ग्रीष्म ऋतु में मूंग की काश्त में पानी की बचत कैसे हो ?

 

ग्रीष्म ऋतु की मूंग धान-गेहूं फसली-चक्कर में एक उचित फलीदार फसल है। यह पकने को कम समय लेती है और 60-62 दिनों में तैयार हो जाती है। इसे कम खाद और कम पानी की ज़रूरत होती है। गेहूं की कटाई के बाद बिजाई किए जाने के अतिरिक्त आलू की फसल के बाद भी इसकी सफल काश्त की जा सकती है। इसकी बिजाई के लिए उचित समय चाहे 20 मार्च से शुरू हो जाता है, परन्तु उत्पादक गेहूं की कटाई करने के बाद अब भी इसे लगा रहे हैं। देर से बिजाई में जोखिम यही है कि पकते समय यदि मानसून शुरू हो जाए और बारिश हो जाए तो इसके खराब होने का डर रहता है। 
मटर की फसल के बाद भी इसकी काश्त की जा सकती है। किसानों को अब तुरंत ही इसकी बिजाई कर लेनी चाहिए। अधिक देर नहीं करनी चाहिए। ग्रीष्म ऋतु की मूंग हरी खाद का काम भी करती है। इसे हरी खाद के रूप में इस्तेमाल करने से अगली रोपी जाने वाली फसल बासमती या धान को कम यूरिया डालने की आवश्यकता है। लगभग 25 प्रतिशत यूरिया की बचत हो जाती है। यदि आलू की फसल के बाद इसकी बिजाई की गई हो तो इसे कोई खाद डालने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं। वैसे इसकी खाद की ज़रूरत सिर्फ 11 किलो यूरिया (5 किलो नाइट्रोजन तत्व) तथा 100 किलो सिंगल सुपरफासफेट प्रति एकड़ है। पानी की बचत तथा भूमि का स्वास्थ्य बेहतर बनाने के लिए भी ग्रीष्म ऋतु की मूंग अनुकूल फसल है। पीएयू से सम्मानित प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ कहते हैं कि वह गेहूं काटने के बाद ग्रीष्म ऋतु की मूंग (जिसे सट्ठी भी कहा जाता है) की काश्त बैड्डों पर करते हैं, जिसके बाद इसकी पानी की ज़रूरत बहुत कम हो जाती है, क्योंकि आगामी महीनों में बिजली के कट भी लगेंगे। इसलिए ट्यूबवैलों का पानी भी कम उपलब्ध होगा। बैड्डों पर इसकी काश्त करने से पानी की बहुत बचत हो जाएगी। इसकी पानी की ज़रूरत लगभग 3000 क्यूबिक मीटर तक की है जबकि मक्की की पानी की ज़रूरत 13500 क्यूबिक मीटर तक की है। ग्रीष्म ऋतु की मूंग की काश्त कपास-नरमा पट्टी में नहीं करनी चाहिए। 
भूमि की किस्म तथा मौसम के अनुसार इस फसल को तीन से पांच पानी की आवश्यकता पड़ती है। जब फसल 50-55 दिन की हो जाए तो पानी देना बंद कर देना चाहिए। पहला पानी बिजाई के 25 दिन बाद दे देना चाहिए। यदि सिंचाई और बिजाई पीएयू की सिफारिश के अनुसार की जाए तो उत्पादन अधिक होता है और फलियां एकसार पकती हैं। ग्रीष्म ऋतु की मूंग की फसल की काश्त के अधीन रकबा बढ़ाने का एक मुख्य लाभ यह होगा कि जहां ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी, वहीं किसान अगेता धान पंजाब प्रीज़रवेशन ऑफ सब-स्वाइल वाटर एक्ट, 2009 के तहत निर्धारित तिथि से पहले नहीं लगाएंगे और न ही पौध को अगेती लगाएंगे, जिससे पानी की दोहरी बचत होगी। 
ग्रीष्म ऋतु की मूंग के पौधे सीधे तथा मध्यम ऊंचाई के होते हैं। इसे भरपूर फलियां लगती हैं। एक फली में 10-11 दाने होते हैं। दाने चमकदार हरे तथा मध्यम मोटे होते हैं।  ग्रीष्म ऋतु की मूंग की बिजाई के लिए पीएयू द्वारा एसएमएल-1827, एसएमएल-832 तथा एसएमएल 668 किस्में सिफारिश की गई हैं। एसएमएल-1827 का औसत उत्पादन 5 क्ंिवटल प्रति एकड़ है और किस्म लगभग 62 दिनों में पक जाती है। दूसरी सिफारिश की गई किस्मों का उत्पादन क्रमश: 4.6 क्ंिवटल तथा 4.5 क्ंिवटल प्रति एकड़ है।  एसएमएल-668 के दाने मोटे होते हैं। यह किस्म 60 दिनों में पक जाती है। एसएमएल-668 किस्म के लिए 15 किलो बीज तथा दूसरी किस्मों के लिए 12 किलो बीज प्रति एकड़ की ज़रूरत है। बिजाई से पहले बीज को जीवाणु खाद का टीका लगाने की आवश्यकता है। गेहूं के नाड़ में ग्रीष्म ऋतु की मूंग की बिजाई हैपीसीडर से भी की जा सकती है। मध्यम तथा भारी ज़मीनों पर इसकी बिजाई बैड्ड प्लांटर से 67.5 सैंटीमीटर दूरी पर तैयार किए बैड्डों पर की जा सकती है। दो कतारें प्रति बैड्ड 20 सैंटीमीटर के अंतराल पर होनी चाहिएं। सिंचाई खालों द्वारा ही की जाए ताकि बैड्ड के ऊपर से पानी न गुज़रे। पीएयू के अनुसार ऐसा करने से फसल को उगते समय न सिर्फ बारिश के नुक्सान से ही बचाया जा सकेगा अपितु समतल सिंचाई के मुकाबले लगभग 10 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होगा और 20 से 30 प्रतिशत पानी की बचत होगी। 
नदीनों की रोकथाम के लिए 1 से 2 बार गुडाई ज़रूरी है। पहली गुडाई बिजाई के चार सप्ताह के बाद और दूसरी गुडाई (यदि ज़रूरत पड़े तो) उसके 2 सप्ताह बाद करने की ज़रूरत है। जब फलियां 80 प्रतिशत पक जाएं तो फसल काट लेनी चाहिए। ग्रीष्म ऋतु की मूंग पर थ्रिप, फली छेदक सुंडी, तम्बाकू सुंडी जैसे कीड़ों का हमला होता है और चितकबरा रोग, जड़ के गलने का रोग तथा झुलस रोग भी आते हैं। इन्हें रोकने के लिए किसानों को विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार स्प्रे करने चाहिएं। रोकथाम के लिए फसल के आरम्भ में ही रोगी पौधे निकाल देने चाहिए।