वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्र में लम्बी छलांग भारत में बनेगी लीथियम सल्फर बैटरी    

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब अपना कार्यभार संभाला था तब पिछली सरकारों की तात्कालिक लाभ और समस्याओं के निराकरण की नीतियों, तुष्टिकरण और असंयमित आर्थिक नीतियों के चलते देश अवसान की ओर जा रहा था। सेना के पास लड़ने के लिए अत्याधुनिक हथियारों का अभाव था, जिसके चलते पाकिस्तान और चीन देश में अशांति का माहौल बना रहे थे और समय-असमय घुसपैठ भी करते रहते थे। देश की अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो रही थी। देश हर बड़ी चीज के लिए आयात पर निर्भर था। भाजपा सरकार ने ‘मेक इन इण्डिया’ अभियान चलाया और देश आज विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने को ओर अग्रसर है। देश काले धन और जाली करंसी के मकड़जाल से जूझ रहा था। देश की आय का एक बड़ा भाग कच्चा तेल खरीदने में ही निकल जा रहा था। 
मोदी ने पहले जाली मुद्रा जो पिछली सरकार की नीति के कारण बेखौफ  पाकिस्तान से आ रही थी और देश में आतंकवाद को पोषित रही थी, को नोटबंदी करके खत्म किया। इस कारण पाकिस्तान धीरे-धीरे दिवालिया होना शुरू हो गया और देश में आतंकवाद की कमर टूट गयी। इस तरह मोदी ने एक तीर से तीन शिकार कर लिए। दूसरा काम मोदी ने देश की सेना को अत्याधुनिक हथियार खरीद कर देने और उन्हें भारत में ही बनाने की नीति पर ज़ोर देकर किया। आज सेना आत्मनिर्भर है और उसकी ज़रूरत का हर सामान भारत में ही बन रहा है।  
तीसरा काम भी कम महत्वपूर्ण नहीं था। अपनी हर नीति बनाने से पहले भारत को सोचना पड़ता था कि उसके इस कदम से तेल आपूर्तिकर्ता देश नाराज़ न हो जाएं। वे समय-असमय दबाव बना कर महंगा तेल भारत को बेचते थे। मोदी ने इसका समाधान निकाला और देश के वैज्ञानिकों को वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्र में लगा दिया। आज स्थिति यह है कि देश सोलर पावर की हब और पवन ऊर्जा में बड़ा स्थान प्राप्त कर चुका है। देश अन्य वैकल्पिक ऊर्जाओं के क्षेत्र में भी कहीं विश्व का मार्गदर्शन कर रहा है तो कहीं कंधे से कंधा मिला कर चल रहा है।   
आईआईटी, बीएचयू (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) भी इसमें महती भूमिका अदा कर रहे हैं। वर्तमान में बीएचयू में सॉलिड स्टेट आपॅनिक्स पर 15वीं कॉन्फ्रेंस चल रही है। इसकी थीम ‘ऊर्जा’ है। कॉन्फ्रेंस के संयोजक बीएचयू के फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर राजेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इसमें कुल 150 से ज्यादा वैज्ञानिकों की हिस्सेदारी है। इस कांफ्रैंस में भाग लेने आये आईआईटी मुम्बई के प्रोफेसर सागर मित्रा ने अपने सम्बोधन में बताया कि भारत में लिथियम सल्फर की ऐसी बैटरी तैयार हो रही है जो एक बार चार्ज हो जाए तो एक बड़ी कार 1500 किलोमीटर का लंबा सफर तय करेगी। आजकल उपलब्ध वाहन बैटरी एक बार की चार्जिंग में अधिकतम 500 किलोमीटर तक ही जा सकती है।  लिथियम सल्फर की बैटरी का आकार और भार भी उपलब्ध बैट्री से 3 गुना कम होगा। स्पीड भी डीज़ल-पेट्रोल कार के समान होगी। 
उन्होंने कहा किए अगर सब कुछ ठीक रहा और इसके लिए संसाधन उपलब्ध रहे तो अगले 2 साल में भारत के पास इस बैटरी की कार होगी। हम लोगों ने लैब स्केल पर इसका टैस्ट कर लिया है। इसमें सफलता मिली है। ग्रेफाइट मेटल ऑक्साइड बैटरी को लिथियम सल्फर बैटरी से रिप्लेस कर दिया जाएगा। इसकी क्षमता भी तीन गुना अधिक होगी और कम जगह घेरेगी। अभी अमरीकी मिलिट्री में भी इस तकनीक पर रिसर्च और ट्रायल चल रहा है। भारत भी तेजी से उसी स्तर पर इस दिशा में काम कर रहा है। प्रो. मित्रा ने यह भी कहा कि आप डीजल-पेट्रोल कार वाला आनंद लिथियम सल्फर बैटरी की कार में भी उठाया जा सकता है, वह भी बिना किसी तरह का प्रदूषण फैलाए। स्पीड के साथ ही यह बैटरी काफी किफायती भी होगी क्योंकि भारत में लिथियम और सल्फर संसाधनों की कोई कमी नहीं है। आजकल की जो बैटरी वाली कार है, वह 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर नहीं चल सकती। उसको गर्म करना पड़ता है, जबकि लिथियम सल्फर बैटरी से 0 डिग्री या माइनस डिग्री तापमान में भी कार चलायी जा सकती है।
इस परियोजना में सहभागिता कर रहे फ्रांस से आए प्रोफेसर रॉबर्ट स्लेड ने बताया किए जल्दी वो समय आएगा कि जब आप अपनी कार को 5 बार चार्ज करके बनारस से लंदन तक पहुंच सकते हैं, मगर बीच में 5 जगह चार्जिंग स्टेशन भी बनाने पड़ेंगे। लॉन्ग रेंज की बैटरी ट्रांसपोर्ट से भी आगे कई काम में आ सकती है। बीएचयू सहित दुनिया के 6 विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस बैटरी पर रिसर्च कर रहे हैं।  प्रो.मित्रा ने अवगत कराया कि अभी लैब में स्मॉल डिवाइस लेवल पर टैस्टिंग चल रही है। प्रोटोटाइप भी बन चुके हैं। ज्यादा से ज्यादा फंडिंग और इंडस्ट्रीज़ की सहभागिता चाहिए। अगर सब कुछ मिल गया तो दो साल में बैटरी बाज़ार में उपलब्ध करा सकते हैं। एक बार यह कार में फिट हो जाये तो फिर डेढ़ हज़ार किलोमीटर के बीच में कार को किसी इलेक्ट्रिक चार्जिंग की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। थर्मल मैनेजमेंट नहीं चाहिए।  इसके अतिरिक्त और भी कई फायदे हैं, जिनको लेकर हम सम्बन्धित संस्थानों से बात कर रहे हैं।
लिथियम के श्रोत की बात करें तो भारत लिथियम के मामले में बोलिविया और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। कश्मीर में अभी 6 मिलियन मीट्रिक टन का नया रिज़र्व खोजा गया है। इसके अतिरिक्त आजकल जितनी भी बैटरियां इस्तेमाल हो रही है, उनसे ही हमें भरपूर लिथियम मिल जाएगा। सल्फर पेट्रोल रिफायनरी का बाई प्रोडक्ट है। इसके साथ ही भारत में सल्फर के अकूत भंडार भी हैं। इस तरह से हमें  लिथियम और सल्फर चीन, अमरीका और जर्मनी से आयात करने ज़रूरत नहीं पड़ेगी और हम कम खर्च में सस्ती बैटरी बना सकते हैं। इससे हम इस बैटरी के बड़े निर्यातक भी हो सकते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में कार और तमाम इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल होता है। इसमें लिथियम महज 3 प्रतिशत ही है। बाकी में कोबाल्ट और निकल की मात्रा है। जबकि लिथियम सल्फर बैटरी में 60 प्रतिशत लिथियम और बाकी सल्फर होगा। इससे बैटरी का वजन और साइज दोनों छोटा हो जाएगा। लिथियम सल्फर नेक्स्ट जनरेशन बैटरी है। इसमें लिथियम एनोड है और सल्फर कैथोड है। अभी जो बैटरी चल रही है उसमें ग्रेफाइट एनोड है और मेटल ऑक्साइड कोबाल्ट, निकल, मैगनीज आदि कैथोड है। इस बैटरी में ग्रेफाइट की जगह  लिथियम होगा और मेटल ऑक्साइड की जगह सल्फर हो जायेगा। 
प्रोफेसर सागर मित्रा ने यह भी बताया कि यह बैटरी ई-वाहनों के साथ-साथ देश के रक्षा क्षेत्र के लिए भी काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इससे संचालित ड्रोन, हल्की मिसाइल, वॉक ड्रोन सुगमता से अपना कार्य कर वापस आ सकेंगे। अमरीकी सेना इन दोनों ड्रोन पर और एयर टैक्सी में भी इसका परीक्षण कर रही है। इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों के सराहनीय प्रयास देश को इस दिशा में अनुकरणीय सफलता दिला सकते हैं।