यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शामिल चराईदेव मोइदम

नई दिल्ली में 26 जुलाई, 2024 को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी के 46वें सत्र की बैठक चल रही थी और संयोग से उस समय मैं ऊपरी असम के चराईदेव में था। मैंने ‘संयोग’ इसलिए कहा क्योंकि उस दिन जैसे ही चराईदेव के मोइदम को सांस्कृतिक श्रेणी के तहत यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की सूची में शामिल करने की घोषणा की गई तो मुझे चराईदेव विजयी उत्सवी वातावरण को देखने का मौका मिल गया। यह पहला अवसर है जब भारत के उत्तर पूर्व में किसी भी साइट को यह मान्यता प्रदान की गई है। भारत ने सांस्कृतिक श्रेणी में केवल चराईदेव मोइदम का ही नामांकन किया था, हालांकि ऊपरी असम के अन्य हिस्सों में भी रईसों व अन्य प्रमुख व्यक्तियों के मोइदम हैं। शाही परिवार के मृतकों को टीले में दफन किया जाता था, उसे ही मोइदम कहते हैं। 
चराईदेव के मोइदम शानदार अहोम संस्कृति, जिसमें पूर्वजों का अत्यधिक सम्मान किया जाता है, को परिभाषित करते हैं। इसलिए यह मान्यता भारत के लिए खुशी व गर्व की बात है। चराईदेव अहोम रियासत की पहली राजधानी थी, जिसे इस राजवंश के संस्थापक चाओलिंग सिउ-का-फा ने स्थापित किया था। अहोम मूलत: ताई समुदाय से संबंधित थे और उस समय की ब्रह्मपुत्र घाटी के लोगों से सांस्कृतिक दृष्टि से भिन्न थे। वह अपने मृतकों को टीलानुमा ‘पिरामिड’ में दफनाते थे। सिउ-का-फा को नई राजधानी चराईदेव में दफनाया गया था, जिसके बाद से अहोम राजाओं व रानियों के लिए चराईदेव में दफनाया जाना परम्परा बन गई। हालांकि बाद में अहोम राजाओं ने अपनी राजधानियां अनेक जगहों पर शिफ्ट कीं, लेकिन राजा व रानी को चराईदेव में ही दफनाया जाता था, जबकि महल के अन्य प्रमुख कर्मचारियों के ऊपरी असम में अन्य जगहों पर भी मोइदम हैं।
चराईदेव के कब्रिस्तान में 90 मोइदम हैं। इसे ही मान्यता दी गई है। बाद में जब अहोम पर हिन्दू धर्म का प्रभाव पड़ने लगा तो वह अपने मृतकों को दफनाने की बजाय जलाने लगे। बाहर से मोइदम मिट्टी के गुम्बद जैसे लगते हैं जिन पर मखमली हरी घास जमी हुई है। यह गुम्बद या टीला एक वॉल्ट को कवर करता है, जिसमें ताई अहोम रीति रिवाजों के अनुसार राजा या रानी को दफन किया जाता था और वह भी खज़ाने, फूड, घोड़े, हाथियों व सेवकों के साथ। चराईदेव के मोइदम गहरी आध्यात्मिक आस्था के प्रतीक हैं जो एक दौर की सभ्यता व आर्किटेक्चरल क्षमता को परिभाषित करते हैं। पूर्वी असम की पटकाई पर्वतश्रृंखला की जड़ में बने यह मोइदम ताई-अहोम समुदाय के लिए पवित्र हैं और उनकी टीला दफन व्यवस्था को प्रतिविम्बित करते हैं। मोइदम का शाब्दिक अर्थ ‘आत्मा के लिए गृह’ है और ताई अहोम ने इनका निर्माण 600 वर्ष तक यानी 13वीं से 19वीं शताब्दी तक किया और वह भी प्राकृतिक तत्वों का इस्तेमाल करते हुए जैसे पहाड़, वन व जल। इस तरह से पवित्र भूगोल का निर्माण हुआ। 
मैं जब चराईदेव में एक मोइदम को करीब से देख रहा था, तो तभी इनके यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल होने की सूचना आयी। पूरा चराईदेव खुशी से झूम उठा। लोग परम्परागत अहोम वेशभूषा में अपने घरों से निकले और सड़कों पर जश्न मनाते हुए नाचने व गाने लगे। इसके बाद उत्साही भीड़ ने मोइदम के दर्शन हेतु लम्बी कतार बना ली। मुख्यद्वार के पास जमकर आतिशबाजी की गई। इससे मालूम हुआ कि चराईदेव के लोगों के लिए मोइदम का कितना महत्व है। इसी भीड़ में शामिल एक स्थानीय व्यक्ति ने मुझे बताया कि चराईदेव (चमकता शहर) का पुराना नाम चे-ताम-दोई-फी था, जिसका अर्थ है ‘पवित्र पहाड़ी का शहर’। चराईदेव शब्द ताई-अहोम शब्द चे-राइ-दोई या दोई-चे-राइ जिसका अर्थ है ‘पहाड़ियों पर चमकता शहर’। चे-राइ-दोई शब्द ही असमी में चराईदेव हो गया। वर्ष 1253 में सिउ-का-़फा के आगमन से पहले यह जगह स्थानीय कबीलों जैसे मोरन, बोरही आदि के लिए पूजा करने की जगह थी। 
दफनाने की जगह को अहोम वंश में फ्रांग-माई-डैम कहते हैं। फ्रांग-माई का अर्थ है दफनाना और डैम का संबंध मृत व्यक्ति की आत्मा से होता है। इसलिए मोइदम को ‘आत्मा का गृह’ भी कहते हैं। मोइदम के मुख्य तौर पर तीन हिस्से होते हैं। पहला, एक कमरा या वॉल्ट जिसमें शरीर को रखा जाता है। दूसरा, कमरे को ढकने वाला एक अर्धगोलाकार टीला (गा-मोइदम)। तीसरा, टीले पर बनी ईंट की एक संरचना, जिसे चाव चाली या डोल कहा जाता है। यह छोटा-सा मंदिर जैसा मंडप है, जहां वार्षिक भेंट चढ़ाई जाती थी। मोइदम नंबर 2 की 2000-02 में खुदाई के दौरान अनेक कलाकृतियां मिली थीं, जिनमें हाथी दांत व लकड़ी से बनी सजावटी चीज़ें भी थीं। एक कलाकृति में पौराणिक ड्रैगन को दर्शाया गया है, जो अहोम शाही घराने का प्रतीक चिन्ह था। मृत राजा को ‘बाद के जीवन’ के लिए आवश्यक वस्तुओं के साथ दफनाया जाता था, जिनमें नौकरों के साथ उनकी पत्नियां भी होती थीं। मोइदम के निर्माण व रखरखाव के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किये जाते थे और सुरक्षा के लिए गार्ड्स तैनात किये जाते थे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर