अच्छाई की जीत

एक गांव में प्यारा सा लड़का और लड़की रहते थे। लड़के का नाम रोहन और लड़की का नाम सिया था। दोनों भाई-बहन हर साल आने वाले दशहरा पर्व का बड़ी उत्सुकता से इंतजार करते थे। उनके गांव में दशहरा बहुत धूमधाम से मनाया जाता था। इस दिन रावण का विशाल पुतला जलाया जाता और गांव के सभी लोग खुशी से झूमते।
रोहन और सिया को अपनी दादी से कहानियां सुनने का बहुत शौक था। एक दिन दशहरा से पहले, जब शाम का समय था और आसमान में हल्की सी ठंडक थी, दोनों बच्चे अपनी दादी के पास बैठे। दादी ने उन्हें रावण और भगवान राम की कहानी सुनानी शुरू की। उन्होंने कहा, ‘बहुत समय पहले की बात है, रावण नाम का एक राजा था जो लंका का शासक था। वह बहुत ही बलशाली और विद्वान था, लेकिन उसके अंदर अहंकार और बुराई आ गई थी। उसने सीता माता का अपहरण कर लिया था और उन्हें लंका ले गया था।’ रोहन ने उत्सुक होकर पूछा, ‘दादी, फिर भगवान राम ने क्या किया?’ 
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध किया। उनके साथ उनके भाई लक्ष्मण और वीर हनुमान भी थे। हनुमान जी ने अपनी बुद्धि और ताकत से रावण की लंका तक पहुंचने में भगवान राम की मदद की। राम और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ और अंत में भगवान राम ने रावण का वध कर दिया। इसी दिन को हम ‘विजय दशमी’ या ‘दशहरा’ के रूप में मनाते हैं, क्योंकि यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।’
सिया ने आंखों में चमक के साथ पूछा, ‘दादी, तो क्या इसका मतलब है कि अच्छाई हमेशा जीतती है?’
दादी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘बिल्कुल, बच्ची। चाहे बुराई कितनी भी ताकतवर हो, लेकिन सच्चाई और अच्छाई हमेशा जीतती है। यही दशहरा पर्व हमें सिखाता है।’ यह सुनकर रोहन और सिया को बहुत खुशी हुई। उन्होंने सोचा कि इस बार दशहरा को वे और खास तरीके से मनाएंगे। 
अगले दिन, रोहन और सिया ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक छोटा नाटक तैयार करने की योजना बनाई। वे रावण, राम, सीता और हनुमान की भूमिका निभाना चाहते थे। बच्चों ने कागज, रंगीन कपड़े और लकड़ी से छोटे-छोटे पुतले बनाए। उन्होंने पूरे गांव को निमंत्रण दिया कि वे उनका नाटक देखने आएं।
जैसे ही दशहरा का दिन आया, गांव में रौनक छा गई। लोग नए कपड़े पहनकर मेले में आए, मिठाइयां खाईं, और झूले झूले। रोहन और सिया का नाटक गांव के मैदान में खेला गया। रोहन ने भगवान राम का किरदार निभाया और सिया ने सीता का। उनका दोस्त कबीर रावण बना और बाकी बच्चों ने हनुमान, लक्ष्मण और वानर सेना के किरदार निभाए। नाटक के अंत में, जब भगवान राम ने रावण को बाण से मारा, तो रावण का पुतला जल उठा। बच्चों ने जोर-जोर से जयकारे लगाए, ‘जय श्री राम!’  गांव के सभी लोग तालियां बजाने लगे। सबने बच्चों की खूब तारीफ की। बच्चों के लिए यह एक यादगार अनुभव था। उन्हें इस नाटक से यह सीखने को मिला कि हमें जीवन में हमेशा सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए।
जब रात हुई और सभी लोग अपने घर लौटे, रोहन और सिया ने अपने माता-पिता से कहा, ‘हम हमेशा सच्चाई और अच्छाई के रास्ते पर चलेंगे।’
उनके माता-पिता ने उन्हें गले लगाते हुए कहा, ‘बिल्कुल, यही सच्चे इंसान की पहचान होती है।’
उस रात, रोहन और सिया अपने बिस्तर पर लेटकर सोचने लगे कि कैसे दशहरा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन का एक बड़ा संदेश है-बुराई कितनी भी बड़ी हो, अंत में जीत अच्छाई की ही होती है।
दशहरा के इस पर्व ने रोहन और सिया को हमेशा के लिए याद दिला दिया कि जीवन में सच्चाई, साहस और करुणा का महत्व सबसे ऊपर होता है।