एक झटके में नहीं, सही नीति और साफ नीयत से खत्म होगी गरीबी

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने बीती 13 अप्रैल को बस्तर में चुनावी सभा में कहा कि कांग्रेस की सरकार केंद्र में बनी तो हम एक झटके में देश से गरीबी खत्म कर देंगे। राहुल गांधी के बयान देने के अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के पिपरिया शहर में एक चुनावी रैली के दौरान अपनी प्रतिक्रिया दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस के ‘शाही जादूगर’ कहते हैं कि एक झटके में गरीबी मिटा दूंगा। 50 साल पहले उनकी दादी इंदिरा गांधी ने भी गरीबी हटाने का नारा दिया था लेकिन हुआ क्या? अब राहुल गांधी यह बोलकर गरीबों का अपमान कर रहे हैंए उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रहे हैं।
राहुल ने गरीबी हटाने का बयान मोदी सरकार को घेरने के लिए दिया था लेकिन लगता है कि उन्होंने यह बयान देकर खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। भाजपा राहुल गांधी को कांग्रेस के पांच दशक से ज्यादा के शासन की याद दिला रही है। केंद्र और देश के ज्यादातर राज्यों में लम्बे समय तक कांग्रेस पार्टी की सरकारों ने शासन किया है। उस कालावधि में गरीबों, किसानों, श्रमिकों, आदिवासियों, वनवासियों और वंचितों के कल्याण और विकास के लिए तत्कालीन कांग्रेस की सरकार को जो कार्य करना चाहिए था, वह किया नहीं गया जिसका नतीजा यह है कि आज आज़ादी के 75 वर्ष बाद आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी का दंश झेल रहा है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 के चुनाव में ‘गरीबी हटाओ’ के नारे को भुनाया था। चुनाव प्रचार में उन्होंने यह कहते हुए आमजन की हमदर्दी बटोरी, ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’। विरोधियों ने गरीबी हटाओ के जवाब में नारा दिया, ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल’। लेकिन वह काम नहीं आया। पांचवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने चुनाव में दो तिहाई सीटें हासिल की। ‘गरीबी हटाओ’ उन बिरले नारों में से था, जिसने उसे गढ़ने वाले को चुनाव में बड़ी सफलता दिलाई। उसके बाद कांग्रेस लम्बे समय तक सरकार में रही लेकिन उनकी नीति और नीयत ठीक नहीं थी और गरीबी दूर नहीं हुई। कांग्रेस सरकार में भ्रष्टाचार और घोटालों की वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों को जो मिलना चाहिए था, वो कभी मिला नहीं।
1971 के जनगणना के मुताबिक भारत में उस वक्त करीब 54 करोड़ आबादी थी, जिसमें से 57 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे थे। देश में 66 फीसदी लोग अनपढ़ थे। ग्रामीण से ज्यादा शहरी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही थी। लम्बे वक्त तक इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री रहीं, लेकिन गरीबी के स्तर पर कोई सुधार नहीं देखने को मिला। इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और फिर मनमोहन सरकार तक गरीबी हटाओ के नारे के साथ सिर्फ  चुनाव ही जीतती रही है। गरीबों के कल्याण के लिए कांग्रेस सरकारों ने कभी गंभीरता के साथ कोई कार्यक्रम नहीं चलाया। यही वजह है कि कांग्रेस सरकारों के दौरान देश के करोड़ों लोग गरीबी और महंगाई के कुचक्र में फंसे रहे।
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर संभालने के बाद देश के गरीबों के कल्याण के लिए काम करना शुरू कर दिया। सरकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ सीधे गरीबों तक पहुंचाया। उनकी कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं से गरीबों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आया है। इसका प्रमाण नीति आयोग के जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक की रिपोर्ट से मिलता है। नीति आयोग की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले नौ वर्षों में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2013-14 से 2022-23 के बीच देश के 24.82 करोड़ लोगों को गरीबी की परिधि से बाहर निकाला।
नीति आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गरीबी साल 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत रह गई है यानी 17.89 प्रतिशत की कमी आई है। उत्तर प्रदेश में पिछले 9 वर्षों के दौरान 5.94 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं, जो सबसे अधिक है। इसके बाद बिहार में 3.77 करोड़, मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि 2005-06 से 2015-16 की अवधि की तुलना में 2015-16 से 2019-21 में गरीबी में तेज़ गिरावट दर्ज की गई है। साल 2005-15 में गरीबी की वार्षिक गिरावट 7.69 प्रतिशत थी, जो साल 2016-21 में बढ़कर 10.66 प्रतिशत वार्षिक हो गई। इस सम्पूर्ण अध्ययन अवधि के दौरान बहुआयामी गरीबी सूचकांक यानी एमपीआई के सभी 12 संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट बताती है कि देश में गरीबी से लोगों को निजात मिल रही है, ज़ाहिर है यह मोदी सरकार की कल्याणकारी नीतियों का सीधा प्रभाव है। इन योजनाओं में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, उज्जवला योजना, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन-धन खाते जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं शामिल हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि डिजीटल क्रांति ने इन योजनाओं का लाभ सीधे उपेक्षित वर्ग तक पहुंचाया है। 
पिछले दस साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। अब उसे गरीबी और गरीब याद आ रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने देश पर 55 साल शासन किया है, लेकिन उसकी कथनी और करनी में बड़ा अंतर रहा है। इसी वजह से देश के करोड़ों गरीबों को कांग्रेस के शासन अपना हक और हिस्सेदारी नहीं मिली। कांग्रेस आज सत्ता हासिल करने के लिए लम्बे-चौड़े वायदे कर रही है। लेकिन जिन राज्यों में फिलवक्त उसकी सरकारें हैं, वहां चुनावी वायदे पूरे करने में वह नाकाम साबित हो रही है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि गरीबी किसी अभिशाप से कम नहीं है। चुनावी मंच से एक झटके में गरीब खत्म करने का लच्छेदार भाषण देना कोई बड़ी बात नहीं है। गरीबी देश की पुरानी और विकट समस्या है। अगर आज़ादी के बाद लम्बे समय तक शासन करने वाली सरकारों ने इस दिशा में अपनी ज़िम्मेदारी सही तरीके से निभाई होती तो, आज देश की तस्वीर ही कुछ और होती। 
अगर एक झटके में गरीबी खत्म करना संभव होता तो अब तक यहह समस्या कब की खत्म हो गई होती। सच्चाई यह है कि गरीबी जैसी विकट और विशाल समस्या को दूर करने के लिए सही नीति और साफ  नीयत की सबसे ज्यादा जरूरत है। (युवराज)