गुलाम कश्मीर के भारत में विलय को लेकर प्रयास जारी

पाक अधिकृत कश्मीर के संदर्भ में ‘सब्र का फल मीठा होता है’ कहावत भारत का चरितार्थ होती दिख रही है। इस संदर्भ में पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में बढ़ते पाकिस्तान सरकार के खिलाफ आतंकी हमले और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का कश्मीर के रामबन में आयोजित चुनावी सभा में दिया बयान महत्वपूर्ण हैं। सिंह ने कहा ‘पाकिस्तान सरकार गुलाम जम्मू-कश्मीर के लोगों को विदेशी मानती है, जबकि भारत उन्हें अपना मानता है। ये लोग पाक के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे हैं। पाक के दमन एवं शोषण से बचने के लिए कश्मीर के लोग भारत के साथ आ जाएं। इस समस्या का यही हल है।’ सिंह का कहना ठीक है, क्योंकि पीओके के लोगों पर ढाए जा रहे ज़ुल्मों के कारण यही लोग नारे लगाने लगे हैं कि हमको भारत में विलय कर दो। इन हालातों के देखते यहां कुछ भी आश्चर्यजनक घट सकता है। पीओके पर अवैधानिक कब्ज़ा कर लेने से यह क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में नहीं हो जाता। वैसे भी भारतीय संसद में पीओके को लेकर सर्वसम्मति से भारत का हिस्सा होने के तीन प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। सिंह का यह बयान दर्शाता है कि आंतरिक स्तर पर भारत सरकार पीओके के विलय पर रणनीतिक उपाय में लगी हुई है। 
दूसरी तरफ जिस आतंकवाद का जनक पाकिस्तान रहा है, वही आतंकवाद उसके लिए पीओके में चुनौती बनकर सामने आ रहा है। पाक में आतंकी हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। बलूचिस्तान प्रांत के तुरबाद नगर में नौसैनिक अड्डे पर आतंकवादियों ने गोली बरसाते हुए हमला किया। इसके बाद खैबर पख्तूनख्वा इलाके में चीनी नागरिकों के एक काफिले पर हमला बोल दिया। इसमें पांच चीनी इंजीनियरों की मौत हो गई थी। ये इंजीनियर दासू हाइड्रो प्रोजेक्ट के निर्माण में लगे थे। इन हमलों की जुम्मेबारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की मजीद ब्रिगेड ने ली। इस्लामाबाद से 200 किमी दूर स्थित दासू हाइड्रो प्रोजेक्ट का निर्माण चीनी कम्पनी कर रही है। 2021 में भी इस परियोजना पर काम कर रहे नौ चीनी इंजीनियरों सहित 13 लोगों को बलूच हमलावरों ने मार गिराया था। ग्वादर बंदरगाह पर भी आतंकी हमला हो चुका है। इस हमले की ज़िम्मेदारी भी बलूचों ने ली थी। इन हमलों के चलते पाक की शाहबाज सरकार मुसीबतों से घिर गई है। दरअसल बलूचिस्तान पांत के नागरिक मानते हैं कि पाक सरकार उनके प्रांत के हितों की लम्बे समय से अनदेखी कर रही है। यहां के लोग इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप का भी विरोध कर रहे है। दासू हाइड्रो प्रेजेक्ट और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण के अंतर्गत कई परियोजनाएं पीओके में निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं का विरोध लगातार हो रहा है। लेकिन पाक सरकार धन के लालच में चीन के सुरसा-मुख में फंस चुकी है। देश में चल रही आर्थिक बदहाली के कारण भी सरकार चीन का दामन नहीं छोड़ पा रही है। चीन से उसकी मित्रता का कारण धन का लालच तो है ही, भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते भी हैं। पाक की तरह चीन से भी भारत का सीमा पर निरन्तर तनाव बना हुआ है। अब पीओके में आतंकी शक्तियां इतनी मजबूत हो गईं हैं कि पाक का ईरान और अफगानिस्तान से भी मधुर संबंध बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।
पीओके की परिधि में आने वाले गिलगिट, बाल्टिस्तान वास्तव में भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के हिस्सा हैं। बावजूद 4 नवम्बर, 1947 से पाकिस्तान के अवैध कब्जे में हैं, लेकिन यहां के नागरिकों ने इस बलात कब्ज़े को कभी नहीं स्वीकारा। यहां तभी से राजनीतिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक आवाज़ें उठ रही हैं और पाक सरकार इन लोगों पर दमन और अत्याचार का सिलसिला जारी रखे हुए है। साफ  है, पाक की आज़ादी के साथ गिलगिट-बाल्टिस्तान का मुद्दा जुड़ा हुआ है। पाक की कुल भूमि का यह 40 फीसदी हिस्सा है, लेकिन इसका विकास नहीं हुआ है। करीब 1 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूच हैं, इसलिए इसे गिलगिट-बलूचिस्ताल भी कहा जाता है। पाक और बलूचिस्तान के बीच संघर्श 1945, 1958, 1962-63, 1973-77 में होता रहा है। 77 में पाक द्वारा दमन के बाद करीब 2 दशक तक यहां शांति रही, लेकिन 1999 में परवेज़ मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अड्डे खोल दिए। इसे बलूचों ने अपने क्षेत्र पर कब्ज़े की कोशिश माना और फिर से संघर्ष तेज़ हो गया। इसके बाद यहां कई अलगाववादी आंदोलन अस्तित्व में आए, इनमें प्रमुख बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी है।
निर्वाचन की प्रक्रिया से गुजरने के बावजूद भी यहां की विधानसभा को अपने बूते कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। सारे फैसले एक परिषद लेती है, जिसके अध्यक्ष पाकिस्तान के पदेन प्रधानमंत्री होते हैं। लिहाजा चुनाव के बावजूद यहां विद्रोह की आग सुलगती रहती है। यह आग अस्तोर, दियामिर और हुनजा समेत उन सब इलाकों में सुलगी रहती है, जो शिया बहुल हैं। सुन्नी बहुल पाकिस्तान में शिया और अहमदिया मुस्लिमों समेत सभी धार्मिक अल्पसंख्यक प्रताड़ित किए जा रहे हैं।
 

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