धार्मिक दृष्टि से सबसे पवित्र पर्वत

हम यहां न तो सबसे ऊंचे पर्वतों की बात कर रहे हैं और न ही पर्वतमालाओं की। हम बात कर रहे हैं धार्मिक दृष्टि से सबसे पवित्र कहे जाने वाले पर्वतों की। तो आइए जानते हैं 11 सबसे पवित्र पर्वतों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
कैलाश पर्वत
यह पर्वत हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र पर्वत माना गया है। यहां साक्षात शिव विराजमान हैं। इसी पर्वत के पास मानसरोवर स्थित है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएं केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो यह है कि ईश्वर ही सत्य है और सत्य ही शिव है। यह पर्वत चीन के तिब्बत क्षेत्र में है।
त्रिकुट पर्वत
भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू के कटरा ज़िले में स्थित त्रिकुट पर्वत पर पवित्र तीर्थस्थल है, जहां माता रानी वैष्णोदेवी विराजमान हैं। माता के साथ यहां हनुमान जी और भैरवनाथ जी भी विराजमान हैं। यह हिन्दुओं का सबसे पवित्र स्थल माना गया है।
गिरनार पर्वत
गुजरात में जूनागढ़ के निकट गिरनार पर्वत है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात ‘गिर वन राष्ट्रीय उद्यान’ इसी पर्वत के जंगल क्षेत्र में स्थित है। गिरनार का प्राचीन नाम ‘गिरिनगर’ था। गिरनार मुख्यत: जैन मतावलंबियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यहां मल्लिनाथ और नेमिनाथ के मंदिर बने हुए हैं। यहीं पर सम्राट अशोक का एक स्तंभ भी है। महाभारत में अनुसार रेवतक पर्वत की क्रोड़ में बसा हुआ प्राचीन तीर्थ स्थल है।
गब्बर पर्वत 
भारत राज्य गुजरात के बनासकांठा ज़िले में एक छोटा सा पहाड़ है जिसे गब्बर पर्वत कहा जाता है जो प्रसिद्ध तीर्थ अम्बाजी से 5 किलोमीटर दूर है। यहीं से अरासुर पर्वत पर पवित्र वैदिक नदी सरस्वती का उश्वम भी होता है। यह स्थान यह प्राचीन पौराणिक 51 शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। पुराणों के अनुसार यहां सती का हृदय भाग गिरा था। इसका वर्णन तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर 999 सीढियां चढ़नी पड़ती हैं।
माऊंट आबू
माउंट आबू पर्वत राजस्थान और गुजरात सीमा पर स्थित है। यह नीलगिरि पहाड़ी श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है जो राजस्थान के सिरोही ज़िले में स्थित है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। माउंट आबू प्राचीनकाल से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। माउंट आबू में ही दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।
गोवर्धन पर्वत
उत्तरप्रदेश के मथुरा ज़िले में स्थित गोवर्धन पर्वत के बारे में कहा जाता है कि यह एक श्राप के चलते धीरे-धीरे घटता जा रहा है। परंपरा के अनुसार दूर-दूर से भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की हैं। परिक्रमा जहां से शुरू होती है, वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर भी है जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है। परिक्रमा मार्ग में कई प्राचीन और धार्मिक स्थल आते हैं जिसमें से एक वह स्थान भी है, जहां से भगवान कृष्णा ने इस पर्वत को उठा लिया था।
चामुंडा पहाड़ी
मैसूर से लगभग 13 किमी दक्षिण में चामुंडा पहाड़ी स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है।
तिरुमाला पर्वत
यहां पर प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी भगवान व्यंकटेश स्वामी का मंदिर है। यह हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह स्थल दक्षिण भारत के तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने कुछ समय गुजारा था। इस मंदिर का ज्ञात इतिहास 9वीं शताब्दी से शुरू होता है।
मनसादेवी पहाड़ी मंदिर
शिवालिक की पहाड़ियों के बीच स्थित मां मनसादेवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यह पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखंड के हरिद्वार में स्थित है। ऊंची पहाड़ी पर होने की वजह से मंदिर में पहुंचने के लिए रोपवे का इस्तेमाल होता है। मनसादेवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिकजी हैं। ये नागराज वासुकि की बहन हैं। ये मूलत: आदिवासियों की देवी हैं।
नंदादेवी पर्वत
मां नंदादेवी के नाम से जाने जाना वाला यह पर्वत भारत का दूसरा और विश्व का 23वां सबसे ऊंचा पर्वत है। इससे ऊंचा पर्वत भारत में कंचनजंगा का पर्वत है। नंदादेवी का पर्वत भारत और नेपाल के सीमा क्षेत्र में फैला है। नंदादेवी पर्वत भारत के उत्तराखंड राज्य के अंतर्गत गढ़वाल ज़िले में स्थित है।
पावागढ़ की पहाड़ी
माना जाता है कि गुजरात के पावागढ़ में मां के वक्षस्थल गिरे थे। पावागढ़ माहाकाली माता का जाग्रत स्थान है। यहां लाखों भक्त माता के दरबार में हाज़री लगाने आते हैं। इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गुरु विश्वामित्र ने यहां काली मां की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली मां की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहां बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर ‘विश्वामित्री’ किया गया। (उर्वशी)