गेहूं ही बनी रहेगी रबी की मुख्य फसल
बिजाई के बाद शुरू दिसम्बर में मौसम के कुछ गर्म रहने के कारण गेहूं की उपजाऊ शक्ति प्रभावित होने और मार्च-अप्रैल में जब गेहूं की कटाई शुरू होनी थी, बारिश और तेज़ हवाओं ने जो फसल का नुकसान किया, इसके बावजूद पंजाब में गेहूं का उत्पादन 166 लाख टन और उत्पादकता 47.25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होने का अनुमान है। जब गेहूं पककर कटाने की कगार पर थी, तो तेज़ हवाओं और बारिशों के कारण तकरीबन 40 प्रतिशत क्षेत्र पर गेहूं की फसल ज़मीन पर बिछ गई थी। इससे पहले कृषि और किसान कल्याण विभाग ने 180 लाख टन गेहूं का उत्पादन होने का अनुमान लगाया था। चाहे यह 2018-19 के रिकार्ड उत्पादन 182.62 लाख टन से कम थी परन्तु बाकी सभी वर्षों से अधिक थी। पिछले वर्ष उत्पादन 148 लाख टन पर ही रह गया था और उत्पादकता 42.88 क्विंटल प्रति हैक्टेयर रह गई थी क्योंकि मार्च के मध्य पड़ी भीषण गर्मी ने गेहूं की फसल को बुरी तरह से प्रभावित किया था।
सरकारी एजैंसियों ने इस वर्ष 121 लाख टन गेहूं की खरीद की है, जबकि पिछले वर्ष यह खरीद 96 लाख टन पर खत्म हो गई थी। निजी व्यापारियों ने चाहे पिछले वर्ष के 6.36 लाख टन से कम 4.68 लाख टन ही गेहूं खरीदी है क्योंकि बारिश के कारण गेहूं की गुणवत्ता (क्वालिटी) खराब हो गई थी, दाना बदरंग हो गया था और इसके निर्यात पर रोक और पाबंदी लगी हुई थी। ऐसी स्थिति में निजी व्यापारी खरीद करने के लिए आगे नहीं आए। प्रदेश में 34.90 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल पर गेहूं की काश्त हुई थी, जो पिछले वर्ष से 36000 हैक्टेयर क्षेत्रफल कम गया था। इस वर्ष कम क्षेत्रफल से अधिक उत्पादन हुआ है। कृषि विशेषज्ञ इसको समय पर की गई बिजाई और अधिक झाड़ देने वाली आई.सी.ए.आर.-भारतीय गेहूं और जौ की खोज संबंधी करनाल स्थित संस्थान द्वारा विकसित डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-187, डी.बी.डब्ल्यू.-222 और कुछ हद तक आई.ए.आर.आई. से विकसित एच.डी.-3086 और पी.ए.यू. से रिलीज़ की गई अधिक झाड़ देने वाली पी.बी.डब्ल्यू.-826 आदि किस्मों की अधिक काश्त किया जाना बताते हैं। बिजाई से पहले बहुत से किसानों ने कम्प्यूटर कराहे के साथ जो ज़मीन समतल करवाकर सीड-कम-फर्टीलाइज़र ड्रिल, सुपरसीडर, स्मार्ट सुपरसीडर और हैप्पी सीडर मशीनों के साथ बिजाई की, उससे भी उत्पादकता बढ़ी। परन्तु सरकार द्वारा 132 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद करने का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। सरकारी खरीद की मंडियां बंद होते ही मंडी में गेहूं का मूल्य एकदम ऊपर उठकर 2300 रुपये प्रति क्विंटल हो गया क्योंकि गेहूं किसानों के पास रही नहीं और आढ़तियों के पास भी नाममात्र ही है। आई.सी.ए.आर.-आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर. के निर्देशक डा. ज्ञानइन्द्र सिंह अनुसार इस वर्ष किसानों को अक्तूबर में संस्थान द्वारा रिलीज़ की गई अधिक झाड़ देने वाली गेहूं की नई किस्में डी.बी.डब्ल्यू.-327, डी.बी.डब्ल्यू.-332, डी.बी.डब्ल्यू.-370, डी.बी.डब्ल्यू,-371 और डी.बी.डब्ल्यू.-372 किस्मों के बीज़ दिए जाएंगे, जिससे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विशेष करके उत्पादकता बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है। यह पांचों किसमों को सर्व-भारतीय फसलों की किस्मां व स्तरीय नियत करने वाली भारत सरकार की सब कमेटी द्वारा इन राज्यों में काश्त करने के लिए प्रमाणकता दे दी गई है। हरियाणा में 25 लाख हैक्टेयर और उत्तर प्रदेश में लगभग 50 लाख हैक्टेयर पर गेहूं की काश्त की जाती है।
भारत में गेहूं की सरकारी खरीद 26.2 मिलियन टन की हुई है, जबकि पिछले वर्ष केवल 188 लाख टन की हुई थी। क्योंकि मार्च में पड़ी भीषण गर्मी के कारण पिछले वर्ष फसल बुरी तरह प्रभावित हुई थी, इसलिए इस वर्ष के मुकाबले 74 लाख टन गेहूं कम खरीदी गई थी। केन्द्र गेहूं भण्डार में योगदान मुख्य तौर पर तीन राज्यों पंजाब, मध्यप्रदेश और हरियाणा द्वारा डाला गया है। पंजाब में सबसे ज्यादा 121.27 लाख टन, मध्यप्रदेश से 79.98 लाख टन और हरियाणा से 63.17 लाख टन का योगदान है। भारत में गेहूं की काश्त अधीन 31.5 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल है। पंजाब का केन्द्र गेहूं भण्डार में योगदान ही सब राज्यों से अधिक नहीं यहां गेहूं भी दूसरे राज्यों को इस वर्ष 26 लाख टन के करीब भेजी गई है, जिसमें से 22 लाख टन तो इस वर्ष का ही उत्पादन है, बाकी 4 लाख टन पिछले वर्षों के भण्डार से लिया गया है। भारत में इस वर्ष गेहूं के उत्पादन का लक्ष्य 112 मिलियन टन रखा गया था। मार्च में बारिश और तेज़ हवाओं से फसल के प्रभावित होने के कारण यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। पिछले वर्ष का उत्पादन मार्च में गर्मी होने के कारण 106.84 मिलियन टन पर रह गया था, जबकि उससे पिछले वर्ष 2020-21 में उत्पादन 109.59 मिलियन टन था।
गेहूं की काश्त का भविष्य में भी क्षेत्रफल घटने की कोई संभावना नहीं। फसली-विभिन्नता प्रोग्राम में धान की काश्त में क्षेत्रफल घटाने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। परन्तु गेहूं का कोई सफल विकल्प उपलब्ध नहीं। पंजाब सरकार से कृषि कर्मन पुरस्कार प्राप्त करने वाला पी.ए.यू. से सम्मानित प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका कहते हैं कि वैज्ञानिकों द्वारा उपलब्ध किए जा रहे वैकल्पिक गेहूं व धान के मुकाबले आज तक आम किसानों को लाभदायक नहीं रहे। गेहूं हर किसान की रबी की फसल भविष्य में भी बनी रहेगी। हर किसान इसकी बिजाई संबंधी तकनीकी ज्ञान रखता है और यह राज्य की प्राचीन फसल है। गेहूं की विदेशों में भी मांग है और भारत में भी इसकी मांग बढ़ रही है। अन्न सुरक्षा और प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों संबंधी अनाज उपलब्ध करने में भी इसकी ज़रूरत और मांग बढ़ी है। पिछले 2-3 वर्षों से बफर स्टाक भी कम हुए हैं। भविष्य में गेहूं को निर्यात किए जाने की भी पूरी संभावना है।