बाल कहानी - ऋणानुबंध

सुबह का समय था। आलस्य त्याग कर लोग उठ कर बैठ रहे थे। रोज़ की तरह पल्लवी अपने प्यारे बगीचे के तरह-तरह के फूलों के पेड़ों में पानी डालते हुए धीमे-धीमे कोई गाना गुनगुना रही थी। इसके बाद बगीचे में पड़ी कुर्सी पर बैठ कर गरम चाय की चुस्की लेते हुए अपने हाथों से सजाए बगीचे को देख कर खुश हो रही थी।
पल्लवी अकेले जीवन जी रही थी। उसने न तो विवाह किया था और न ही परिवार का कोई सदस्य साथ रहता था। वह शिक्षक की नौकरी से रिटायर्ड हुई थीं। स्वभाव से शांत और सौम्य पल्लवी बच्चों की मदद करने में जरा भी नहीं सोचती-विचारती थी। उन्होंने निश्चय कर रखा था कि उनसे जितनी मदद हो सकेगी, वह करेंगी। आते-जाते वह झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घूम लेती थीं। ज़रूरतमंद और गरीब बच्चों के साथ गरीब परिवारों की भी मदद करती थीं।
उस दिन बगीचे की देखभाल के बाद वह सब्जी लेने निकलीं तो सिग्नल पर उन्हें एक बच्ची फूल बेचते हुए दिखाई दी। उसके पास जा कर वह बोलीं, ‘कितने साल की हो बेटा?’
‘नौ साल की।’
‘पढ़ती नहीं हो?’ बात बढ़ाते हुए पल्लवी ने पूछा।
‘कौन पढ़ाए।’ कह कर वह आगे बढ़ गई तो मदद करने की भावना से पल्लवी ने उसे रोकना चाहा।
‘देखो मैडम, काम के समय में आप परेशान मत कीजिए।’ कह कर वह लड़की सड़क उस पार निकल गई। उसके पास जाने के चक्कर में पल्लवी ने सिग्नल का ध्यान नहीं दिया और एक कार की चपेट में आ गईं। वह सड़क पर गिर के बेहोश हो गईं।
जब पल्लवी की आंख खुली तो वह अस्पताल में थीं। उनके होश में आने पर नर्स डाकटर को बुला लाई। कार के ब्रेक टाइम में चपेट में आने के कारण पल्लवी को कोई ज्यादा चोट नहीं आई थी। उनके सिर की चोट में छह टांके लगे थे और हाथ-पैर में सामान्य चोट आई थी। डाक्टर का कहना था कि कुछ जांच कराने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी जाएगी। खुद की गलती से यह एक्सीडेंट हुआ था, इसलिए शिकायत करने का सवाल ही नहीं था। कोई सगा-संबंधी न होने की वजह से खाना अस्पताल की कैंटीन से आना था। तभी सिग्नल पर मिली लड़की एक युवक के साथ उनके कमरे में दाखिल हुई। पल्लवी ने चश्मा ठीक करते हुए उनकी ओर देखा।
‘आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। जब तक आप अस्पताल में भर्ती हैं, आप की देखभाल की जिम्मेदारी मेरी है।’ यह कहते हुए बच्ची के साथ आए युवक ने खाने का टिफिन पल्लवी के सामने रख दिया। 
‘आप कौन?’ पल्लवी ने पूछा।
‘इस लड़की को पहचानती हैं?’ उस युवक ने पूछा।
चश्मा ठीक करते हुए पल्लवी ने कहा, ‘नहीं, यह लड़की यहां कैसे आईं और आप भी?’
बेड के बगल में पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए युवक ने कहा, ‘मैं लाया हूं इस बच्ची को। आप इसकी मदद करना चाहती थीं न?’
‘आप को कैसे पता?’ हैरान हो कर पल्लवी बोली।
उस युवक ने जेब से आई कार्ड निकाल कर पल्लवी को दिखाते हुए कहिए ‘मैं सेंट पॉल स्कूल में पढ़ता हूं। आप को याद होगा। अचानक पापा की मौत होने पर मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। क्योंकि मुझे सहारा देने वाला कोई नहीं रह गया था। तब आप मुझे खोजते हुए आई थीं। आपने मेरा और मेरी मां का रोजा खुलवाया था।’
चश्मा हटा कर आंखों में आए आंसू पोंछते हुए पल्लवी ने कहा, ‘इरफान, मुझे सब याद है बेटा। तुम्हें कैसे भूल सकती हूं? तुम्हारी मदद क्यों न करती, तुम पढ़ने में बहुत होशियार थे।’
इरफान ने भी नम आंखों से पल्लवी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘ऋणानुबंध हूं मैं मैडम आपका। सिग्नल पर मैंने आपको पहचान लिया था। मेरा जो होटल पापा की मौत के बाद बंद हो गया था, उसे आपने ही मदद कर के चालू करवाया था। मैं रोज़ाना सुबह-शाम ज़रूरतमंदों को खाना देने आता हूं। यह मैंने आप से ही सीखा है। मैं आपका बेटा हूं।’
यह कह कर इरफान ने पल्लवी को खीर खिलाया। उस बच्ची ने पल्लवी को फूल दे कर कहा, ‘भइया ने बताया है कि आप के घर पर बहुत सुंदर बगीचा है। मैं देखने आ सकती हूं?’
मुसकराते हुए पल्लवी ने फूल लेकर कहा, ‘एक शर्त पर, मैं पढ़ाऊंगी तो तुम्हें पढ़ना होगा।’
‘पर इसकी व्यवस्था तो इन भइया ने पहले ही कर दी है।’ कह कर वह बच्ची इरफान के पास बैठ गई।

-जेड.436ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ.प्र.)
मो. 8368681336