हाथरस भगदड़, धर्म गुरु और प्रशासक
हाथरस वाले सत्संग की भगदड़ में मारे गए लगभग सवा सौ व्यक्तियों का दुख किसी भी समझदार व्यक्ति के लिए असहनीय है। इसमें नन्हे-मुन्ने बालक ही नहीं, ऐसे युवा तथा युवतियां भी थे, जिन्होंने इस अद्वितीय जीवन का उम्र भर आनंद लेना था। इस कृत्य के दोषियों को कड़ी सज़ा मिलने की प्रत्येक दानिशमंद मांग कर रहा है, परन्तु उन भोले-भाले लोगों का क्या करें जो अभी भी भोले बाबा के पाखंड का गुणगान कर रहे हैं और उसकी चरण-धूल को करामाती बता रहे हैं। उनमें वे भी हैं जिन्हें अपने जवान बेटे-बेटियों के चले जाने को कोई दुख नहीं। हो सकता है चला गया जीव माता-पिता को परेशान करता हो। कुछ भी हो ऐसे अवसर पर उसके चले जाने को सहज कहना अत्यंत दुखद है। इसलिए कि ऐसा बयान भोले बाबा को ही नहीं, उन राजनीतिज्ञों को भी बरी कर देता है, जिनके लिए इन पाखंडियों के श्रद्धालू वोट बैंक हैं। राजनीतिज्ञों के इस रुझान की उम्मीद लेकर प्रशासक भी मुंह फेर लेते हैं। इसका मायावती तथा अखिलेश यादव ने ही नहीं, अयोध्या में बने राम मंदिर के मुख्य पुजारी ने भी गम्भीर नोटिस लिया है। उनकी दाद देना बनता है।
मोटर कारों के नये नम्बरों का भ्रम जाल
आजकल चंडीगढ़ में हो रही मोटर कारों के नम्बरों की निलामी ने मुझे अपनी पहली कार का नम्बर याद करवा दिया है। यह कार मैंने दिल्ली से चंडीगढ़ आकर खरीदी थी। पंजाबी ट्रिब्यून का सम्पादक होने के कारण मुझे अपनी मज़र्ी का नम्बर मिल सकता था। मैंने दो अंकों वाला कोई भी नम्बर मांगा, यह जानते हुए कि एक अंक वाले नम्बर हड़पने वाले तो पहले ही बाज़ी मार चुके होंगे। नम्बर देने-दिलाने वाला सोच में पड़ गया। सिर्फ एक ही नम्बर बचा था जिसे कोई नहीं ले रहा था। वह था अशुभ 13। मेरे चेहरे पर बेपरवाही देख कर उसने चंडीगढ़ के निर्माता ला कार्बूज़े का उदाहरण दिया जिसकी इस नये शहर की योजनाबंदी करते समय इस नम्बर का कोई भी सैक्टर नहीं बनाने की योजना थी।
मैंने उसका धन्यवाद करते हुए कहा कि मुझे यही नम्बर चाहिए। नई कार मारूती 800 थी जिसके लिए मैंने यह अशुभ नम्बर मांगा और सहज ही मिल गया। यह नम्बर पीएवी 13 था जिसकी ‘पी’ को मैं पंजाब कहता, ‘ए’ को अकाल तख्त तथा ‘वी’ को विक्टरी, अर्थात फतेह। यह कार मुझ से मेरे भांजे अमरप्रीत मंटू लाली ने ले ली, अशुभ नम्बर सहित उस कार के भांजे के पास चले जाने तक मेरा सम्पादकीय टूट चुका था, परन्तु मैं अपनी ज़िद को पूरी करते हुए उसके बाद वाली कारों के नम्बर भी वे लेता रहा जिनकी जड़ों में 13 होता था। मेरी वर्तमान कार का माडल टोएटा है, परन्तु नम्बर CH01CH0643, अर्थात 6+4+3=13 (अशुभ)।
कुछ दिन पहले मेरी दुबई में इमारतसाज़ी का काम करने वाले करोड़पति ठेकेदार सुरिन्दर पाल सिंह ओबराय से मुलाकात हुई तो उसने और भी सिरे वाली बात बताई। वह पंजाब तथ अरब देशों में कई कम्पनियों का मालिक है जिनके कारिंदों को मोटर कारें दी हुई हैं। कुल कारें 40 से अधिक हैं, परन्तु सभी के नम्बर 85 हैं, 8+5=13। उसने बताया कि उसका जन्म 13 अप्रैल, 1956 का है। इसलिए उसे इस नम्बर से मोह है। उसकी निजी इस्तेमाल वाली कार का नम्बर तो है ही मेरी पहली कार वाला। इतनी कारों के मालिक बैसाखी के दिन जन्मे ओबराय के पास माया का कोई अंत नहीं। वह अरब देशों की कमाई से पंजाब में समाज सेवा का कार्य भी करता है। सरबत का भला चैरिटेबल ट्रस्ट तथा आनंदपुर साहिब में एडवांस इंस्टीच्यूट आफ सोशल साइंसिस स्थापित करके तथा अपनी उपलब्धियों को दाता की कृपा कह कर। यदि मेरे जैसे नास्तिक को उसके दाता की पक्षपूर्ण करना पड़ जाए तो कहूंगा कि दाता भी उन लोगों को गुणवान बनाता है, जिनमें कोई कण हो।
पैसे तो अडानी, अम्बानी के पास भी कम नहीं, परन्तु उसके जैसे कम लोग होते हैं, जो अपनी कमाई में से करोड़ों रुपये ब्लड मनी देकर अरबी अदालतों द्वारा फांसी के दोषी घोषित किए गए भारतीयों की सज़ा माफ करवाते हों। आज तक उसके द्वारा छुड़वाए गए केसों की संख्या 142 हो चुकी है। उसके इस मार्ग पर चलने वाली कहानी कारों के नम्बरों से अनोखी है।
एक पड़ाव पर उसे पता चला कि अरबी अदालत ने 17 दोषियों को फांसी की सज़ा सुना दी है। जब उसे यह पता चला कि उनमें से सिर्फ तीन ही कातिल थे, तो वह सभी को जेल में जाकर मिला। वह जानता था कि वह सिर्फ 14 दोषियों को नहीं छुवड़ा सकता था। उसने सभी को छुड़वाने के लिए 8 करोड़ 50 लाख दिये और छुड़वा लिया। 142 केसों के लिए कितनी ब्लड मनी दी होगी, सोच कर हैरान हुए बिना नहीं रहा जा सकता।
यही कारण है कि अब उसका शुमार दुनिया के उन चुनिंदा पुरुषों में होता है, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी फाऊंडेशन, पैरिस द्वारा एम्बैसडर आफ पीस (शांति के सफीर) का सम्मान मिल चुका है। ओबराय को उस कतार में लगे बहुत देर नहीं हुई। 10 फरवरी, 2024 की बात है।
अंतिम बात यह कि हमें भी उसके दाता के साथ मित्रता करनी चाहिए। अब मिला तो पूछेंगे कि उसके पास कितनी कारें बची हैं।
साहित्यिक वंचन
गत पांच माह में पंजाबी साहित्य तथा संस्कृति के विकास को समर्पित पांच सपूत सुखजीत, कर्णजीत सिंह, जगीर सिंह जगतार, मोहनजीत तथा सुरजीत पातर सदा के लिए अलविदा कह गए हैं। मेरी उम्र ने मुझे इन सभी के परिवारों तक पहुंच करने की आज्ञा नहीं दी। इनके बिछोड़े से पंजाबी भाषा एवं साहित्य को भी घाटा पड़ा है और इन पंक्ंितयों के लेखक की मित्रता का दायरा भी कम हुआ है, जिसका उसे बहुत दुख है।
शिरोमणि अकाली दल का वर्तमान संकट
1920 के अंतिम दिनों में गुरुद्वारा सुधार के संगठनों द्वारा स्थापित किया शिरोमणि अकाली दल अपनी शानदार उपलब्धियों के बावजूद 2024 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ एक क्षेत्र में सफल हुआ है और 10 क्षेत्रों में इसके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई है। किसी समय जैतो के मोर्चे में जोश के साथ भाग लेने वाला तथा इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के विरोध में 43,472 गिरफ्तारियां दिलाने वाले इस दल के कर्ता-धर्ता बहु-मंज़िला इमारतों की मालिकी तक सीमित होकर रह गए हैं।
यदि उसके मोर्चों ने अंग्रेज़ सरकार के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाया था तो आपातकाल के खिलाफ भी अग्रणी भूमिका निभाई थी।
अकाली दल में थोड़ी बहुत फूट पहले भी पड़ती रही है जो नेताओं की आपसी लड़ाई तक सीमित होती थी। मौजूदा संकट इसकी लोगों से बढ़ रही दूरी का परिचायक है जिसके बहाल होने की कोई आशा नहीं दिखाई दे रही। आम जनता की नज़रें श्री अकाल तख्त साहिब पर लगी हुई हैं। परिणाम समय के हाथ में है। देखें क्या होता है।