देखो ! चुनाव आया है, गरीब की झोंपड़ी में भगवान आया है

भगेलूराम के गांव का मौसम और मिजाज बदला-बदला नज़र आ रहा है। चुनावी घोषणा के साथ गांव का मौसम बासंती हो गया है। अबकी फागुन और चुनाव एक साथ है। भगेलूराम आज बहुत खुश हैं जैसे उनके जीवन की सारी मुरादें पूरी हो गयीं हैं। उनकी झोपड़ी के भाग जग गए हैं। उसकी झोपडी में कलयुग के भगवान यानी नेताजी पधारे हैं। करोड़ों की चमचामाती कार और संगिनों के साए में नेताजी के पवित्र पांव झोपडी में पड़े हैं। गाड़ी से उतरते ही नेताजी दौड़ कर भगेलूराम के चरण में पड़ गए। जैसे कोई रंक राजा का पैर पकड़ता है। जबकि बेचारा भगेलूराम थरथर कांप रहा था। उसकी तो मति ही मार गयी। किसी तरह नेताजी को भगेलूराम ने कांपते हुए उठाया।
नेताजी भगेलूराम की झोपड़ी के सामने पड़ी टूटी खाट पर निढाल हो गए। बोले ‘दादा प्यास और भूख लगी है।’ भगेलूराम हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। 
‘सरकार हम गरीब के पास क्या है। बस मटके का पानी, गुड़ की भेली प्याज और रोटी।’ नेताजी अड़ गए और बोलें-‘जो है वही खिला दो और इस भूखे का पेट भर दो।’ 
भगेलूराम को रूखी-सुखी खिलाना ही पड़ा। नेताजी भगेलूराम से बहुत खुश हुए और जाते समय भरत मिलनकर बोले ‘दादा बस! वोट देने का वचन दे दीजिए।’
अब मरता क्या न करता। भगेलूराम ने नेताजी के सर पर हाथ रख वोट देने का वचन दे दिया। 
नेताजी ने भी कहा ‘दादा अबकी जीत जाऊंगा तो तस्वीर और तकदीर दोनों बदल दूँगा।’ नेताजी उस इलाके से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन भगेलूराम की तस्वीर और तगदीर पच्चीस साल बाद भी नहीं बदली। हाँ, यह दीगर बात है की नेताजी की पूरी पीढ़ी बदल गयी। पूरा खानदान मंत्री है।
भगेलूराम सोच रहा था हमारी झोपड़ी के भाग्य अभी तक नहीं बदले। हम जैसे लोग बस, झूठी कसमें, प्यार वफा में हर बार ठगे जाते हैं। जीत के बाद तो नेताजी फिर गांव में दिखाई नहीं देते। पांच साल बाद ही उनकी वापसी होती है। पांच साल बाद ही वह गांव की गलियों, खेत-सिवा की खाक छानते हैं। गरीब की झोपड़ी में खाना भी खाएंगे। होली भी खेलेंगे और गेहूं की कटाई के साथ आर्थियां भी उठाएंगे। गड़े मुर्दे भी उखाड़ेगे। जबकि चरणवंदन और भरत मिलाप तो आम बात है। नेताजी का यह बहुरुपिया पन सिर्फ चुनावों में ही दिखता है। चुनाव जीतने बाद वे गुलर के फूल हो जाते हैं। बाद में नेता कम कालनेमी बन जाते हैं। फिर दिल्ली ही उन्हें रास आती है। जबकि भगेलूराम जैसे लोग झूठी कसमें और चुनावी वायदे में मारे जाते हैं। (सुमन सागर)