प्रमुख लाभ प्रो. अहमद की पुस्तक ‘लहु लुहाण, वंडिया,वडिया-टुक्किया पंजाब’ नामक पुस्तक का प्राप्त होना था। यहां मैं इस पुस्तक का सारांश देने की छूट ले रहा हूं : 
‘क्या पंजाब से या विभाजन के बाद पाकिस्तानी पंजाब  से हिन्दुओं तथा सिखों को निकाले की मुसलमानों के पास कोई योजना थी या फिर पूर्व पंजाब से मुसलमानों को समाप्त करने की सिखों के पास कोई योजना थी? इन दो नुक्तों बारे इश्तिहाक अहमद तर्क देता है कि मान भी लिया जाए कि मुस्लिम लीग के पास विभाजन से पहले के पंजाब में से हिन्दुओं, सिखों को समाप्त कर देने की कोई विस्तृत साज़िश तैयार नहीं भी की थी, तो भी उसके द्वारा अपनाई सोच, नीतियों तथा राजनीति ने अविभाजित पंजाब में वे हालात पैदा कर दिये थे, जिनके कारण पंजाब का विभाजन हो गया। हालांकि इसकी मांग सिखों ने की थी जिसका साथ कांग्रेस ने दिया। बिल्कुल स्पष्ट था कि यदि हिन्दुस्तान का विभाजन होता है तो सिखों तथा कांग्रेस का दृढ़ इरादा था कि वे मुस्लिम लीग को समूचा पंजाब नहीं लेने देंगे। दूसरे शब्दों में हिन्दुओं तथा सिखों को पंजाब में से निकालने की किसी खास योजना तथा रणनीति के बिना भी मुस्लिम लीग ने लाज़िमी तौर पर वे हालात पैदा कर दिये थे, जिनके तहत राज्य का न चाहते हुए भी विभाजन हुआ और अमानवीय कत्लेआम हुआ। 
मान सरकार बनाम अजीत प्रकाशन समूह 
बहुत बड़ी घटनाओं वाले इस सप्ताह का एक अंश मान सरकार द्वारा अजीत प्रकाशन समूह के मालिक सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द को विजीलैंस द्वारा सम्मन जारी करना था। इस दमनकारी नीति के खिलाफ जिस संख्या में लोग सड़कों पर उतरे, वह सबके सामने है। इसका शिखर स्वच्छ छवि वाले गुरसिख राजनीतिक नेता डा. इन्द्रबीर सिंह निज्झर का पंजाब मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना तथा पंजाब के राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित द्वारा इन सम्मनों को गलत करार देते हुए मान सरकार को यह सम्मन वापस लेने का परामर्श देना था। 
अंतिका
—मिज़र्ा ़गालिब— 
हां, वह नहीं ़खुदा-परस्त
जाओ वह बेवफा नहीं
जिस को हो दीन-ओ-दिल अज़ीज़ 
उसकी गली में जायें क्यों?