मोबाइल फोन से बिगड़ते बच्चे

ट्रिंग.... ट्रिंग अर्थात् फोन, मोबाइल की घंटी कुछ दशक पूर्व तो अच्छी लगती थी क्योंकि तब इसकी सुविधा सब तक आसानी से नहीं पहुंची थी। अब तो मोबाइल आप सभी के हाथों में देख सकते हैं। काम करने वाली बाई से लेकर सब्जी बेचने वाले तक।
बच्चों में इसका रूझान ज़रूरत से अधिक बढ़ता जा रहा है। इसकी टेक्नॉलोजी इतनी जल्दी बदलती है कि हर माह या दो माह के अंतराल में नए मॉडल बाज़ार में आ जाते हैं और नई जेनरेशन बहुत जल्दी पुराने मॉडल से बोर होकर नया मॉडल खरीदने के लिए उतावली हो जाती है क्योंकि हर बार नया मॉडल कुछ अधिक सुविधा लिए आता है और किशोर मन चंचल होता है कि वे हर लेटेस्ट वस्तु ट्राई करना चाहता है।
छोटे बच्चे तो बड़ों को फोन पर बात करते देख इस ओर आकर्षित हो जाते हैं और कब वे इसके आदी हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। अवसर पाते ही बड़ों का मोबाइल उठाते हैं। उस पर गेम्स खेलना, व्हाट्सएप, विडियो देखना, गाने सुनना उन्हें बहुत अच्छा लगता है। बच्चे इतने आगे तक मोबाइल के साथ जुड़ चुके हैं कि उन्हें वापिस लाना भी असंभव सा महसूस होने लगा है।
जब बच्चे अधिक छोटे होते हैं जैसे 1 वर्ष से 5-7 वर्ष तक तो उनके पहले गुरू तो माता-पिता होते हैं, फिर जब वे बाहर निकलते हैं तो आसपास का वातावरण उन्हें प्रभावित करता है। बच्चों के रोल मॉडल माता-पिता होने के नाते वे उन्हें मोबाइल या फोन पर लंबी बात करते देखते हैं तो वे उनकी नक्ल करते हैं। इसलिए माता-पिता को भी प्रारम्भ से इस बात का ध्यान रखना चाहिए ताकि बच्चे अपने रोल मॉडल से सही सीखें।
जब बच्चे फोन का अधिक प्रयोग करते हैं तो हम उन्हें अब टोकना प्रारम्भ कर देते हैं जो ठीक नहीं है। बचपन तो कच्चे घड़े की तरह होता है। आप यदि प्रारम्भ से उन पर कुछ सख्ती रखेंगे तो वे उसका दुरूपयोग नहीं करेंगे। इसका अर्थ है प्रारम्भ से आप जैसा ढालेंगे, वे ढल जाएंगे। उन्हें प्यार से समझाएं। बच्चों को फोन का सही प्रयोग करना समझाएं ताकि वे इसके गलत प्रयोग से बचे रहें। (उर्वशी)