भण्डारण क्षमता बढ़ने से रुकेगी अनाज की बर्बादी 

केंद्र सरकार द्वारा देश में अनाज भण्डारण क्षमता बढ़ाये जाने का निर्णय देश में काफी हद तक कुपोषण और अनाज की बर्बादी को रोकेगा। फिलहाल देश में एक अनुमान के अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक उत्पादन बर्बाद हो जाता है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या का लगभग 25.7 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 13.7 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करने वाले हैं। भारत में कुपोषण का एक प्रमुख कारण गरीबी को माना जाता है। रूस-यूक्रेन युद्ध से बाधित हुई खाद्यान्न आपूर्ति शृंखला के चलते दुनिया के तमाम देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के मिज़ाज में आये अप्रत्याशित बदलाव से अनाज की गुणवत्ता और मात्रा पर असर होने लगा है। किसी संप्रभु राष्ट्र के लिये खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता अपरिहार्य ही है। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले भारत को आने वाले समय के लिये अनाज के एक-एक दाने की रक्षा करनी होगी। वह भी ऐसे में जब किसान का खेती से मोहभंग हो रहा है। वहीं दूसरी ओर जब विकास कार्यों तथा आवासीय-कारोबारी निर्माण के लिये बड़े पैमाने पर कृषि भूमि का उपयोग हो रहा है, भण्डारण क्षमता बढ़ाना ज़रूरी हो जाता है। ऐसे में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अन्न भण्डारण को लेकर किए गए फैसले की सराहना की जानी चाहिए, जिसमें सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भण्डारण योजना को मंजूरी दी गई है। जिसके अंतर्गत अन्नदाता के उत्पादों को बचाने के लिये ब्लॉक स्तर पर पांच सौ से दो हज़ार मीट्रिक टन क्षमता वाले गोदाम बनाने का निर्णय लिया गया है। साथ ही योजना के क्रियान्वयन के लिये अंतर मंत्रालयी समिति के गठन को भी हरी झंडी मिली है। निश्चय ही यह देर से उठाया गया दुरुस्त कदम है। निश्चय ही देश में मौजूदा 1450 लाख टन की भण्डारण क्षमता को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। 
यही वजह है कि अगले पांच सालों में 700 लाख टन भण्डारण क्षमता और बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत दुनिया के सर्वाधिक अनाज उत्पादक देशों में गिना जाता है, लेकिन उसकी भण्डारण क्षमता अन्य विकसित देशों के मुकाबले बेहद कम रही है। जिससे किसान को फसल तैयार होने के तुरंत बाद मंडियों में अनाज बेचने जाना पड़ता है। भण्डारण क्षमता न होने के कारण किसान को औने-पौने दामों में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं। यही वजह है कि भरपूर फसल उत्पादन के बावजूद उसे घाटा उठाना पड़ता है क्योंकि आपूर्ति बढ़ने से उत्पादों के दाम गिर जाते हैं। केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के अनुसार अब भारत विश्व में अनाज के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। इस योजना से भण्डारण की कमी से जो अनाज की बर्बादी होती थी, वह रुकेगी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी बड़े उत्पादक देशों के पास अपने वार्षिक उत्पादन से अधिक की भंडारण क्षमता उपलब्ध है, लेकिन भारत में अन्न के भण्डारण की क्षमता, वार्षिक उत्पादन का केवल 47 प्रतिशत है। परिणामस्वरूप अनाज की बर्बादी होती है और किसानों को आपात बिक्री करनी पड़ती है। दुनिया में चीन, अमरीका, ब्राज़ील, रूस, अर्जेंटीना आदि के पास भण्डारण की क्षमता कहीं अधिक है। इससे वहां के किसानों और उनसे जुड़े क्षेत्रों को मदद मिलती है।
सहकारिता मंत्रालय देश के केंद्र शासित प्रदेशों व राज्यों के दस जिलों में इसकी पायलट योजना शुरू करेगा। जिससे हासिल अनुभव का लाभ शेष देश को दिया जा सकेगा, साथ ही योजना की खामियों को दूर किया जा सकेगा। केंद्रीय सहकारिता मंत्री की अध्यक्षता में एक अंतर मंत्रालय समिति योजना के क्रियान्वयन की देखरेख करेगी। निश्चित रूप से इस योजना के क्रियान्वयन से हर साल बर्बाद होने वाला लाखों टन अनाज बचाया जा सकेगा। वह अनाज भी, जो आंधी, तूफान व बारिश में मंडियों में बर्बाद होता रहा है। यदि किसान अनाज को गोदामों में रखने की स्थिति में होगा तो वह बाज़ार की ज़रूरत के हिसाब से उचित दामों पर अपने उत्पाद बेच सकेगा। इतना ही नहीं, किसान गोदाम में रखे उत्पाद के मूल्य के सत्तर फीसदी के बराबर कर्ज लेकर अगली फसल की तैयारी भी कर सकेगा। विडम्बना ही है कि इस लाभकारी योजना को नीति-नियंताओं की अदूरदर्शिता के चलते आज़ादी के सात दशक बाद क्रियान्वित किया जा रहा है। ज़रूरी है कि देश की अन्न भण्डारण क्षमता उत्पादन से अधिक होनी चाहिए। कोरोना काल के सबक हमें याद रखने चाहिए कि इसके बाद के वर्षों में लगातार अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज तभी दिया जा सका क्योंकि हमारे देश में अनाज का पर्याप्त बफर स्टॉक था। ऐसी महामारियां भविष्य में आ सकती हैं, जिससे मुकाबले के लिये पर्याप्त अनाज भंडारण अनिवार्य है। निश्चित रूप से अब तक कुल उत्पादन की 47 फीसदी भंडारण क्षमता में इस योजना से पर्याप्त वृद्धि की जा सकेगी। 
उल्लेखनीय है कि इसके क्रियान्वयन के लिये कृषि और किसान कल्याण, उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण, खाद्य प्रसंस्करण और उद्योग मंत्रालयों की विभिन्न योजनाओं को मिलाकर इस योजना को मूर्त रूप दिया गया है। जिससे निश्चित रूप से कृषि क्षेत्र में रोज़गार के नये मौके पैदा होंगे। सरकार को हर साल बर्बाद होने वाली लाखों टन फल-सब्जियों को बचाने के लिये पर्याप्त शीतगृह भी स्थापित करने होंगे। हमें वैज्ञानिक ढंग से भंडारण की ज़रूरत को भी समझना होगा। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार सप्लाई चेन की कमी के कारण भारत में हर साल 11-15 प्रतिशत अनाज नष्ट हो जाता है। दूसरी ओर, 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 14.37 प्रतिशत आबादी कुपोषण की शिकार है। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए भंडारण क्षमता विकसित करने की कितनी ज़रूरत है। 
खाद्य पदार्थों का नुकसान दो तरीके से होता है। एक तो उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले, और दूसरा उपभोक्ता के स्तर पर। भारत में फूड ग्रेन स्टोरेज मैनेजमेंट में कई चुनौतियां हैं, जिनकी वजह से अनाज का काफी नुकसान होता है। यह हमारी खाद्य सुरक्षा को भी प्रभावित करती है। इससे किसानों और व्यापारियों को भी आर्थिक नुकसान होता है, जिससे खाद्य सुरक्षा और प्रभावित होती है।