प्रदेश की त्रासदी

भीषण गर्मी के मौसम में बड़े-छोटे शहरी क्षेत्रों में पानी की भारी कमी खटकने लगी है। इसे लेकर लोग गलियों-बाज़ारों में उतरने शुरू हो गए हैं। ऐसा घटनाक्रम सिर्फ आज का नहीं है, अपितु पिछले लम्बे समय से लगातार चलता आ रहा है। ज्यादातर स्थानों पर संबंधित सरकारों ने इसका एकमात्र हल ढूंढ लिया था कि धरती का सीना चीर कर भूमिगत पानी को लगातार ट्यूबवैलों द्वारा निकाला जाता रहे, परन्तु भूमिगत इस पानी की भी एक सीमा है। इस कारण लगातार किए जा रहे इसके दुरुपयोग के कारण यह पानी पाताल में पहुंचना शुरू हो गया।
ट्यूबवैलों की मोटरें हांफ गई प्रतीत होती हैं। चाहे बोर को गहरे से गहरा किया जा रहा है परन्तु चिन्ताजनक बात यह है कि ऐसा प्रचलन और कितने समय तक चल सकता है? पिछले कई दशकों से भूमिगत पानी के कम हो रहे स्तर संबंधी महसूस तो किया जाता रहा है परन्तु इसके कोई विकल्प नहीं ढूंढे जा सके तथा न ही पानी के लगातार हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए कोई प्रभावशाली कदम ही उठाए गए हैं। पंजाब के महानगर जालन्धर में सतलुज दरिया से पानी लाकर इस्तेमाल करने की योजना बनाई गई थी परन्तु यह योजना भी अभी तक आधी-अधूरी ही पड़ी है। आगामी समय में बड़े शहरों में पानी की पूर्ति कैसे की जाएगी, इस बेहद महत्त्वपूर्ण मामले पर मौजूदा सरकारों को अभी से ही गम्भीर योजनाबंदी करने की ज़रूरत है। पिछले दिनों एक सामाजिक संगठन मिसल सतलुज ने पंजाब के पानी संबंधी गहरी चिन्ता का प्रकटावा करते हुए प्रदेश सरकार को इस संबंध में श्वेत-पत्र जारी करने की अपील की है। इसके पदाधिकारियों ने यह भी कहा कि पानी को बचाने के लिए सरकार को एक अभियान चलाने की ज़रूरत है। यदि शीघ्र इस समस्या को गम्भीरता से न लिया गया तो आगामी समय में हालात और भी बदतर हो जाएंगे। इस संगठन ने यह भी कहा कि आज पानी का अधिक इस्तेमाल उद्योगों में भी हो रहा है। इसके साथ ही तेज़ी से हो रहे शहरीकरण ने भी इस संकट को और बढ़ाया है। जहां तक भूमिगत पानी के कम हो रहे स्तर का संबंध है, इन उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त कृषि के लिए भूमिगत पानी के हो रहे बेहद इस्तेमाल ने भी इस संकट को बढ़ाने में अपना योगदान डाला है। इसके लिए हम समय के राजनीतिज्ञों को भी आरोपी मानते हैं, जिन्होंने इस पक्ष से अपनी दयालुता दिखाते हुए पंजाब को रेगिस्तान बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
वर्ष 1997 में प्रदेश के हो रहे चुनावों से पहले वरिष्ठ अकाली नेता स. प्रकाश सिंह बादल ने चुनाव जीतने के लिए कृषि के लिए बिजली तथा पानी मुफ्त करने की घोषणा की थी। उसके बाद 27 वर्षों में राजनीतिज्ञों की बेहद अवसरवादी एवं स्तरीय सोच के कारण भूमिगत पानी का इस्तेमाल किया जाता रहा। आज हालत यह है कि प्रदेश में लगे 14 लाख ट्यूबवैल जहां लगातार धरती के नीचे से पानी निकाल रहे हैं, वहीं सरकारें नींद में हैं तथा लोग भी इससे पूरी तरह लापरवाह हुये दिखाई दे रहे हैं। हालात ये हैं कि आज पंजाब के 143 ब्लॉकों में 114 ब्लॉकों का भूमिगत पानी बेहद गहरा हो गया है तथा शेष के ब्लॉक मूर्छित होने से पहले सिसकते दिखाई दे रहे हैं। सरकारें प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में हो रहे पानी के दुरुपयोग को रोकने में पूरी तरह विफल हुई हैं। इससे भी बड़ी चिन्ताजनक बात यह है कि निकट भविष्य  में और भी गम्भीर रूप धारण करने वाली इस समस्या के प्रति न तो किसी भी पक्ष द्वारा कोई चिन्ता प्रकट की जा रही है तथा न ही इस संबंध में कोई गम्भीर योजनाबंदी की जा रही है। आज के पंजाब की इस त्रासदी का भयावह रूप अब पूरी तरह उभर कर सामने आने लगा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द