कहानी - सुनन्दा

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)


चाय नाश्ते के बाद समीर ने बलदेव को फोन करके मन्दिर में ही बुला लिया था। कमरे के बाहर ही बरामदे में धूप में कुर्सियाँ निकालकर वे अभी बैठे ही थे कि बलदेव आ गया और थोड़ी नाराज़गी दिखाते हुए बोला, ‘तुम्हारे लिए मेरे घर में जगह नहीं थी क्या जो तुमने मन्दिर में डेरा जमाया है?’
‘नहीं यार! तुझसे एक विशेष मामले पर बात करनी थी और घर में तो आने-जाने वाले लगे ही रहते हैं। बात बाहर जा सकती है।’
‘क्या हुआ... कुशल तो है न?’ बलदेव चौकन्ना हो गया तो समीर ने सुनन्दा की समस्या बताते हुए कहा, ‘यह तो साफ है कि अब इनका घर लौटना ‘आ बैल मुझे मार’ कहना होगा। फिर भी इनकी सुरक्षा कैसे और कहां हो सकती है इसके लिए कानून क्या कहता है, इस पर विचार करना है।’
‘हूँ...! समस्या तो गम्भीर है और कानून तो यह कहता है कि पुलिस में रिर्पोट करके इन्हें अपने लिए सुरक्षा की मांग करने के साथ-साथ गिरीश को उत्तराधिकार से वंचित करने की मांग भी करनी चाहिए पर यहां सबसे पहली जो दिक्कत आएगी, वह गवाही की आएगी। क्योंकि कोर्ट तो गवाही मांगता है और आपके पास गवाही कोई होगी नहीं। क्यों?’ बलदेव ने सुनन्दा की तरफ देखा।
‘वैसे तो यह सब मैंने खुद ही अपने कानों से सुना है, पर अगर गवाही हो भी तो मैं इन कोर्ट-कचहरी के चक्करों से दूर रहना चाहती हूँ। दूसरी बात यह भी है कि मैं अब उन लोगों की शक्लें भी नहीं देखना चाहती और केस करने के बाद मुझे बार-बार उनका सामना करना पड़ेगा, जो मैं हरगिज नहीं चाहती। इसके अलावा कोई रास्ता बताइए।’ सुनन्दा का दो टूक जवाब सुनकर सभी सोच में पड़ गए।
‘सलोगड़ा इसके रहने का इंतजाम तो हो सकता है पर हमारी दोस्ती इसके सभी रिश्तेदारों को पता है, इसलिए....’ कान्ता ने बात अधूरी छोड़ दी।
‘आप ठीक कह रही हैं...’ बलदेव ने सोचते हुए कहा, ‘आय का साधन क्या हो सकता है इनका?’
‘एक एफडी है, उससे कुछ काम शुरू किया जा सकता है। मकान किराए पर ले लूँगी पर रहना कहां है, जहां वे लोग मेरा पीछा न करें यह सोचना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि सबसे बड़ी समस्या सेब का बाग और वे दो ट्रक हैं जो मेरे नाम पर हैं। हैरानी इस बात की है कि इन लोगों के दिमाग में यह खुऱाफात आई ही क्यों जबकि कोई हिस्सेदारी भी नहीं है जिस के कारण उन्हें मेरी हत्या की योजना बनानी पड़ी। खैर, जो भी हो यह मैं उनके नाम नहीं करूंगी। खाते रहें और खुश रहें शायद पिछले जन्म का कोई कर्ज है। बस मैं यह रिश्ता हमेशा के लिए तोड़ना चाहती हूँ।’
‘थोड़ा समय दो समीर! कोई रास्ता निकालता हूँ।’ और बलदेव वकील उठ खड़ा हुआ।
‘ठीक है, मैं चार दिन की छुट्टी लेकर आया हूँ। अभी हम चिंतपुर्णी और चामुंडा माता के दर्शन करने के लिए जाएंगे। तू चलता है तो चल।’
‘नहीं समीर, मेरे केस लगे हैं। तुम लोग रुकोगे तो यहीं न?’
‘हां! अभी हम लोग मां पीताम्बरी के दर्शन करने जाएंगे। कल चिंतपुर्णी और फिर चामुंडा। हम सम्पर्क में तो हैं ही।’
‘ठीक है, तो अभी मैं चलता हूँ।’ 
कल उन्हें वापस लौटना था। आज वे सब माता चामुंडा के दर्शन करके लौटे थे कि गिरीश का फोन फिर आ गया,
‘हां गिरीश बोलो।’ समीर ने कहा तो सब के कान खड़े हो गए। समीर ने माइक ऑन कर दिया। गिरीश कह रहा था, ‘मामी तो कह रही थी कि वे सलोगड़ा जाने की बात कहके घर से निकली थीं और आप कह रहे हैं कि वे नहीं आईं। पता करिए न क्या हुआ? वे ठीक तो हैं न?’
‘हो सकता है कि तुम्हारी मां सलोगड़ा आई हों, पर हम तो देवियों की यात्रा पर हैं। घर पर ताला देखकर लौट गई होंगी, फोन करके पूछ लो न।’ समीर ने जवाब दिया।
‘पता नहीं क्या हुआ, उनके फोन का स्विच ऑफ जा रहा है, कई बार फोन करके देखा है। लगता है अब उनके गुम होने की रिपोर्ट करनी पड़ेगी।’
‘मैं क्या कहूँ इस बारे में, मुझे भी सूचना देना। सचमुच चिंता होने लगी है अब तो।’ उधर से फोन कट गया तो तीनों जोर से हंस पड़े। दरअसल सुनन्दा ने पूनम की गाड़ी में बैठते ही फोन का स्विच ऑफ कर दिया था।
‘अरे भई क्या हुआ, हमें भी बताइए तो हम भी हंस लेते हैं।’ बलदेव ने भीतर आते हुए कहा, तो समीर बोला, ‘मान गए सुनन्दा तुम्हारे बेटे को। कितना बड़ा शातिर है?’ फिर उसने बलदेव को सारी बात बताते हुए पूछा, ‘हां तो आपने क्या सोचा है वकील साहब?’
‘आप कम्प्यूटर चला लेती हैं क्या?’ बलदेव ने समीर को जवाब देने के बजाय सुनन्दा से पूछा, तो सुनन्दा के हां में सिर हिलाने पर वह खुश होता हुआ बोला, ‘तब बन गया काम। इसी मन्दिर में एक कम्प्यूटर ऑप्रेटर की ज़रूरत है। कमरा आपको मन्दिर में मिल जाएगा और भोजन भी, बस और कुछ वे नहीं देंगे। क्या आप यहां रहना चाहेंगी? मैंने मुख्य पुजारी जी से बात कर ली है, वे अभी आते ही होंगे। यहां परिसर में मन्दिर के कुछ और कर्मचारी भी रहते हैं। सुरक्षित वातावरण है, फिर भी यदि आपको सबके सामने अपना सच नहीं रखना तो कोई कहानी बनाकर उसी पर दृड़ रहना होगा।’
‘मुझे स्वीकार है।’ सुनन्दा ने कहा।
‘तुम लोगों का कार्यक्रम क्या है?’
‘हमें तो कल वापस लौटना है, पर यह बढ़िया काम हो गया। अब पहले सुनन्दा का नामकरण करो और कोई कहानी सोचो।’
‘सोच ली।’ सुनन्दा बोली, ‘अच्छा-सा नाम देना, फिर बताती हूँ।’
‘कोई आवश्यकता नहीं है, सुनन्दा मेरी बेटी का नाम है और वह यहां रह सकती है।’ कहते हुए बड़े पुजारी जी ने भीतर प्रवेश किया। सब लोग उनके सम्मान में उठ खड़े हुए। बलदेव वकील ने उनको सारी कहानी बताकर ही बात की थी सुनन्दा के लिए, इसीलिए वे उन लोगों से मिलने चले आए थे। 
 

 (क्रमश:)