गई भैंस पानी में 

दुनिया में कुछ लोगों की किस्मत बहुत अच्छी होती है। और वहीं पर कुछ लोगों की किस्मत उन्हें धूल फांकने पर मज़बूर करती है। कुछ लोग लोहे को भी छूते हैं तो सोना हो जाता है और कुछ लोग सोने को छू लें तो लोहा हो जाता है।  अपनी-अपनी किस्मत अपना अपना भाग्य... ऐसे दुखियारे इस  दुनिया में सहानुभूति के पात्र हैं। ऐसा लगता है ...सबकी किस्मत भगवान ने सोने की कलम से नहीं लिखी। कुछ लोगों के लिए उन्होंने नरकट की कलम उठाकर लिख दिया वरना कौन इस धरती पर महा मूर्ख होगा जो अपनी किस्मत में दुख दरिद्रता और दुर्भाग्य लिखवाना चाहे।
अब भगवान तो भगवान है... भगवान पर सवाल कौन उठा सकता है और क्यों उठाना है। ज़रूर उन लोगों के पूर्व जन्म के कर्म कांडों में कुछ घपला और घोटाला रहा होगा। हालांकि इसको सुधारा भी जा सकता था लेकिन अफसोस भुगतान का रास्ता चुना गया है। दुख इस बात का होता है कि लाख प्रयत्न करने के बाद भी हमेशा उनकी भैंस जाकर पानी में बैठ जाती है। और उनके पास मेहनत रूपी लाठी भी है। फिर भी पता नहीं क्यों भैंस हमेशा दगा दे जाती है।
जबकि भैंस को बैठना है तो जाकर कुतुब मीनार पर बैठ सकती है... ताकि सारी दुनिया पर नज़र रख सकती है, संसद में बैठ सकती है। ...अपने देश के अनेक महानुभाव भी वहीं बैठते हैं। और कुछ उनसे जीवन जीने के तरीके सीख कर आ जाए... थोड़ा जीवन जीना आसान हो जाएगा...!  इंडिया गेट पर जाकर बैठ सकती है। और दो चार सेल्फी खींच कर आ सकती है ...और सोशल मीडिया पर लगाकर थोड़ा इतरा सकती है। चांद पर जाकर बैठकर... अपने आप को प्राउड फील कर सकती है।
लेकिन लोगों के चाहने और नहीं चाहने से कुछ नहीं होने वाला। उसे तो जाकर कीचड़ में सराबोर होना है। कई-कई बार सोचना पड़ जाता है ...अब आगे और क्या ‘अब क्या’ और मैंने सुना है ...नहर से भैंस को बाहर निकलने में समय लगता है। भैंस को कौन सा लाली लिपस्टिक लगाना है। इसीलिए अब यह मान लीजिये कि चाहे भैंस के आगे कितनी भी बीन बजाइए ...भैंस खड़ी होकर पगुराएगी ही इसीलिए आप खुद ही मान लीजिए कि आप  कितना भी छान पगहा तुड़ा लें होना वही है जो राम रचि राखा... और भला राम जी किसी का बुरा क्यों चाहेंगे। राम जी तो सबके हैं।
जिस तरह भैंस महारानी को कीचड़ से बाहर निकलने में समय लगता है, उससे तो कभी-कभी शंका आशंका होती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपोजिशन वालों ने इसे चोरी चुपके हरा-हरा चारा खिलाया हो। अपने देश में खाने और खिलाने की परम्परा बहुत समृद्ध है पर भैंस महारानी इस देश की अर्थव्यवस्था चाहे जो कोई भले चलाता हो पर बहुत से लोगों के घर की अर्थव्यवस्था तो इसी भैंस के कारण ही चलती है।
भैंसे के कारण लोगों को सवालों का सामना करना पड़ता है। लोग परवाह नहीं करते। तुम्हारा ख्याल नहीं रखते। तुम्हारे सुख-दुख में सांझन नहीं होते। सब अफवाह की बातें हैं और अफवाह गलत होती है। चाहे तुम्हारा मन कीचड़ में बैठने का करे चाहे पानी में जाने का मन करे। लेकिन ऐसा नहीं करना जैसे पाकिस्तान की भैंस पानी में चली गई है तो निकलने का नाम ही नहीं ले रही। 
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